(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं. अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा रचनाओं को “विवेक साहित्य ” शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे. आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक सामायिक व्यंग्य “पोलिंग बूथ पर किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन”. श्री विवेक जी को धन्यवाद एक सदैव सामयिक रहने वाले व्यंग्य के लिए। इस व्यंग्य को सकारात्मक दृष्टि से पढ़कर कमेंट बॉक्स में बताइयेगा ज़रूर। श्री विवेक रंजन जी ऐसे बेहतरीन व्यंग्य के लिए निश्चित ही बधाई के पात्र हैं. )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साह9त्य # 29 ☆
☆ पोलिंग बूथ पर किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन ☆
अर्जुन जी का नेचर ही थोड़ा कनफुजाया हुआ है. वह महाभारत के टाईम भी एन कुरुक्षेत्र के मैदान में कनफ्यूज हो गये थे. भगवान कृष्ण को उन्हें समझाना पड़ा तब कहीं उन्होनें धनुष उठाया.
पिछले कई दिनो से आज के अरजुन देख रहे थे कि सत्ता से बाहर हुये नेता गण जनसेवा के लिए और सत्तासीन कुर्सी बचाने के लिए बेचैन हो रहे हैं. येन केन प्रकारेण फिर से कुर्सी पा लेने/कुर्सी बचाने के लिये गुरुकुलों तक में तोड़ फोड़, मारपीट, पत्थरबाजी सब करवाई जा रही थी. कौआ कान ले गया की रट लगाकर भीड़ को कनफ्यूजियाने का हर संभव प्रयास चल रहा था. तेज ठंड के चलते जो लोग कानो पर मफलर बांधे हुये हैं वे. बिना कान देखे कौए के पीछे दौड़ते फिर रहे हैं. ऐसे समय में ही राजधानी के चुनाव आ गये. अरजुन जी किसना के संग पोलिंग बूथ पर जा पहुंचे. ठीक बूथ के बाहर वे फिर से कनफुजिया गये. किंकर्तव्यविमूढ़ अरजुन ने किसना से कहा कि ये चारों बदमाश जो चुनाव लड़ रहे हैं मेरे अपने ही हैं. मैं भला कैसे किसी एक को वोट दे सकता हूं ? इन चारों में से कोई भी मेरे देश का भला नही कर सकता. मैँ इन सबको बहुत अच्छी तरह जानता हूं. अरजुन की यह दशा देख इंद्रप्रस्थ पोलिंग बूथ पर लगी लम्बी कतार में ही किसना ने कहा..
हे पार्थ तुम केवल प्याज की महंगाई की चिंता करो तुम्हें देश की चिंता क्यों सता रही है !
हे पार्थ तुम फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री वाईफाई और मेट्रो में पत्नी के फ्री सफर, शिक्षा/स्वास्थ्य केन्द्रों की चिंता करो तुम्हें भला देश की चिंता का अधिकार किसने दिया है.
हे पार्थ तुम बेटे के रोजगार की चिंता करो. बेरोजगारी भत्ते की चिंता करो तुम्हें जातियों के अनुपात की चिंता क्यों !
हे पार्थ तुम शहर की स्मार्टनेस की चिंता करो तुम्हें साफ सफाई के बजट की और उसमें दिख रहे घपले की चिंता नहीं होनी चाहिये !
हे पार्थ तुम सीमा पर शहीद जवान की शव यात्रा में शामिल होकर देश भक्ति के नारे लगाओ भला तुम्हें इससे क्या लेना देना कि यदि नेता जमात ने सही निर्णय लिये होते तो जवान के शहीद होने के अवसर ही न आते !
हे पार्थ तुम देश बंद के आव्हान पर अपनी दूकान बन्द करके बंद को समर्थन दो. अन्यथा तुम्हारी दूकान में तोड़फोड़ हो सकती है. तुम्हें इससे कोई सरोकार नहीं रखना चाहिये कि यह बन्द किसने और क्यों बुलाया ?
हे पार्थ तुम्हें सरदार पटेल. आजाद. सुभाष चन्द्र बोस. सावरकर. विवेकानन्द या गोलवलकर जी वगैरह को पढ़ने समझने की भला क्या जरूरत तुम तो आज के मंत्री जी को पहचानो उनसे अपने ट्रांसफर करवाओ. सिफारिश करवाओ और लोकतंत्र की जय बोलो व प्रसन्न रहो !
हे पार्थ तुम्हें शाहीन रोड पर धरना देने के लिए पार्टियों का प्रतिनिधित्व करने पर सवाल उठाने की कोई जरूरत नहीं तुम मजे से चाय पियो. अखबार पढ़ो. बहस करो. टीवी पर बहस सुनो. कार्यक्रमों की टीआरपी बढ़ाओ.
हे पार्थ तुम्हें सच जानकार भला क्या मिलेगा ? तुम वही जानो जो तुम्हें बताया जा रहा है ! यह जानना तुम्हारा काम नही है कि जिसे चुनाव में पार्टी टिकिट मिली है उसका चाल चरित्र कैसा है. वह सब किसी पार्टी में हाई कमान ने टिकिट के लिए करोड़ो लेने से पहले. या किसी पार्टी ने वैचारिक मंथन कर पहले ही देख लिया होता है.
हे पार्थ वैसे भी तुम्हारे एक वोट से जीतने वाले नेता जी का ज्यादा कुछ बनने बिगड़ने वाला नहीं. सो तुम बिना अधिक संशय किये मतदान केंद्र में जाओ चार लगभग एक से चेहरों में से जिसे तुम देश का कम दुश्मन समझते हो उसे या जो तुम्हें अपनी जाति का अपने ज्यादा पास दिखता हो उसे अपना मत दे आओ, और जोर शोर से लोकतंत्र का त्यौहार मनाओ.
किसना अरजुन संवाद जारी था. पर मेरा नम्बर आ गया और मैं अंगुली पर काला टीका लगवाने आगे बढ़ गया.
कुरुक्षेत्र में कृष्ण के अर्जुन को उपदेशों से गीता बन पड़ी थी. आज भी इससे कईयों के पेट पल रहे हैं. कोई गीता की व्याख्या कर रहा है. कोई समझ रहा है. कोई समझा रहा है. कोई छापकर बेच रहा है. इसी से प्रेरित हो हमने भी अरजुन किसना संवाद लिख दिया है. इसी आशा से कि लोग कानो के मफलर खोल कर अपने कान देखने का कष्ट उठायें. और पोलिंग बूथ पर हुये इस संवाद के निहितार्थ समझ सकें तो समझ लें.
विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
प्रेरणादायक व्यंग्य