डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक लघुकथा “एक सवाल मजदूर का”। मजदूर का ही नहीं हम सब का भी एक सवाल है कि जिन मजदूरों को गाड़ियों में भर भर कर जैसे भी भेजा है उनमें से कितने वापिस आएंगे ? डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस हृदयस्पर्शी लघुकथा को सहजता से रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 29 ☆
☆ लघुकथा – एक सवाल मजदूर का ☆
बाबा मजदूर क्या होता है?
मजदूर बहुत मेहनतकश इंसान होता है बेटवा!
अच्छा! मजदूर काम क्या करता है?
बडी- बडी इमारतें बनाता है, पुल बनाता है, मेहनत – मजूरी के जितने काम होते हैं सब करत है वह.
और वह रहता कहाँ है?
ऐसी ही झोपडिया में, जैसे हम रहत हैं, हम मजदूर ही तो हैं .
बाबा तुमने भी शहरों में बडी- बडी बिल्डिंग बनाई हैं?
हाँ, अरे पूरे देश में घूमे हैं काम खातिर. जहाँ सेठ ले गए, चले गए मुंबई,कलकत्ता बहुत जगह.
तो तुमने अपने लिए बडा – सा घर क्यों नहीं बनाया बाबा, कित्ती छोटी झोपडी है हमार, शुरु हुई कि खत्म – बेटा मासूमियत से पर थोडी नाराजगी के साथ बोला.
गंगू के पास मानों शब्द ही नहीं थे, कैसे समझाता बेटे को कि मजदूर दूसरों के घर बनाता है लेकिन उसके पैरों तले जमीन नहीं होती. टी.वी.पर आती मजदूरों के दर- ब- दर भटकने की दर्दनाक खबरें उसका कलेजा छलनी कर रहीं थीं. कोरोना से जुडे अनेक सवालों पर चर्चाएं चल रही थी पर गंगू के मन में तो एक ही सवाल चल रहा था – मजदूरों के बिना किसी राज्य का काम नहीं चलता लेकिन कोई भी उन्हें एक टुकडा जमीन और दो रोटी चैन से खाने को क्यों नहीं देता?
मजदूर यह सवाल कभी पूछ सकता है क्या?
© डॉ. ऋचा शर्मा
अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.
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