डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’
(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन । वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा सं स्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला स्वभाव एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध। आज प्रस्तुत है डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर ‘ जी की एक भावप्रवण एवं सार्थक कविता ”ज्यों-ज्यों अगस्त्य हुए“।डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर ‘ जी के इस सार्थक एवं संत कबीर जी के विभिन्न पक्षों पर विमर्श के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन। )
☆ ज्यों-ज्यों अगस्त्य हुए ☆
चंदा ने
शीतलता दी
चाँदनी दी बिन माँगे
कि रह सकें हम शीतल
पाख भर ही सही
सता न सकें हमें चोर ,चकार
सूरज ने
खुद तपकर रोशनी दी
पहले जग उजियार किया
तब जगाया हमें
नदी ने पानी दिया
कि बुझ सके प्यास हम सबकी
समुद्र ने अपनी लहरों पर
बिठाकर घुमाया
दिखाया सारा जगत
कि खुश रहें हम सब
इन्होंने मछलियाँ भी दीं
धरती ने, पेड़ों ने दिए
कंद-मूल,असंख्य और अनंत
फल-फूल और शस्यान्न
क्या-क्या नहीं दिए
भरने के लिए हमारा पेट
ज्यों-ज्यों हम अगस्त्य हुए
ये होते गए निर्जल,बाँझ और उजाड़।
© डॉ. गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’
सूरत, गुजरात
अच्छी रचना