श्री अरुण कुमार दुबे
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “समुंदर की है मुमकिन थाह लेना…“)
☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 64 ☆
समुंदर की है मुमकिन थाह लेना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
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अभी जी भर तुझे देखा नहीं है
तू है क्या वक़्त जो ठहरा नहीं है
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सभी अब मोहतरम सत्ता में आकर
है इनमें कौन जो नंगा नहीं है
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मज़ारें मुन्तज़िर अज़दाद की सब
चढ़ाने गुल कोई आता नहीं है
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जहां के झूठ सब रिश्ते है तन के
किसी से रूह का नाता नहीं है
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किताबों में पढ़े है इनके किस्से
शरीफ इंसान पर मिलता नहीं है
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समुंदर की है मुमकिन थाह लेना
दिलों के जितना ये गहरा नहीं है
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धजी को सांप छोड़ो तुम बनाना
समझ से अब कोई बच्चा नहीं है
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घमंडी का न देता साथ भाई
विभीषण ने किया धोखा नहीं है
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मशीनों का अरुण है हाथ इसमें
लियाकत भर से तू जीता नहीं है
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© श्री अरुण कुमार दुबे
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