श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’
( श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है समसामयिक एवं प्रेरक आलेख लाॅकडाऊन । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 34 ☆
☆ लाॅकडाऊन ☆
आज हम बड़ी विपत्ति में फंसे हुए हैं। हम क्या पूरा संसार दुनिया इटली, अमेरिका जो एक पावर फुल देश है फ्रांस, जर्मनी, युगांडा सब अपने-आप में एक सम्पूर्णता को बनाए रखे हुए हैं, पर एक छोटे से वाइरस ने सबको जड़ से हिलाकर रख दिया है हम उससे हार गए हैं। डर कर लाॅकडाऊन हो गए हैं। हाहाकार मचा हुआ है हर तरफ अब हमारा बैंक बैलेंस सोना, चांदी, हीरे, बड़ी – बड़ी बिल्डिंग, रेस्टोरेंट, फाईव स्टार होटल में खाना, एक से एक मंहगे कपड़े, जूते, चैन, फोरव्हीलर सब जहाँ का तहाँ रखा हुआ है हमारे किसी काम का नहीं है। हम एक जोड़ी कपड़ों में अपना समय निकाल रहे हैं। सारी चीजें अलमारी में पड़ी हुई हैं ।क्यों हुआ ऐसा कभी सोचा नहीं – कभी नहीं।
अब जब हमने सोचा ही नहीं तो प्रकृति को सोचना पड़ा है।
देखिए नदियाँ अपने आप साफ स्वच्छ हो चली हैं और झीलों का क्या कहना- सुंदर अठखेलियां कर रही हैं। सड़क – मार्ग, नालियाँ, गांव, शहर सभी अपना बेलेंस बना चुके हैं।समाज के सभी ठेकेदारों ने खूब कोशिश की स्वच्छता को बनाए रखने की पर नहीं हो सका प्रकृति ने रास्ता निकाल लिया । सब कुछ अपने आप हो रहा। पशु-पक्षी जो साँस लेने मैं भी अचकचा रहे थे सभी बेहतर उड़ान भरने लगे हैं। गहरी साँस के साथ ऊँचे – ऊँचे उड़ने लगे हैं एक मानव ही है जो एक छोटे से वाईरस के कारण घर में दबा बैठा है। हम तो बहुत पीछे आते हैं। बड़े बड़े शहर भी कुछ कर पाए नहीं यहाँ तो नाना पाटेकर का डायलॉग काम कर रहा है “एक मच्छर वाला ” न कर सका वह वाइरस ने क्र दिखाया। यह कह सकते हैं कि हमारे कर्मो का ही फल है जो प्रकृति ने हमें दिया है।
अरे अब तक जो हुआ सो हुआ। अब भी कुछ अच्छे कर्मों से सभी कुछ सुधारा जा सकता है।
धन नहीं, सम्पति नहीं, सभी का सामंजस्य प्रकृति बना रही है। अच्छा बोलिए, मदद करिए, नियम से रहिए यह आदत जब अपने इस लाॅकडाऊन मे पड़ जाऐगी तो सच मानिए कि फिर कोई भी वायरस हमें छू ही नहीं सकेगा अपनी सुरक्षा हम स्वयं कर सकेंगे।
यदि इस लाॅकडाऊन मे निर्मल मन मदद करने की प्रवृत्ति और नियम को आजमा लिया तो मानकर चलिए हम भी उन बड़े देशों जैसे हो जाएँगे जो आज एक उच्च स्तरीय के माने – जाने जाते हैं।
कोरोना का डर घर में ही नहीं बल्कि पूरे देश में गांव में भी है गाँव का आदमी बाहर से किसी को अपने गाँव में पहुंचने नहीं देता एकदम रास्ता रोक देता है।
आज प्रकृति मुस्कुरा रही है क्योंकि उसने सामंजस्य स्थापित कर लिया है और यह मानकर चलिए जब हम लाॅकडाऊन से बाहर होंगे तो हमें भी नियम पालने मे चलने मे असुविधा न होगी
अच्छा सोचिए, अच्छा करिए तब देखिये आप क्या से क्या होंगे और हमारा भारत कहाँ से कहाँ पहुँच जाएगा।
हम एक बेहतर पड़ोसी, बेहतर बेटा, बेहतर पिता बनकर तैयार हो जायेगे। और आगे आने वाले सभी समस्याओं का सामना और समाधान निश्चित रूप से कर पाएंगे।
© श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि ‘
अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश