डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  उनकी कविता परिभाषित। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 24  साहित्य निकुंज ☆

☆ परिभाषित

 

कैसे करूं

तुम्हें परिभाषित

मन की क्या भाषा लिखूं।

प्रेम की क्या परिभाषा लिखूं।

चिंतनता का बिंदु क्या

सागर का सिंधु क्या

कैसे करूं

तुम्हें परिभाषित

 

आत्मा की गहराई में तुम

प्यार की ऊंचाई क्या?

कैसे करूं

तुम्हें परिभाषित

 

तुम ही हो देवत्व स्वरूप

देवत्व की पहचान क्या?

कैसे करूं

तुम्हें परिभाषित।

 

लिख रहे है खुशबुओं से

मन के मीत हो तुम ही

जीवन का संगीत तुम ही

कैसे करूं

तुम्हें परिभाषित ।

 

जीवन की आभा तुम ही

सुर की साधना तुम ही

प्रेम का संगीत तुम ही

कर दिया तुम्हें परिभाषित।

 

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

wz/21 हरि सिंह पार्क, मुल्तान नगर, पश्चिम विहार (पूर्व ), नई दिल्ली –110056

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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