(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकते हैं ।
आज प्रस्तुत है श्री मुकेश राठौर जी के व्यंग्य संग्रह “अपनी ढ़पली अपना राग” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा। )
व्यंग्य संग्रह – अपनी ढ़पली अपना राग
व्यंग्यकार – श्री मुकेश राठौर
प्रकाशक – बोधि प्रकाशन, जयपुर
पृष्ठ १००
मूल्य १२० रु
☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य संग्रह – अपनी ढ़पली अपना राग – व्यंग्यकार – श्री मुकेश राठौर ☆ पुस्तक चर्चाकार -श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र☆
यूं तो मुझे किताब पढ़ने का सही आनंद लेटकर हार्ड कापी पढ़ने में ही मिलता है, पर ई बुक्स भी पढ़ लेता हूं. मुकेश राठौर जी का व्यंग्य संग्रह अपनी ढ़पली अपना राग चर्चा में है. इसकी ई बुक पढ़ी.
मुकेश जी जुझारू व्यंग्यकार हैं. नियमित ही यहां वहां पढ़ने मिल रहे हैं व अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज करवाते हैं.
उन्हें स्वयं के लेखन पर भरोसा है. संग्रह के कुछ व्यंग्य पूर्व पठित लगे संभवतः किसी पत्र पत्रिका या समूह में नजरो से गुजरे हैं. राजनीति, सोशल मीडीया,मोबाईल, बजट, प्याज, और ग्राम्य परिवेश के गिर्द घूमते विषयो पर उन्होने सार्थक कलम चलाई है. भेडियो की दया याचना संवाद शैली में व्यंग्य का अच्छा प्रयोग है. प्रतीको के माध्यम से न्याय व्यवस्था पर गहरी चोट समझी जा सकती है. बाजा, गाजा और खाजा से शुरू किताब का शीर्षक व्यंग्य अपनी ढ़पली अपना राग छोटा है, वर्णात्मक ज्यादा है इसको अधिक मुखर, संदेश दायक व प्रतीकात्मक लिखने की संभावनायें थीं. सच है जीवन में संगीत का महत्व निर्विवाद है. हर कोई अपने तरीके से अपनी सुविधा से अपनी जीवन ढ़पली पर अपने राग ठेल ही रहा है.
ठगबंधन का कामन मिनिमम प्रोग्राम वर्तमान राजनैतिक स्थितियो कर गहरा कटाक्ष है. घर में ” जितनी बहुयें उतने ही बहुमत “, हम वो नही जो चुनाव जीतने के बाद बदल जायें हमने आपकी सेवा के लिये ही पार्टी बदली है, या बाबुओ की थकती कलम के कारण विलम्बित वेतन जैसे अनेक शैली गत व्यंग्य प्रयोग बताते है कि मुकेश जी में व्यंग्य रचा बसा है वे जिस भी विषय पर लिखेंगे उम्दा लिख जायेंगे. बस विषय के चयन का केनवास बड़ा बना रहे तो उनसे हमें धड़ाधड़ धाकड़ व्यंग्य मिले रहेंगे. यही आकांक्षा भी है मेरी.
समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈