श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है आपके द्वारा श्री सुरेंद्र सिंह पवार द्वारा लिखित “विज्ञ शिल्पी विश्वेश्वरैया” (जीवनी) पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 164 ☆
☆ “विज्ञ शिल्पी विश्वेश्वरैया” (जीवनी) – लेखक … श्री सुरेंद्र सिंह पवार ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
पुस्तक चर्चा
विज्ञ शिल्पी विश्वेश्वरैया (जीवनी)
आई एस बी एन ८१.७७६१.०१९.८
सुरेंद्र सिंह पवार
समन्वय प्रकाशन अभियान, जबलपुर
मूल्य १२५ रु
चर्चा …. विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी, जे के रोड, भोपाल ४६२०२३
मो ७०००३७५७९८
मुझे भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर लिखी गई कई किताबें पढ़ने मिली हैं। मानव जीवन में विज्ञान के विकास को मूर्त रूप देने में इंजीनियर्स का योगदान रहा है और हमेशा बना रहेगा। किन्तु बदलते परिवेश में भ्रष्टाचार के चलते इंजीनियर्स को रुपया बनाने की मशीन समझने की भूल हो रही है। भौतिकवाद की इस आपाधापी में राजनैतिक दबाव में तकनीक से समझौते कर लेना इंजीनियर्स की स्वयं की गलती है। देखना होगा कि निहित स्वार्थों के लिये तकनीक पर राजनीति हावी न होने पावे। भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया तकनीक के प्रति समर्पित इंजीनियर थे, उनका जीवन न केवल इंजीनियर्स के लिये वरन प्रत्येक युवा के लिये प्रेरणा है।
सुरेंद्र सिंह पवार एक कुशल शब्द शिल्पी हैं। वे नियमित रूप से हिन्दी साहित्य जगत की महत्वपूर्ण त्रैमासिक पत्रिका साहित्य संस्कार का संपादन कर रहे हैं, उन्होने इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स की वार्षिक बहुभाषी पत्रिका अभियंता बंधु का संपादन भी किया है। विज्ञ शिल्पी विश्वेश्वरैया में उन्होंने विषय वस्तु को शाश्वत, पाठकोपयोगी, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। यह जीवनी केंद्रित कृति हाल ही समन्वय प्रकाशन जबलपुर से छपी है। योजनाबद्ध तरीके से विश्वेश्वरैया जी पर प्रामाणिक सामग्री संजोई गई है। महान अभियंता की जीवन यात्रा को १२ अध्यायों में बांटकर रोचक फार्मेट में पाठको के लिये प्रस्तुत किया है। प्रासंगिक फोटोग्राफ के संग प्रकाशन से जीवनी अधिक ग्राह्य बन सकी है। विज्ञ शिल्पी विश्वेश्वरैया उन पर केंद्रित सहज, प्रवाहमान शैली में, हिन्दी में पहली विशद जीवनी है। किसी के जीवन पर लिखने हेतु रचनाकार को उसके समय परिवेश और परिस्थितियों में मानसिक रूप से उतरकर तादात्म्य स्थापित करना वांछित होता है। विज्ञ शिल्पी विश्वेश्वरैया में सुरेंद्र सिंह पवार ने विश्वेश्वरैया जी के प्रति समुचित तथ्य रखने में सफलता पाई है।
पहले अध्याय में विश्वेश्वरैया जी की १०१ वर्षो के सुदीर्घ जीवन, उनके घर परिवार की जानकारियां संजोई गई हैं। किताब के अंत में संदर्भो का उल्लेख भी है, जो शोधार्थियों के लिये उपयोगी होगा। दूसरा अध्याय विश्वेश्वरैया जी के ब्रिटिश सरकार के रूप में कार्यकाल पर केंद्रित किया गया है। इसमें उनके द्वारा डिजाइन की गई सिंचाई की ब्लाक पद्धति, खडकवासला झील के लिये बनवाया गया स्वचलित गेट, सिंध प्रांत में सख्खर पर निर्मित बांध और नहरें, आदि कार्यों की जानकारियां समाहित की गई हैं। उल्लेखनीय है कि विश्वेश्वरैया जी ने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर हैदराबाद में मूसा नदी पर बाढ़ नियंत्रण, उस्मान सागर तथा हिमायत सागर के निर्माण कार्यों में भागीदारी की थी, यह सब तीसरे अध्याया का हिस्सा है। चौथे और पांचवे अध्याय में उनके मैसूर के कार्यकाल में निर्मित सुप्रसिद्ध कृष्ण राज सागर डैम, बृंदावन गार्डन विषयक जानकारियां तथा मैसूर रियासत के दीवान के रूप में किये गये शिक्षा, रेल, बंदरगाह स्टील वर्क्स आदि कार्य वर्णित हैं। छठा अध्याय उनकी विदेश यात्राओ की रोचक बातें बताता है। सातवें अध्याय में देश के विभिन्न हिस्सों में कंसल्टैंट के रूप में किये गये विश्वैश्वरैया जी के अनेक कार्यो पर प्रकाश डाला गया है। आठवां अध्याय उनके लोकप्रिय व्यक्तित्व के बारे में लिखा गया है। महात्मा गांधी तब एक राष्ट्र पुरुष के रूप में मुखरित हो चुके थे, उनके साथ विश्वेश्वरैया की भेंट के वर्णन यहां मिलते हैं। नौं वें अध्याय में विश्वेश्वरैया जी के भाषण, भात के आर्थिक विकास की उनकी सोच, तथा उनके जीवन की सुस्मृतियां संजोई गई हैं। विश्वेश्वरैया जी को देश विदेश से अनेकानेक सम्मान मानद उपाधियां, मिलीं उन्हें भारत रत्न प्रदान किया गया, उन पर डाक टिकिट जारी की गई। ये जानकारियां दसवें अध्याय का पाठ्य हैं। ग्यारवें अध्याय में गूगल द्वारा उन्हें प्रदत्त सम्मान, उनके जन्म दिवस पर इंजीनियर्स डे का प्रति वर्ष आयोजन, तथा उनकी अंतिम यात्रा का वर्णन है। बारहवां और अंतिम अध्याय परिशिष्ट है जिसमें अनेक महत्वपूर्ण संदर्भ प्रस्तुत किये गये हैं।
१९०२ में एक मैसूर वासी नाम से युवा विश्वेश्वरैया ने तकनीकी शिक्षा के संदर्भ में उनके विचार एक पत्रक के रूप में लिखे थे। इससे उनके वृहद सिद्धांत, स्व नहीं समाज की झलक मिलती है। उन्होंने कहीं लिखा कि मैं काम रते करते मरना चाहता हूं, वे जीवन पर्यंत सक्रिय रहे। उनकी दीर्घ आयु का राज भी यही है कि उन्होंने स्वयं पर जंग नहीं लगने दी, वे इस्पात की तरह सदा चमचमाते रहे। कुल मिलाकर स्पष्ट दिखता है कि सुरेंद्र सिंह पवार ने एक श्रम साध्य कार्य कर हिन्दी में विश्वेश्वरैया जी की जीवनी लिखने का बड़ा कार्य किया है, जो सदैव संदर्भ बना रहेगा। त्रुटि रहित साफ सुथरी प्रिंट में स्वच्छसफेद कागज पर पूर्ण डिमाई आकार की १३६ पृष्ठीय किताब मात्र १०० रु में सुलभ है। मेरा सुझाव है कि इसे सभी इंजीनियरिंग कालेजों में अवश्य खरीदा जाना चाहिये। यदि भीतर के चेप्टर्स में भी अनुक्रम के अध्याय नम्बर डाल दिये जाते तो रिफरेंस लेने में और सरलता होती, अगले एडीशन में यह सुधार वांछित है। अस्तु खरीदिये, पढ़िये।
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈