(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री राम नगीना मौर्यजी के कथा संग्रह “ सॉफ्ट कार्नर ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा. श्री विवेक जी ने दाम्पत्य की कहानियों पर आधारित पुस्तक की अतिसुन्दर समीक्षा लिखी है। श्री विवेक जी का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 23☆
☆ पुस्तक चर्चा – कथा संग्रह – सॉफ्ट कार्नर ☆
पुस्तक – सॉफ्ट कार्नर
लेखिका – श्री राम नगीना मौर्य
☆ कथा संग्रह – सॉफ्ट कॉर्नर – श्री राम नगीना मौर्य – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
सुपरिचित कथाकार राम नगीना मौर्य का यह तीसरा कहानी संग्रह है। इसमें ग्यारह कहानियां हैं। इनके दो कहानी संग्रह आखिरी गेंद और आप कैमरे की निगाह में हैं चर्चित हो चुके हैं। मौर्य अपनी कहानियों में अक्सर छोटे मुद्दे उठाते हैं। यहां भी मुद्दे छोटे हैं पर इनमें आमजन की जिंदगी बसी हुई है। कहानियों में आम आदमी के जीवन की विविध समस्याओं, स्थितियों और वर्तमान पीढ़ी में आई नवीन चेतना के इस तरह बारीक ब्योरे मिलते हैं कि चरित्रों में जीवतंता पूरी गंभीरता से लक्षित होती है। प्रायः सभी कहानियों में शहरी मध्यवर्गीय जीवन के अनुभव और विचारधारा यूं रूपायित हुए हैं कि ये हमारे जीवन का हिस्सा लगते हैं।
अधिकांश कहानियों में दांपत्य प्रमुखता से दर्ज है। जिन कहानियों के कथानक सामाजिक हित साधने वाले हैं, वहां भी दांपत्य अपने महत्व और उपयोगिता के साथ मौजूद है। दंपती अपने उद्देश्य, उम्मीद और उसूलों को उत्तम वैज्ञानिक विश्लेषण और विवेकपूर्ण तर्क के साथ स्थापित करते हैं। इसलिए उनकी आपसी नोक-झोंक निरर्थक नहीं लगती। पति-पत्नी तमाम अभाव, चिंताओं, तनाव और दबावों के बावजूद प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो के कथन ‘हम स्वतंत्र पैदा जरूर हुए हैं, पर हर जगह जंजीरों से जकड़े हुए हैं’ को स्वीकार करते हुए दायित्व और अधिकार के मध्य अच्छा संतुलन रखते हैं।
शीर्षक कहानी ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ में एक-दूसरे के विवाह पूर्व के प्रेम प्रसंगों को जानने-समझने के लिए कूटनीति नहीं बनाई गई है, बल्कि स्वाभाविक जिज्ञासा की तरह जानकारी ली गई है। इन कहानियों के दंपती उस आर्थिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें एक निश्चित आय में गुजर-बसर करना है। घर में पत्नी आडंबर से परे सरल-सा व्यवहार करती है। वह कहती है, “अभी शाम को चाय बनाई थी। अधिक बन गई है। आपके लिए रख दी थी। अब गरम कर दिया है।
इस मितव्ययता से एक किस्म का सदाचार तैयार होता है जो व्यय-अपव्यय के साथ नैतिक-अनैतिक में भी फर्क करना सिखा देता है। इसीलिए कहानी ‘बेकार कुछ भी नहीं होता’ के माधव बाबू सड़क के किनारे पड़े दो स्क्रू पेंच को उठा लेते हैं। दफ्तर में उनके चैंबर की मेज के ड्राअर के हैंडल के जो दो पेंच निकल गए हैं, इन दो पेंच को वहां लगा लेंगे।
वस्तुतः इन कहानियों के पात्र उन साधारण लोगों के बेहद करीब हैं जो रोजमर्रा की खींचतान से भले ही उद्विग्न हो जाएं, पर उनके अंतस में प्राणी मात्र के लिए एक सॉंफ्ट कॉंर्नर होता है। वहीं से वे ताकत पाते हैं। कहानी ‘आखिरी चिट्ठी’ के नायक को कुछ ढूंढ़ते हुए स्कूली दिनों के मित्र की चिट्ठी मिलती है। उसे लगता है जैसे मित्र हरदम उसके आस-पास मौजूद रहता आया है। कहानी ‘संकल्प’ का नायक अपनी अपव्यय की आदत खत्म करने के लिए संकल्प लेता है कि आज एक भी पैसा खर्च नहीं करेगा। लेकिन दफ्तर से घर लौटते हुए एक किशोर उसके जूतों में पालिश करने का आग्रह करता है कि वह सुबह से भूखा है।
नायक उसे उपेक्षित करते हुए स्कूटर स्टार्ट कर घर की जानिब चल देता है। लेकिन उसके भीतर का सॉफ्ट कॉर्नर उसे अधीर करता है कि किशोर भीख नहीं, काम मांग रहा था। तब वह लौटकर आता है और किशोर को कुछ पैसे देने की कोशिश करता है, पर वह किशोर भीख नहीं, जूते पॉलिश कर मेहनताना लेता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ये कहानियां बड़े आग्रह और कोमलता से लिखी गई हैं।
चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर