श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं।
श्री शांतिलाल जैन जी ने हमारे आग्रह पर ई- अभिव्यक्ति के पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल लिखना स्वीकार किया है जिसके लिए हम आपके ह्रदय से आभारी हैं। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है उनका एक सार्थक व्यंग्य “डिझाईनर टोंटियों के दौर में ”। इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आप तक उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करते रहेंगे। श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य पर टिप्पणी करने के जिम्मेवारी पाठकों पर है । अतः आप स्वयं पढ़ें, विचारें एवं विवेचना करें। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल #1 ☆
☆ डिझाईनर टोंटियों के दौर में ☆
एक विनम्र सलाह है श्रीमान, जब कभी किसी नये बाथरूम में जाना पड़े तो टोंटियों के साथ थोडा संभलकर बर्ताव कीजियेगा. एक छोटी सी भूल आपका करियर बर्बाद कर सकती है. उस दिन, एक बड़े होटल के कन्वेन्शन सेन्टर में ऑफिस की एक इम्पोर्टेन्ट मीटिंग में चल रही थी. बाथरूम जाना पड़ा. हाथ धोने के लिये नल चलाया तो सर के ऊपर फव्वारा चल पड़ा. बंद करने के लिये नॉब दबाया तो साईड का मिस्टिक शॉवर चल पड़ा. तेजी से बंद करने की कोशिश में फव्वारा एक ओर से बंद होता तो दूसरी ओर खुल जाता. जो नॉब लेफ्ट में खुलती वो राईट में पानी फेंकती. जो राईट में खुलती वो सेंटर भिगो देती. आड़े, तिरछे, गोल, ऊपर, सामने से लहराते से फव्वारे को जब तक अपन पूरी तरह बंद कर पाते तब तक देर हो चुकी थी. अपन की जगह किसी हिंदी सिनेमा की नायिका होती तो जबरदस्त हिट सीन होता. अपन की फिलिम तो पिट चुकी थी. नेपथ्य से सुनायी दिया – भीगे कपड़े मीटिंग अटेंड करने नहीं देंगे और एमडी साब तुम्हें घर जाने नहीं देंगे शांतिबाबू. मुगलेआज़म की सलीम अनारकली टाईप मामला था. बहरहाल, मौका मुआईना कर बॉस ने ऐसी जगह ट्रान्सफर करने का मन बना लिया जहाँ डिब्बा लेकर दिशा मैदान जाना पड़ेगा और बाल्टी से पानी खेंच के कुएं की पाल पर नहाना पड़ेगा. नो टोंटी नो झंझट. उनका अभिमत स्पष्ट था, जो आदमी पानी की टोंटी सही से नहीं खोल सकता हो वो कम्पनी के परफोर्मेंस की टोंटी क्या खोल पायेगा.
ये खूबसूरत, आकर्षक, डिझाईनर मगर उलझनभरी टोंटियों का दौर है श्रीमान. टोंटियों के नये निज़ाम में जरूरत न केवल सही टोंटी पहचानने की है बल्कि उसे किस दिशा में खोलना है यह जानना भी जरूरी है. अपन तो अक्सर लेफ्ट में खोलकर खौलते पानी में हाथ जला बैठते हैं, अनुकूल पानी तो इन दिनों राईट साईड में बह रहा है. कैसे खोलना है – ये भी लाख टके सवाल का है. कभी अपन नॉब पुश करते हैं, कभी ऊपर करके देखते हैं, कभी लिफ्ट करके साईड में घुमाकर ट्राय करते हैं तो कभी टोंटी के अगले हिस्से को घुमाकर देखते हैं. तरह तरह के जतन करना पड़ते हैं तब जाकर खुल पाती है टोंटी. कभी कभी तो समझ ही नहीं पड़ता कि बाथरूम की दीवार में जो ठुकी है वो टोंटी है कि खूंटी. भूत सूनी हवेलियों में ही नहीं रहा करते हैं, नलों में भी रहते हैं. हाथ टोंटी के नीचे ले जाते हैं तो पानी चालू हो जाता, हटाओ तो बंद. फिर चालू फिर बंद. टोंटी नहीं हुई पहेली हो गई श्रीमान. एअरपोर्ट के वाटरकूलर की टोंटी तो ऐसी उजबक् कि पानी पीने के लिये आपको गर्दन ऊँट से उधार लेनी पड़े. नल जहां से मुड़ता है वहां न मुंडी फंसा पाते हैं न अंजुरी ठीक से भर पाती है. टोंटी खुलेगी कहाँ से – जानने के लिये कूलर की परकम्मा करनी पड़ती है.
अपन तो जिंदगी में सही टोंटी पहली बार में कभी खोल ही नहीं पाये. हमारे दफ्तर में हैं कुछ सफल सहकर्मी. वे सही टोंटी पहचानते है, उसे किस दिशा में, कैसे और कितना खोलना है यह भी जानते हैं. जितने वे टोंटी खोलने की कला में पारंगत हैं उतने ही बंद करने में निपुण हैं. कौनसी टोंटी कब और कहाँ से बंद करना है, उनसे सीखे कोई. वे जो टोंटी खोलते हैं उसमें से माल ही माल टपकता है. वे गीले नहीं होते, गच्च होते हैं. कभी कभी वे अपनी बचाने के फेर में दूसरों की टोंटी उखाड़ फैंकते है. साले राजनीति में होते तो मोटी धार की टोंटियों से खेल कर रहे होते. जब तक खेलते तब तक खेलते, फिर उखाड़ कर ले जाते.
बहरहाल, किस्से की नैतिक शिक्षा ये श्रीमान कि टोंटियों के साथ थोडा संभलकर बर्ताव कीजियेगा वरना वे ऐसा बर्ताव करेंगी कि आप न सूखे रह पायेंगे न सुखी.
© शांतिलाल जैन
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