मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

आचार्य भगवत दुबे

(आज प्रस्तुत है हिदी साहित्य जगत के पितामह  गुरुवार परम आदरणीय आचार्य भगवत दुबे जी की एक समसामयिक, प्रेरक एवं शिक्षाप्रद ग़ज़ल  ” कोरोना कर्मों का फल है“। आप आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तृत आलेख निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं :

हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆ – हेमन्त बावनकर

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर तीन पी एच डी ( चौथी पी एच डी पर कार्य चल रहा है) तथा दो एम फिल  किए गए हैं। डॉ राज कुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के साथ रुस यात्रा के दौरान आपकी अध्यक्षता में एक पुस्तकालय का लोकार्पण एवं आपके कर कमलों द्वारा कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रदान किए गए। आपकी पर्यावरण विषय पर कविता ‘कर लो पर्यावरण सुधार’ को तमिलनाडू के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। प्राथमिक कक्षा की मधुर हिन्दी पाठमाला में प्रकाशित आचार्य जी की कविता में छात्रों को सीखने-समझने के लिए शब्दार्थ दिए गए हैं।

☆ कोरोना कर्मों का फल है ☆

 

मानव खुद विनाशकारी  है,  कोरोना कर्मों  का  फल है

पर्वत फोड़, उजाड़े जंगल, लगा दहकने अब मरुथल है।

 

केमिकल  परमाणु   बमों  की  फैली  है  दुर्गंध धरा पर

मानव ने पावन नदियों को बना दिया दूषित दलदल है।

 

फैलाया     विज्ञानविदों   ने   यह   विनाशकारी   कोरोना

महाशक्ति के अहंकार का आज स्वयं ढह रहा महल है।

 

लगभग एक करोड़ संक्रमित, मृतकों को दफनाना मुश्किल

इटली, चीन, रूस, अमरीका, पस्त हुआ इनका धन बल है।

 

वीरानी छाई सड़कों पर  आज  चतुर्दिक  भय  सन्नाटा

आपस में मिलने से डरते, छाया शंका का बादल है ।

 

मास्क   लगाएँ ,  रहें  घरों   में,  धोते रहें  हाथ  साबुन  से

केवल सामाजिक दूरी ही विकट समस्या का इक हल है।

 

इक मीटर की दूरी रखकर,  करें  लॉक  डाउन का पालन

घर में ही सीमित, बच्चों की रखना मिलकरचहल पहल है।

 

भगवत रखो भरोसा, इक दिन अंधकार यह छंट जाएगा

उत्साही साहस  वालों  को  मिला  धैर्य का मीठा फल है।

 

आचार्य भगवत दुबे 

शिवार्थ रेसिडेंसी, जसूजा सिटी, पो गढ़ा, जबलपुर ( म प्र) –  482003

मो 9691784464

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