डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक “ बोधपरक लघुकथा – दूरदर्शिता ”। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस प्रेरणास्पद लघुकथा को सहजता से रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 32☆
☆ बोधपरक लघुकथा – दूरदर्शिता ☆
पानी से लबालब भरे एक तालाब में दो मछलियां रहती थीं – दूरदर्शी और नुक्ताचीनी , दोनों अच्छी दोस्त थीं पर स्वभाव में एक दूसरे के विपरीत. दूरदर्शी गंभीर स्वभाव की थी और हर काम सोच- समझकर किया करती थी. नुक्ताचीनी आलसी थी और हर बात को हँसकर हवा में उडा देती थी. उसका कहना था जो होगा देखा जाएगा. दूरदर्शी बहुत कोशिश करती थी उसे समझाने की, सही रास्ते पर लाने की लेकिन वह तो अपनी मर्जी की मालिक थी.
एक दिन दूरदर्शी तालाब की दीवार से सटी आराम कर रही थी तभी उसने दो मनुष्यों को आपस में बात करते सुना —‘ इस तालाब में बहुत मछलियां होंगी कल सबेरे आकर जाल डालेंगे, खूब कमाई होगी ‘. दूरदर्शी ने जल्दी से जाकर अन्य मछलियों को सारी बात बताई और बोली हम सबको दूसरे तालाब में चले जाना चाहिए, नहीं तो जाल में फँस जाएंगे. यह सुनकर नुक्ताचीनी हँसकर बोली – अरे ये तो ऐसे ही डराती रहती है, जरूरी नहीं है कि कल वो आदमी जाल लेकर आ ही जाएं,कल की कल देखेंगे और यह कहकर वह तेजी से गहरे पानी में चली गई. दूरदर्शी क्या करती,वह चुप रही और सुबह होने का इंतजार करने लगी.
सुबह तालाब में ऊपर आकर उसने नजर दौडाई, देखा, दो आदमी जाल लिए चले आ रहे थे. वे तालाब में जाल डालने की तैयारी करने लगे.वह तेजी से अपनी सखियों से बोली – जल्दी से सब निकल चलो यहाँ से, मछुआरे आ गए हैं. नुक्ताचीनी ने अब भी उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया. मछुआरों ने जाल डाला और नुक्ताचीनी उसमें फँस गई. वह बेबस निगाहों से अपनी सखियों की ओर देख रही थी पर अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत ?
दूरदर्शी मछली अपनी दूरदर्शिता से दूसरे तालाब में अन्य सखियों के साथ जीवन का आनंद उठा रही थी. सच ही है दूरदर्शिता जीवन में बहुत से संकटों से हमें बचा लेती है.
© डॉ. ऋचा शर्मा
अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.
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सुंदर रचना, शिक्षाप्रद