श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “लिख दिया गर नसीब में क़ातिब“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 67 ☆

✍ लिख दिया गर नसीब में क़ातिब… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

खोलकर दिल सभी से मिलते हैं

ग़म छुपाकर ख़ुशी से मिलते हैं

कौम -ओ -मज़हब कभी न हम पूछें

जब किसी आदमी से मिलते हैं

 सोच बदली न पद न दौलत से

हम सदा सादगी से मिलते हैं

दूर रहने में हैं भला उनसे

लोग जो बेख़ुदी से मिलते हैं

समझे बिन दिल नहीं मिलाते हम

जब किसी अजनबी से मिलते हैं

चाह जिनकी हो वस्ल की गहरी

वो बड़ी बेकली से मिलते हैं

आम से खास हो गए जबसे

वो बड़ी बेरुखी से मिलते हैं

.

छोड़ते छाप हैं वही अपनी

जो भी जिंदादिली से मिलते हैं

.

गर्व जिनकी था हमको यारी पर

अब वही दुश्मनी से मिलते है

.

क्या हुआ प्यार कर बता उससे

सारे चहरे  उसी से मिलते हैं

.

ऐंब गैरों के आप को दिखते

क्या नहीं आरसी से मिलते हैं

.

वक़्त कैसा ये आ गया है अब

हक़ भी जो सरकशी से मिलते हैं

.

भूल जाते  थकन सभी दिन की

घर पे नन्ही परी से मिलते हैं

.

बात उनकी सदा सुनी जाती

जो बड़ी आजज़ी से मिलते हैं

.

लिख दिया गर नसीब में क़ातिब

सिंधु में वो नदी से  मिलते हैं

.

दुश्मनी व्यर्थ लगता मान लिया

तब ही वो दोस्ती से मिलते हैं

.

रोज़ मिलने को मन करे उनसे

जो सदा ताज़गी से मिलते है

.

टिमटिमाना वो भूले तारों सा

जब अरुण रोशनी से मिलते हैं

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments