श्री अरुण कुमार दुबे
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “पत्थर न कभी मोम हुआ और न पिघला…“)
☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 104 ☆
पत्थर न कभी मोम हुआ और न पिघला ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
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दामन के बशर दाग छुपाने में लगे हैं
ये किसमें कमी क्या है गिनाने में लगे हैं
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पल अगला मिले या न मिले कुछ नहीं मालूम
सामान कई वर्ष जुटाने में लगे हैं
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पत्थर न कभी मोम हुआ और न पिघला
माशूक को ग़म अपना सुनाने में लगे हैं
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कुत्ते की न हो पाई कभी पूछ है सीधी
हैवान को इंसान बनाने में लगे हैं
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औरों से बड़ा होना है खुद को बड़ा करना
पर दूसरों को लोग झुकाने में लगे हैं
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जो सोचते कल बच्चों का धन जोड़ बना दें
कर वो न हुनरमंद मिटाने में लगे हैं
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मुझपे वो सितम करने से तौबा करें इक दिन
जो सब्र की बुनियाद हिलाने में लगे है
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ले नाम अरुण जिसका धकडता है मेरा दिल
महबूब मेरे मुझको भुलाने में लगे हैं
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© श्री अरुण कुमार दुबे
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