डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन ।  वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा सं स्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला  स्वभाव एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध।  ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं । यदि गंभीरता से  रचनाओं के शब्दों – पंक्तियों  को  आत्मसात करने  का प्रयास करें तो मनोभावनाएं हृदय से लेकर नेत्र  तक को नम कर देती हैं । ऐसी ही कुछ कवितायेँ अभी हाल ही में पढ़ने को मिली जिनमें माँ के रिश्ते पर रचित डॉ गंगाप्रसाद शर्मा  ‘गुणशेखर’ जी  की रचना और उनके मित्र श्री आर डी  वैष्णव जी के भावुक स्वर में  काव्य पाठ हृदय नेत्र नम कर देता है। प्रस्तुत है डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘ गुणशेखर ‘ जी  की कविता “माँ “।) 

संयोगवश आज के ही अंक में कर्नल अखिल साह जी की कविता “माँ ” प्रकाशित हुई है। ऐसे प्रयोग हम निरंतर करते रहने का प्रयास करेंगे। 
मेरा विनम्र अनुरोध है कि  कृपया कविताओं की तुलना न करें अपितु उनमें निहित भावनाओं को आत्मसात करें एवं उनका सम्मान करें। 

 सस्वर काव्य -पाठ का  ई-अभिव्यक्ति ने प्रयोग स्वरुप एक प्रयास किया है, आशा ही इस प्रयोग को प्रबुद्ध पाठकों का प्रतिसाद अवश्य मिलेगा। 

 इस सन्दर्भ में डॉ गुणशेखर जी के ही शब्दों में  – “इसे स्वर दिया है मेरे अभिन्न मित्र श्री आर डी वैष्णव ने।इसे लिखने पर आँसू नहीं आए पर सुनकर ज़रूर आए।सुनकर लगा कि इसमें माँ को गज़ल और गज़ल को माँ होते हुए भी महसूसा जा सकता है।इसे आप भी ज़रूर सुनें। कृपया श्री आर डी वैष्णव जी के चित्र पर या यूट्यूब लिंक पर क्लिक कर उनका भावप्रवण काव्य पाठ अवश्य आत्मसात करें।

श्री आर डी वैष्णव, जोधपुर, राजस्थान 

यूट्यूब लिंक  >>>>  https://youtu.be/OHaanAx11hk

  ☆ कविता  – माँ 

 

थोड़े में खुश माँ होती है

नाखुश  ही कब माँ होती है

फूलों की बगिया में फैली

खुशबू जैसी  माँ होती है

चौका-चूल्हा,बर्तन करती

दिन भर खटती माँ होती है

शैशव का मखमली बिछौना

तकिया, कंबल माँ होती है

दूध-बतासा,पुआ, पँजीरी

माखन मिसरी माँ होती है

घने  अँधेरे साँझ – सकारे

छाया जैसी माँ  होती है

जहाँ-जहाँ पग पड़ें हमारे

हर मग में बस माँ होती है

सारे रिश्ते बुझ जाएँ तब

जगमग जगमग माँ होती है

सारे जग में ढूंढ़  के जाना

माँ की उपमा माँ होती है

एक जनम के रिश्ते सारे

जनम जनम की माँ होती है

जिसने खोया उससे पूछो

किस कीमत की माँ होती है

उससे धनी कौन इस जग में

जग में  जिसकी माँ होती है

 

©  डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

रात्रि-22:10,15-02-2020

सूरत,  गुजरात

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विजय तिवारी "किसलय"

ममतामयी माँ पर सार्थक रचना हेतु
गुणशेखर जी को बधाई।
व प्रस्तुति हेतु “ई-अभिव्यक्ति” का आभार।
– किसलय