श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री संतोष नेमा जी की काव्य विधा में निहित शक्ति पर आधारित सशक्त कविता “कविता लाती चेतना ………”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़ सकते हैं . )
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 29 ☆
☆ कविता लाती चेतना ……… ☆
कविता आँखे खोलती,कविता लड़ती जंग
कविता लाती चेतना,भरती हृदय उमंग
अंतस् में कविता उतर ,करती मार-प्रहार
दिल में जोश उभारती,कविता की तलवार
शस्त्र अकेले कर सकें,तन पर कड़क प्रहार
अंतर्मन झकझोरती,पर कविता की धार
जब जब कविता ने भरी,प्रबल प्रखर हुंकार
अर्जुन भी उठकर खड़ा ,करता है ललकार
दिला याद इतिहास की,फूँक रही उल्लास
कविता ही रण भूमि में,सदा जगाती आस
आजादी की जंग में,जब भी फूँकी जान
थर्राए अंग्रेज भी,सुन कविता की तान।।
लड़ती भ्रष्टाचार से,रह जन-जन के साथ
अनाचार से लड़ रही,थाम सत्य का हाथ
कविता ने ही देश को,दिया गर्व- सम्मान
कविता की फुफकार को,जाने सकल जहान
झुकी नहीं कविता कभी,हुआ नहीं अवसान
कविता से “संतोष” को,मिला सुखद सम्मान
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)
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