डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 20 साहित्य निकुंज ☆
☆ दोहे ☆
देख शरद की चाँदनी,
झूम उठा है चंद
पूनम के आगोश में,
हैं जीवन मकरंद।
देते हैं शुभकामना,
बाँट सको तुम प्यार।
जीवन में खुशियाँ सभी,
हर दिन हो त्यौहार।।
जो समझा सके मन को,
है चाबी वो खास।
पहुँच सकेगा है वहीं,
होगा दिल के पास।।
मन से मालामाल वहीं,
जो दोषों से दूर।
जीवन में खुश है वहीं,
खुशियों से भरपूर।।
राजनीति का शोरगुल
छल छन्दी व्यवहार।
श्वेत कबूतर उड़ गए
अपने पंख पसार।।
रचती जाती पूतना ,
षड्यंत्री हर जाल ।
मनमोहन तो समझते,
उसकी हर इक चाल।।
महँगाई का दंश हम,
सहते हैं हर बार।
लुटते-लुटते लुट गए,
सबके ही घर बार।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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