श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  व्यंग्य  “गांधी जी आज भी बोलते हैं ”।  अपनी बेहतरीन  व्यंग्य  शैली के माध्यम से श्री विवेक रंजन जी सांकेतिक रूप से वह सब कह देते हैं जिसे पाठक समझ जाते हैं और सदैव सकारात्मक रूप से लेते हैं ।  श्री विवेक रंजन जी का हार्दिक आभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 36 ☆ 

☆ व्यंग्य – गांधी जी आज भी बोलते हैं  ☆

साहब की कुर्सी के पीछे गांधीजी दुशाला ओढ़े लगे हुए हैं। साहब कुछ वैचारिक किस्म के आदमी हैं। वे अकेले में गांधी जी से मन ही मन  बिन बोले बातें करते हैं। गांधीजी उनसे बोलते हैं कि  सारी योजनाएं तभी कारगर  होंगी जब उनके केंद्र में  कतार की पंक्ति में खड़ा अंतिम आदमी ही पहला व्यक्ति होगा। इसलिए साहब अक्सर लाभ पहुंचाते समय कतार के पहले व्यक्ति की उपेक्षा कर अंतिम व्यक्ति को भी,  जो गांधी जी के साथ आता है सबसे पहले खड़ा कर लेते हैं।

साहब की आल्मारियो से फाइलें तभी बाहर आती हैं जब अकेले में वे उनके विषय  में  गांधी जी से पूरी बातें कर लेते हैं। उनके पास गांधीजी गड्डी में आते हैं। गांधी जी साहब की लाठी हैं। गांधीजी के बिना साहब फाइल को  लाठी से हकाल देते हैं। वे गांधीजी के इतने भक्त हैं कि गांधीजी की संख्या साहब के कलम की दिशा पलट देती है। वे गांधी जी के सो जाने के बाद ही साहब क्वचित नशा करते हैं। वे गांधीजी  के नोट पर छपे हर चित्र की सुरक्षा बहुत जतन से करते हैं। साहब ने एक बकरी भी गांधीजी की ही तरह पाली हुई है। यदि उन्हें किसी की कोई सलाह पसंद नहींं आती तो वे बकरी  को घास खिलाने चले जाते हैं और इस तरह विवाद होने से बच जाता  है। स्वयम ही अगली बार समझदार व्यक्ति बकरी के लिए पर्याप्त घास लेकर साहब के पास पहुंचता है। साहब उसके साथ गड्डी में आये हुए गांधी जी से एकांत में चर्चा करतेे हैं। और गांधीजी का संकेत मिलते ही  व्यक्ति का काम सुगमता से कर देते हैं। बकरी निमियाने लगती है।

इसलिए मेरा मानना है कि गांधी जी आज भी बराबर बोलते हैं, उन्हें गुनने, सुनने औऱ समझने वाले की ही आवश्यकता है। जन्म के 150 वे वर्ष में हम सब को गांधी जी को पुनः पढ़ना समझना आचरण में उतारने की जरूरत है बस।

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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