डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है उनकी एक अतिसुन्दर कविता ‘समय’। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 26 साहित्य निकुंज ☆
☆ समय ☆
समय फिसलता जाता है
रेत की तरह
लेकिन मन में है एक आस
मन की देहरी पर
ठिठक जाता है कोई पल
स्मृतियों के कोहरे से झांक रहा है
वह निकलेगा हल।
बीतता जाता है समय
अब समय हो गया है
व्यतीत ।
रह जाता है अतीत
समय को रोक पाया है कोई
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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