श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’
( श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर और शिक्षाप्रद लघुकथा देवी विसर्जन। यह वास्तव में विचारणीय है कि कुछ लोगों के विचार नवरात्रि के नौ दिनों तक सात्विक रहते हैं और अचानक दसवें दिन ही क्यों परिवर्तित हो जाते हैं ? इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 19 ☆
☆ लघुकथा – देवी विसर्जन ☆
नदी दूषित न हो शासन ने इसकी पूरी कोशिश और सतर्कता बरती. एक कुंड बनाया. जिसमें बड़ी और छोटी सभी प्रतिमाएं विसर्जित की जा सकतीं थीं और प्रतिमाएं विसर्जित भी हुई. पर कुछ और प्रतिमाओं को विसर्जित होना था. माता की मूर्ति विसर्जन के लिये बड़ी धूमधाम से ले जायी गई और नदी में विसर्जित करने आगे बढ़े, मना करने पर समिति के सदस्यगण मूर्ति कुंड में विसर्जित नहीं करने के पक्ष में थे. यही बात आगे विवाद बनी.
शासन की चाक-चौबंद व्यवस्था अति उत्तम रही आपस में तू-तू में में शुरू हुई और फिर शासन और समिति के सदस्यों मैं बहुत जमकर लाठी और पत्थरों का उपयोग हुआ.
बस फिर क्या मूर्ति के पास पुजारी बस बैठा रहा, बाकि सबको जाना पड़ा और फिर देवी का विसर्जन शासन के नुमाइंदों को करना पड़ा.
यह भी बड़े भाग्य की बात कि देवी भी अनुशासन में रहकर ही खुश हुई होगी. अति किसी भी तरह की बुरी होती है. कुछ भले मानस, तो कुछ विघ्नसंतोषियों ने यह विवाद खड़ा कर दिया.
मन कर्म वचन से सभी ने श्रद्धा भक्ति की और मन पवित्र कर इन्द़ियों को वश में करने के गुण सीखे और शान्ति भी रही. किन्तु, हमारे विचार नौ दिनो तक शुध्द शाकाहारी रहते हुये दसवें दिन से ही आततायी क्यों हो गये?
शासन ने अपनी महत्ता बताई और विसर्जन करते समय गर्व से बोले- “देश की रक्षा कौन करेगा? …हम करेंगे… हम करेंगे!”
क्या यह मानवीय व्यवहार सही था ….?
© श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि ‘
अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश
बढ़िया