श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “निष्ठा की प्रतिष्ठा”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
( 27 सितम्बर 2020 बेटी दिवस के अवसर पर प्राप्त कल्पना चावला सम्मान 2020 के लिए ई- अभिव्यक्ति परिवार की और से हार्दिक बधाई )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 35 – निष्ठा की प्रतिष्ठा ☆
सम्मान रूपी सागर में समाहित होकर अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए, अपमान रूपी नाव पर सवार होना ही होगा। ये कथन एक मोटिवेशनल स्पीकर ने बड़े जोर- शोर से कहे।
हॉल में बैठे लोगों ने जोरदार तालियों से इस विचार का समर्थन किया। अब चर्चा आगे बढ़ चली। लोगों को प्रश्न पूछने का मौका भी दिया गया।
एक सज्जन ने भावुक होते हुए पूछा ” निष्ठावान लोग हमेशा अकेले क्यों रह जाते हैं। जो लोग लड़ – झगड़ कर अलग होते हैं , वे लोग अपना अस्तित्व तलाश कर कुछ न कुछ हासिल कर लेते हैं। पर निष्ठावान अंत में बेचारा बन कर, लुढ़कती हुई गेंद के समान हो जाता है। जिसे कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कह दिया जाता है।”
मुस्कुराते हुए स्पीकर महोदय ने कहा ” सर मैं आपकी पीड़ा को बहुत अच्छे से समझ सकता हूँ। सच कहूँ तो ये मुझे अपनी ही व्यथा दिखायी दे रही है। मैं आज यहाँ पर इसी समस्या से लड़ते हुए ही आ पहुँचा हूँ। ये तो शुभ संकेत है, कि आप अपने दर्द के साथ खड़े होकर उससे निपटने का उपाय ढूँढ़ रहे हैं। जो भी कुछ करता है ,उसे बहुत कुछ मिलता है। बस निष्ठावान बनें रहिए, कर्म से विमुख व्यक्ति को सिर्फ अपयश ही मिलता है , जबकि कर्मयोगी, वो भी निष्ठावान ; अवश्य ही इतिहास रचता है।
सभी ने तालियाँ बजा कर स्पीकर महोदय की बात का समर्थन किया।
समय के साथ बदलाव तो होता ही है। आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है। किसी उद्देश्य को पूरा करने हेतु दुश्मन को दोस्त भी बनाना, कोई नई बात नहीं होती। बस प्रतिष्ठा बची रहे, भले ही निष्ठा से कर्तव्य निष्ठा की अपेक्षा करते- करते, हम उसकी उपेक्षा क्यों न कर बैठे, स्पीकर महोदय ने समझाते हुए कहा।
सबने पुनः तालियों के साथ उनका उत्साहवर्द्धन किया।
पिछलग्गू व्यक्ति का जीवन केवल फिलर के रूप में होता है, उसका स्वयं का कोई वजूद नहीं रहता। अपने सपनों को आप पूरा नहीं करेंगे , तो दूसरों के सपने पूरे करने में ही आपका ये जीवन व्यतीत होगा। जो चलेगा वही बढ़ेगा, निष्ठावान बनने हेतु सतत प्रथम आना होगा। उपयोगी बनें, नया सीखें, समय के अनुसार बदलाव करें।
इसी कथन के साथ स्पीकर महोदय ने अपनी बात पूर्ण की।
सभी लोग एक दूसरे की ओर देखते हुए, आँखों ही आँखों में आज की चर्चा पर सहमति दर्शाते हुए नजर आ रहे थे।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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ई अभिव्यक्ति परिवार का हार्दिक धन्यवाद ।