श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर और  मौलिक कविता  कठपुतली।  श्रीमती कृष्णा जी ने  कठपुतली के खेल के माध्यम से काफी कुछ  बड़ी ही सहजता से कह दिया है।  वास्तव में जब हम बच्चे थे ,तो कठपुतली का नाच देखने की उत्सुकता रहती थी । अब तो मीडिया ने इस कला को काफी पीछे धकेल दिया  है किन्तु, अब भी कुछ कलाकार इसे जीवित रखे हुए हैं।  इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 22 ☆

☆ कविता  – कठपुतली ☆

एक बार की बात बताऊँ

कठपुतली का नाच दिखाऊँ

कहा बापू ने हमसे…

हम सभी छोटे बड़े

निकले कठपुतली को देखने

मैने कहा माँ तू चलना

वह बोली- नहीं मै घर की

कठपुतली हूँ.

 

क्या…? मै बोली

वह बोली

बड़ी होगी तो समझेगी

जा अभी तू जा.

 

आओ..आओ नाच देखलो

छम्मक छम्मक नाचे है

काम बड़ा कर जाये है

देखो …अभी सासुरे जायेगी

फिर सासु की डांट खायेगी

 

और फिर पानी भरने घाट …

बड़े बड़े मटको मे जायेगी.

घर मे जनावर को भूसा चोकर डाले…

 

हरी घाँस चरने को देगी

अब घर में  सबको भोजन परसेगी

घर के सारे काम निपटा समेट कर

पति के पैर दबा फिर सोयेगी

भोर होते ही फिर पिछली

दिनचर्या दुहरायेगी.

 

समाप्त हुआ कठपुतली का खेल

मैने देखा जो जो काम करे थी

अम्मा कठपुतली भी वही..करे

बापू से पूछा मैने यही सभी तो

अम्मा घर मे दिनभर करे है

तो बापू अम्मा को कठपुतली कहें…..

 

बेटी की बाते सुनकर वे बोले

नहीं सुनो अगले घर जाने की

तैयारी मे हमने यह कठपुतली का

नाच दिखाया अनजाने में ही

लाडो सब कुछ तूने ज्ञान है पाया

बस अगले बरस कर दूंगा ब्याह तेरा..

तू भी जिम्मेदारी सासुरे की निभा

 

बेटी छटपटाहट की मारी

कभी माँ और कभी कठपुतली को देखे है

 

अंतर क्या कोई बतलाये

इन दोनों की तासीर एक है

यहाँ भी पुरूष चलावे

वहाँ भी वही तमाशा करवावे है.

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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