श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए दैनिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “लिखावट…“।)
अभी अभी # ८०३ ⇒ आलेख – लिखावट
श्री प्रदीप शर्मा
लिखावट को बोलचाल की हिंदी में हैंडराइटिंग कहते हैं ! अगर इस उम्र में कोई आपसे कहे कि आप अपनी लिखावट सुधारो, बहुत खराब है, तो आपको कितना बुरा लगेगा । लेकिन जब बुरा समय आता है, तो ऐसा ही होता है ।
आपकी हैंडराइटिंग कितनी भी खराब होगी, पढ़ने में तो आ ही जाती होगी ! लेकिन इन डॉक्टरों की लिखावट का तो बस मरीज़ ही मालिक है । उधर केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना की घोषणा की, इधर मेडिकल कॉलेज ने डॉक्टरों की लिखावट सुधारने के लिए वर्कशॉप आयोजित करने का निर्णय ले लिया । जग-जाहिर हो गया, डॉक्टरों का इलाज कितना भी लाजवाब हो,उनकी हैंडराइटिंग तो माशा-अल्लाह ही है ।।
हम छोटे थे, तो स्कूल में सुन्दर-लेखन प्रतियोगिता होती थी ! सुंदर लेखन पर पुरस्कार दिया जाता था । अगर लिखावट खराब हो, तो किसी सुंदर लिखावट वाले लड़के से प्रेमपत्र लिखवाना एक आवश्यक मज़बूरी हो जाती थी । लड़कियों की लिखावट तो उनके चेहरे की सुंदरता से ही टपकती नज़र आती थी ।
हम भी आज डॉक्टर ही होते,अगर हमारा बचपन सुंदर लेखन में स्वाहा न हो गया होता ! पहले हिंदी अंग्रेज़ी का अक्षर-ज्ञान,उँगलियों पर गिनती-पहाड़ा, पट्टी-पेम के बाद कॉपी पर पेंसिल से लिखाई । हिंदी अंग्रेज़ी लेखन की अलग कॉपी,अंग्रेज़ी सिर्फ़ बड़ी,छोटी ही नहीं,इटैलिक भी ! हर अक्षर की पूँछ और मूँछ दोनों रहती थी ।।
स्याही-दवात और होल्डर ही हमारे नसीब में था तब ! पार्कर पेन का तो बस नाम ही सुना था । क्रोसिन की गोल गोली जैसी स्याही की टिकली आती थी,जिसे पानी की दवात में घोल दिया जाता था, और स्याही तैयार ! होल्डर की निब भी टूटने पर बदलनी पड़ती थी । पिताजी की जेब में लगे फाउन्टेन पेन को बड़ी हसरत की निगाह से देखा करते थे ।
हमारे भी दिन फिरे ! हमें भी पेन नसीब हुआ । तब पेन भी स्याही वाले ही आते थे । पेट्रोल की तरह पेन का मुँह खोल स्याही ड्रॉपर से टपकायी जाती थी,और स्याही भी camel की ही होती थी । कितनी बार बस्ता खराब हुआ,ज़ेब ख़राब हुई,कागज़ खराब हुए,तब जाकर लिखावट रंग लाई ।।
परीक्षा में कितने पन्ने रंगे होंगे,
जीवन के कितने पृष्ठ अनलिखे रह गए होंगे,इसका कोई दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं । आज इंसान बच्चे से गया बीता हो गया है, जो कभी दोस्तों को लंबे-लंबे पत्र लिखा करता था,डायरियां लिखा करता था, अचानक लिखना छोड़ फेसबुक पर चला गया है । बरसों पुरानी चिट्ठियों को सहेजकर रखने वाला,फ़ोन पर मैसेज पढ़ते ही डिलीट कर देता है । कागज़ बचाने के चक्कर में,दुनिया डिजिटल हो रही है । हैंडराइटिंग नहीं,पर्यावरण सुधारिये ।
मुझे डॉक्टरों से सहानुभूति है । ज़ल्दी का काम डॉक्टर का ! ज़ल्दी में लिखावट ऐसी ही हो जाती है । याद है जब क्लास में डिक्टेशन लेते थे,हम पैसेंजर और हमारे सर,फ्रंटियर मेल । घर जाकर फेयर ना करो,तो बिल्कुल डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन नज़र आता था ।।
बहुत कम शुभचिंतक मिलते हैं इस ज़माने में ! खुद को सुधारिये,कहने वाले कई समाज सुधारक मिल जाएँगे । आपका सही शुभचिंतक वही,जो आपसे कहे, कृपया अपनी हैंडराइटिंग
यानी लिखावट सुधारिये ।
मोती जैसे दाँत हों,
मोती जैसे शब्द ।
जो भी पढ़े लिखावट आपकी
हो जाए निःशब्द ।।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
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