पुस्तक विमर्श – स्त्रियां घर लौटती हैं
श्री विवेक चतुर्वेदी
( हाल ही में संस्कारधानी जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी का कालजयी काव्य संग्रह “स्त्रियां घर लौटती हैं ” का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में संपन्न हुआ। यह काव्य संग्रह लोकार्पित होते ही चर्चित हो गया और वरिष्ठ साहित्यकारों के आशीर्वचन से लेकर पाठकों के स्नेह का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। काव्य जगत श्री विवेक जी में अनंत संभावनाओं को पल्लवित होते देख रहा है। ई-अभिव्यक्ति की ओर से यह श्री विवेक जी को प्राप्त स्नेह /प्रतिसाद को श्रृंखलाबद्ध कर अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास है। इस श्रृंखला की चौथी कड़ी के रूप में प्रस्तुत हैं श्री नरेंद्र पुण्डरीक के विचार “स्त्रियों को लेकर बहुत ही श्रेष्ठ रचाव इन कविताओं में है ” ।)
अमेज़न लिंक >>> स्त्रियां घर लौटती हैं
☆ पुस्तक विमर्श #9 – स्त्रियां घर लौटती हैं – “स्त्रियों को लेकर बहुत ही श्रेष्ठ रचाव इन कविताओं में है ” – श्री नरेन्द्र पुण्डरीक ☆
स्त्रियां घर लौटती हैं’ के लिए वरिष्ठ कवि एवं सम्पादक ‘माटी’ आदरणीय श्री नरेन्द्र पुण्डरीक जी की टिप्पणी…
विवेक चतुर्वेदी कविता संकलन “स्त्रियां घर लौटती हैं ” काफी दिन पहले मिला था । तब से पाठकों द्वारा इतना समादृत किया गया कि कविता के प्रति बढते लगाव को देख कर लगा कि अच्छी कविता के प्रति पाठकों की भूख लगातार बनी हुई है।
जो लोग कहते है कि कवितायेँ कौन पढता हैं उन्हें विवेक की यह कविताएं जरुर एक बार पढ़नी चाहिये।
जिन लोगों को कविता में भाव और भाषा का प्रीतिभोज अच्छा लगता है इन कविताओं में उन्हें प्रीतिभोज का उल्लास और तृप्ति दोनों मिलेगी।
इनमें मेरी अपनी भाषा का वह गौरव दिखाई दिया जिन्हें पढ़ कर मैं भीतर तक भीग गया । बुन्देली शब्दों के गोथ की लम्बी यात्रा दिखाई दी।
स्त्रियों को लेकर बहुत ही श्रेष्ठ रचाव इन कविताओं में है। स्त्रियां जो दिन भर सूरज के साथ उठ कर सूरज के साथ घर लौटती हैं।
विवेक की कविता समकालीन हिन्दी कविता की गहरी आश्वस्ति है।
– नरेन्द्र पुण्डरीक
© विवेक चतुर्वेदी, जबलपुर ( म प्र )
ई-अभिव्यक्ति की ओर से युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी को इस प्रतिसाद के लिए हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई।