ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ एक संवाद ☆ हेमन्त बावनकर ☆

हेमन्त बावनकर

☆ ई-अभिव्यक्ति – एक संवाद ☆ हेमन्त बावनकर ☆

प्रिय मित्रो,

ई-अभिव्यक्ति के सभी प्रबुद्ध लेखकगण तथा पाठकगण के आत्मीय स्नेह के लिए हृदय से आभार।

अक्तूबर २०२५ में आपकी प्रिय वैबसाइट ने सफलवर्ष पूर्ण किये हैं एवं १५ अगस्त २०२५ को ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ने अपने सफल ५ वर्ष पूर्ण कर लिए हैं।  

इन पंक्तियों के लिखे जाते तक ३१,२००+ रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं एवं  710958 से अधिक विजिटर्स आपकी प्रिय वैबसाइट https://www.e-abhivyakti.com पर विजिट कर अपना आत्मीय स्नेह और प्रतिसाद दे चुके हैं.

हमें इस सूचना को आपसे साझा करते हुए अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा है कि ई-अभिव्यक्ति भारत का प्रथम प्रकाशन है जो विगत चार वर्षों से फ्लिपबुक फोर्मेट में हिंदी एवं मराठी भाषा में दीपावली विशेषांक का निःशुल्क प्रकाशन कर रहा है.    

इस सम्पूर्ण यात्रा में हम लोग काफी उतार चढ़ाव से गुजरे. गत एक वर्ष में हमने आपने प्रिय मित्र स्मृतिशेष जय प्रकाश पाण्डेय जी के साथ ही गुरुवर डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ और प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी को खोया है जिनकी स्मृतियाँ सदैव अविस्मृत रहेंगी.  

हमारे सम्पादक मंडल ने अपने प्रबुद्ध लेखकगण एवं पाठकगण के सहयोग से साहित्य सेवा में अपना निःस्वार्थ योगदान देकर साहित्य को नए आयाम देने का प्रयास किया है. 

आप को आश्चर्य होगा कि हमारे संपादक मंडल के सदस्य वरिष्ठ नागरिकों / साहित्यकारों का एक छोटा सा समूह है, जो बिना किसी व्यावसायिक लाभ के अपनी अभिरुचि स्वरुप  स्वान्तः सुखाय उत्कृष्ट साहित्य प्रदान करने को तत्पर है. ई-अभिव्यक्ति नवोदित साहित्यकारों से लेकर सम्माननीय वरिष्ठ साहित्यकारों के साहित्य को एक सम्माननीय  मंच प्रदान करता है और ससम्मान प्रकाशित करने का प्रयास करता है.

हमारे संपादक मंडल का प्रयास रहता है कि – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरा सम्मान देते हुए निर्विवादित साहित्य प्रस्तुत करें। हम रंग, धर्म, जाति और राजनीति से सम्बंधित विवादित साहित्य को कदापि प्रोत्साहित नहीं करते. यदि हमें कोई साहित्य मिलता है तो उसे हम ससम्मान प्रकाशित करते हैं। हाँ साहित्य की अधिकता में कुछ विलम्ब की संभावना हो सकती है. यदि आपका कोई साहित्य प्रकाशित नहीं होता है तो कृपया यह समझा जाए कि वह हमारे निर्धारित साहित्यिक मानदंडों के अंतर्गत नहीं आते और इस सन्दर्भ में आपका सादर सहयोग अपेक्षित है. साहित्य के चुनाव में संपादक मंडल का निर्णय अंतिम एवं मान्य होता  है. 

उपरोक्त सभी उपलब्धियों से ई-अभिव्यक्ति परिवार गौरवान्वित अनुभव करता है। हम कामना करते हैं कि – आप सभी का यह अपूर्व आत्मीय स्नेह एवं प्रतिसाद इसी प्रकार हमें मिलता रहेगा। 

आपसे सस्नेह विनम्र अनुरोध है कि आप ई-अभिव्यक्ति में प्रकाशित साहित्य को आत्मसात करें एवं अपने मित्रों से सोशल मीडिया पर साझा करें। 

आपके विचारों एवं सुझावों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।

एक बार पुनः आप सभी का हृदय से आभार ।

सस्नेह

हेमन्त बावनकर

पुणे (महाराष्ट्र)   

१४ नवम्बर २०२५  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’≈

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ एक संवादी सहप्रवासएक संवादी सहप्रवास ☆ हेमन्त बावनकर ☆

हेमन्त बावनकर

☆ ई-अभिव्यक्ती : एक संवादी सहप्रवास ☆ हेमन्त बावनकर ☆

सस्नेह नमस्कार.

ई-अभिव्यक्ती : साहित्य मंचाचे सर्व सुजाण साहित्यिक आणि वाचक यांचे मी मनापासून आभार मानू इच्छितो.

ऑक्टोबर २०२५ मध्ये आपली ही आवडती वेबसाईट सुरु झाल्याला ७ वर्षं पूर्ण झाली आहेत, आणि ई-अभिव्यक्ती – मराठी विभागाने दि. १५ ऑगस्ट २०२५ रोजी ५ वर्षांचा यशस्वी टप्पा पार केला आहे, ही गोष्ट अतिशय आनंददायक आहे.

…. या मंचावरून आजपर्यंत ३१,२००  पेक्षाही जास्त संख्येने विविध प्रकारच्या साहित्य-रचना प्रकाशित केल्या गेल्या आहेत. आणि 710958  पेक्षाही जास्त संख्येने रसिकांनी https:www.e-abhivyakti.com या आपल्या वेबसाईटला भेट देत उत्तम प्रतिसाद दिलेला आहे.

आपणा सर्वाना हेही ज्ञातच आहे की ई – अभिव्यक्ती साहित्य मंच गेल्या चार वर्षांपासून ‘ फ्लिपबुक ‘ या format मध्ये हिंदी आणि मराठी दिवाळी अंक नि:शुल्क प्रकाशित करत आहे, आणि अशा स्वरूपाचा भारतात प्रकाशित होणारा हा पहिला अंक आहे हे आम्ही अतिशय आनंदाने आणि अभिमानाने सांगू इच्छितो.

…… “ दुधात साखर “ म्हणता येईल अशी ‘ई-अभिव्यक्ती मराठी’ बाबतची आणखी एक विशेष गोष्ट म्हणजे >>> “ Feedspot “ या कंपनीने आपणहून केलेल्या सर्व्हेनुसार, ‘ ९० सर्वोत्तम मराठी ब्लॉग्स च्या त्यांनी केलेल्या यादीमध्ये आपला हा ब्लॉग २८ व्या क्रमांकावर आहे. ( आधीच्या २७ ब्लॉग्सपैकी १३ ब्लॉग्स फक्त वेगवेगळ्या वृत्तपत्रांचे आहेत हे या संदर्भात लक्षात घ्यायला हवे.)

आमच्या जाणकार आणि अनुभवसंपन्न लेखक/लेखिका, आणि कवी/कवयित्रींच्या, तसेच रसिक वाचकांच्या सहकार्याने आमचे संपादक मंडळ या निखळ साहित्य-सेवेसाठी नि:स्वार्थपणे संपूर्ण योगदान देते आहे, आणि साहित्याला एक नवे परिमाण देण्याचा सातत्याने प्रयत्न करत आहे.

… आपणास हे जाणून आश्चर्य वाटेल की आमचे संपादक मंडळ म्हणजे स्वतः साहित्यिक असणाऱ्या ज्येष्ठ नागरिकांचा एक अगदी लहानसा ग्रुप आहे आणि या कामात कुठलाही व्यावसायिक वा आर्थिक लाभ नसतांनाही, निव्वळ त्यांना स्वतःला साहित्याची मनापासून असणारी आवड आणि इतर साहित्यिकांबद्दल वाटणारा सहभाव याच कारणाने अनेकांचे चांगले साहित्य इतर असंख्य लोकांपर्यंत निरपेक्षपणे पोहोचवण्यासाठी हे सगळे संपादक मनापासून, तत्परतेने आणि सातत्याने काम करताहेत…. याला ‘स्वान्त सुखाय‘ असेही म्हणता येईल. नवोदित साहित्यिकांपासून ते सन्मान्य ज्येष्ठ साहित्यिकांपर्यन्त सर्वांसाठीच हा एक सन्माननीय साहित्य मंच सातत्याने उपलब्ध आहे, आणि अशा सर्वांनी आमच्याकडे पाठवलेले साहित्य नियमित स्वरूपात योग्य प्रकारे प्रकाशित करण्याचा मनापासूनचा प्रयत्न या मंचावरून सातत्याने केला जात आहे.

इथे आवर्जून एक गोष्ट सांगायला हवी ती अशी की, प्रत्येकाच्या अभिव्यक्ती-स्वातंत्र्याचा पूर्णतः आदर करत असतांनाच, कुठच्याही प्रकारचा जातीयवाद, धर्मवाद, किंवा राजकारण या संदर्भातले, किंवा इतर कुठलेही.. कुठल्याही प्रकारे विवाद्य ठरेल असे साहित्य वगळता, आम्हाला पाठवलेले सर्व साहित्य सन्मानपूर्वक प्रकाशित करायचे हाच संपादक मंडळाचा सततचा प्रयत्न असतो. अर्थात जेव्हा आमच्याकडे एकाच वेळी जास्त प्रमाणात साहित्य आलेले असते तेव्हा ते प्रकाशित व्हायला उशीर होण्याची शक्यता असते… नव्हे, बऱ्याचदा असा उशीर नाईलाजाने होतोही… पण ते प्रकाशित केले जातेच आणि याची दक्षता घेतली जाते.

…. पण आपले एखादे साहित्य अजिबातच प्रकाशित केलेच गेले नाही तर कृपया असे गृहीत धरावे की आम्ही निर्धारित केलेले साहित्यिक मानदंड लक्षात घेऊनच अशा साहित्याचा समावेश केला गेलेला नाही….. आणि या बाबतीत आपणा सर्वांचे सकारात्मक सहकार्य अपेक्षित आहे. साहित्याची निवड करण्याबाबतचा अंतिम निर्णय संपादक मंडळाचा असेल याची कृपया दखल घ्यावी

ई – अभिव्यक्ती परिवारासाठी आपल्या सर्वांचा उत्स्फूर्त सहभाग खरोखरच गौरवास्पद आहे…

आपणा सर्वांचा हा अनोखा स्नेह आणि मनापासूनचा प्रतिसाद असाच आम्हाला सतत मिळत राहू दे.

या निमित्ताने एक नम्र विनंती अशी की या मंचाद्वारे दैनिक स्वरूपात प्रकाशित होणारे सगळे साहित्य आपण स्वतः तर न चुकता वाचावेच, आणि सोशल मीडियाद्वारे आपल्या परिचितांनाही पाठवावे … जेणेकरून, एक साहित्यिक लिखाण अनेकांपर्यंत सहजपणे पोहोचावे हा या मंचाचा निरपेक्ष हेतू सफल होईल.

आपले विचार आणि सूचना नेहेमीच स्वागतार्ह आहेत.

आपणा सर्वांचे पुन्हा एकदा अगदी मनापासून आभार … आपल्यामधली ही स्नेहभावना सतत वृद्धिंगत होवो हीच कामना.

आपला स्नेहांकित,

हेमन्त बावनकर

पुणे (महाराष्ट्र)   

१४ नवम्बर २०२५  

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिंदी साहित्य – आलेख ☆ चिनारों की चित्रकारी- लाल पीली सुनहरी ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ आलेख ☆ “चिनारों की चित्रकारी- लाल पीली सुनहरी” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

कभी मैंने पारिजात के लिये लिखा था—अवसान भी हो मधुरतम

यही पंक्तियां मैं लासानी चिनारों को अर्पित कर रही हूँ। शरद ऋतु का सिंगार करती, उसके मसृण स्वभाव से मेल खाती, चिनार से झरती हुई पत्तियां लाल पीली  सिन्दूरी, भूरी ,सुनहरी , सूर्य किरणों के झरने में नहाती,मिट्टी के परस से रोमांचित होती, नर्म कोमल हवाओं की बाँहों में बाँहें डाले सौंदर्य का स्वर्ग रचती हैं।

कितनी अजीब है प्रकृति बहारों में दीवाना बनाती है और पतझड़ में दार्शनिक रूप से मोह लेती है।

शाखों से झरने का, अलग होने का  दर्द इन पत्तियों के अलावा और कौन समझ सकता है।वे नहीं जानतीं कि लोग उनकी पीड़ा में भी आसक्ति ढूँढ लेते हैं।रूहानी सुकून महसूसते हैं।

जिन्दगी स्वयं को कभी नहीं दोहराती।दोहराव में भी नयापन होता है।जैसे इस खूबसूरत मंज़र को यादों में जिन्दगी मिलती है।जिसे मन की आँखें अपने एलबम में सहेज लेती हैं।

वन में रूप की ज्वाला केवल पलाश ही नहीं भड़काते, चिनारों को भी यह श्रेय दिया जाना चाहिए।

बेहद तकलीफ होती है यह देखकर कि जिन रंगीन पत्तों का राशिभूत सौंदर्य काबू में करने के लिए पर्यटकों के कैमरे निकल आते हैं उन्हीं पत्तों को कुछ कश्मीरी ठंड भगाने के लिए जला देते हैं।

बर्फानी ठंड के लिए रूपरेखा बनाती हुई  कश्मीर की वादी पत्तों की खामोशी का तर्जुमा कर नहीं पाती। ऐश्वर्य दिखाने के नाम पर मिट्टी को सौंप देती है। बेरहम ।

किसी शायर ने क्या खूब कहा है—-

उदासी रूह से गुजरी है

इस तरह जैसे

उजाड़ दश्त में पतझड़ की

दोपहर तन्हा।।

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

8/11/25

नागपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # २६६ ☆ ग्रीन मोटिवेशन: अगहन गुरुवार का आधुनिक संदेश… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना ग्रीन मोटिवेशन: अगहन गुरुवार का आधुनिक संदेश। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # २६५ ☆ ग्रीन मोटिवेशन: अगहन गुरुवार का आधुनिक संदेश…

*

पौधे लगाएँ आप ढेरों, भावना मंगल करें।

फैली यहाँ हरियालि देखो, पीर मन की जो हरें।

सारे करेंगे अनुसरण तो, श्रेष्ठ होगी कल्पना।

द्वारे सजेंगे आम्र पत्ते, भव्य होगी अल्पना।।

*

आज जब दुनिया पेड़ों को खो रही है, अगहन का गुरुवार हमें अपनी जड़ें याद दिलाता है। यह दिन एक तरह से प्रकृति की पुकार है, जैसे धरती नरम आवाज में कहती हो: “मेरी देखभाल भी पूजा का हिस्सा है।”

इस वर्ष अगहन मास (मार्गशीर्ष मास) 6 नवंबर 2025 को आरंभ हुआ है।

  1. पौधरोपण की शुभ शुरुआत

लोग मानते हैं कि इस दिन लगाया गया पौधा घर में शांति और स्थिरता लाता है। आप इस अवसर पर अपने घर, मोहल्ले या खेत की किनारियों पर एक पौधा अवश्य लगाइए।

यह पौधा आने वाले समय में आपकी मेहनत, धैर्य और उम्मीदों का एक जीवित रूप बन जाता है।

  1. परिवार को ‘ग्रीन संकल्प’ दिलाएँ

एक छोटा-सा संकल्प बनाया जा सकता है—

  • हर महीने एक पौधा
  • पानी की बचत
  • किचन वेस्ट से खाद
  • प्लास्टिक का कम उपयोग

अगहन गुरुवार इस संकल्प को शुरू करने का शांत और पवित्र बनाइए।

  1. धान कटाई और कृतज्ञता का संदेश

किसानों के लिए यह महीना धरती द्वारा दिया गया उपहार है। ग्रीन मोटिवेशन यही कहता है कि उपहार को लौटाना भी जरूरी है—

थोड़ा पानी बचाकर, थोड़ी छाँव उगाकर, थोड़ा हरापन फैलाकर।

  1. सोशल मीडिया पर सकारात्मक हरियाली

डिजिटल प्रयास करें…

  • एक पौधा लगाने का छोटा वीडियो
  • अपने आँगन की हरियाली दिखाएँ
  • अगहन गुरुवार का ‘धीमा, शांत और हरा’ संदेश शेयर करें।

इससे यह पर्व केवल कैलेंडर का हिस्सा नहीं, बल्कि जीवन में ताजगी भरने का दिन बनेगा।

अगहन गुरुवार को परंपरा की पीली रोशनी और हरियाली की ठंडी छाया से सराबोर करते हुए आगे बढ़ें। इस दिन की सुंदरता यही है कि यह मन को शांत करता है और धरती से जोड़े रखता है। और जब मन और मिट्टी दोनों मुस्कुराएँ, तभी जीवन सच्चे अर्थों में समृद्ध होता है।

**

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, chhayasaxena2508@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विधान ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – विधान ? ?

चाँदनी के आँचल से

चाँद को निरखते हैं,

इतने विधानों के साथ

कैसे लिखते हैं..?

सीधी-सादी कहन है मेरी

बिम्ब, प्रतीक,

उपमेय, उपमान

तुमको दिखते हैं..!

?

© संजय भारद्वाज  

21.10.20, रात्रि 10:09

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 6 नवम्बर से मार्गशीर्ष साधना आरम्भ होगी। इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️ 

🕉️ इसके साथ ही हम श्रीमद्भगवद्गीता का पारायण करेंगे। इसमें 700 श्लोक हैं। औसत 24 श्लोक या उनके अर्थ का यदि दैनिक रूप से पाठ करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ दक्षिण कोरिया – कोरिया के सांस्कृतिक उत्सव ☆ डॉ प्रतिभा मुदलियार ☆

डॉ प्रतिभा मुदलियार

☆ संस्मरण ☆ दक्षिण कोरिया – कोरिया के सांस्कृतिक उत्सव ☆ डॉ प्रतिभा मुदलियार ☆ 

भारत उत्सवों का देश है। जैसे ही श्रावण खतम हो जाता है.. पर्व एवं उत्सव शुरु हो जातें है.. लगभग हर माह कोई न कोई त्योहार होता ही है… कोरिया में रहते मैंने अपने देसी त्योहारों को मिस जरुर किया पर कोरिया के उत्सव पर्वों का आनंद भी उठाया… कोरिया में रहते कोरियाई संस्कृति को जानने समझने का एक अच्छा तरीका है कोरियाई लोंगों के साथ उठना बैठना… उनके साथ घूमना फिरना जिससे हम उनकी संस्कृति को उनके रहन सहन को समझ सकते हैं…. हम हुफ्स के प्रोफेसर्स.. अर्थात हांकुक युवर्सीटी के प्रोफेसर्स के लिए हमारे छात्र छात्राएँ ऐसा अवसर प्रदान करते थे… उनके साथ जाने में मज़ा भी आता था… कोरिया में हर जगह मेट्रों से पहुँचने में आसानी होती है.. मेट्रों का मैप हाथ में हो और उसे समझ लो तो आसानी से कहीं से भी आना जाना सहज संभव हो सकता है…।

हमारे घर के प्रमुख दो त्योहार गणेश चतुर्थी और दीपावली.. पर कोरिया में रहते वक्त तीन साल मैं इन त्योहारों पर घर नहीं आ सकी थी… क्योंकि आना संभव नहीं था…एम्बेसी में दीपावली का जश्न ज़रूर होता था… पटाखें फोडने के लिए कोरिया सरकार एक खास जगह मुहैया कर देती वहाँ जाकर पटाखें फोडे जा सकते हैं….. मतलब विदेश में रहकर… भले ही दीपाली मनायी हो पर वहाँ के त्योहार भी आनंद उत्सव से कम नहीं होते….

एक दिन मैं जब अपने युनिवर्सीटी गयी थी तो देखा… सारा युनिवर्सीटी सुसज्जित था… छात्र छात्राएँ…. अलग अलग तरह के वेश बनाकर विशेषकर कार्टुन को वेश धारण कर… जिसमें सबसे बढिया था. पांडा और दूसरा था  मिकी माउस.. जैसे ही मैं युनिवर्सीटी के आहाते में आयी तो.. हे केसोनिम…नमस्ते जी.. कहकर एक पांडा मेरी तरफ आया… और मैं पल भर के लिए पीछे हट गयी.. और दूसरे ही पल मैं हँस पड़ी…ये पल मैं केमेर में कैद न करूँ.. ऐसा हो ही नहीं सकता… फिर देखा जगह जगह पर छात्र मास्क लगाए है… जब क्लासेस खतम कर बाहर निकली तो  चौराहों पर भी कुछ लोग मास्क लगाए……खुश हो रहे थे…. समझ तो उस समय नहीं आया फिर बाद में पता चला कि  दक्षिण कोरिया में वसंत और पतझड़ जीवंत मौसम होते हैं, जहाँ लगभग हर सप्ताहांत देश में कहीं न कहीं कोई उत्सव होता ही रहता है। कुछ, जैसे एंडोंग इंटरनेशनल मास्क फेस्टिवल, बड़े आयोजन होते हैं जो पूरे दक्षिण कोरिया से लोगों को आकर्षित करते हैं।

दक्षिण कोरिया में सबसे प्रिय उत्सवों में से एक चंद्र नव वर्ष है, जो पारिवारिक पुनर्मिलन, पैतृक संस्कारों और उत्सवी परंपराओं का समय होता है। सियोलाल के नाम से जाना जाने वाला यह त्योहार चंद्र कैलेंडर के पहले दिन को चिह्नित करता है और दक्षिण कोरिया के सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। लोग पारंपरिक हानबोक पहनते हैं, युत नोरी जैसे लोक खेल खेलते हैं, और समृद्धि और एक नई शुरुआत के प्रतीक, टेटोकगुक जैसे विशेष व्यंजनों का आनंद लेते हैं। कोरिया में रहते मैंने देखा था कि सियोल के बोकसुन घंटाघर के चौक में ठंडी रात के समय लोग धीरे-धीरे इकट्ठा होने लगते हैं। हर कोई रंग-बिरंगे हानबोक में सज-धज कर आया है। बच्चों की आँखों में उत्साह झलकता है, जबकि बुजुर्गों के चेहरे पर शांत आशीर्वाद का भाव है।

घंटाघर के विशाल दरवाजों के पीछे से, आधिकारिक स्वर में नववर्ष का स्वागत होने वाला है। लोग घड़ी की सुइयों को ध्यान से देखते हैं, और जैसे ही मध्यरात्रि का समय आता है, घंटा जोर से बजता है। इसकी गूँज पूरे चौक में फैलती है। भीड़ में लोग एक-दूसरे को “सेबे” करते हुए नववर्ष की शुभकामनाएँ देते हैं। बे का शाब्दिक अर्थ है “गहरी झुक कर सम्मान प्रकट करना”। यह मुख्य रूप से बुजुर्गों या परिवार के वरिष्ठ सदस्यों को नववर्ष की शुभकामनाएँ देने के लिए किया जाता है। बच्चे और युवा, हाथ जोड़कर और पूरी तरह झुककर बुजुर्गों के सामने खड़े होते हैं।  कुछ युवा पारंपरिक नृत्य करते हैं, तो कुछ हाथ में छोटे दीपक लेकर खड़े हैं। वातावरण में उत्सव की खुशबू है, हल्की ठंडी हवा के बीच बच्चे हँसी-खुशी दौड़ते हैं।

एक बार मेरी सहेली पढानेवाली कुलीग मोशा ने मुझे कहा उसके छात्र चुसक के लिए उसके घर निमंत्रित कर रहे हैं… तुम भी मेरे साथ चलो… मैं उसके छात्रों से परिचित थी तो मैं भी उसके साथ जाने के लिए राज़ी हो गयी। चुसक कोरियाई लोगों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है… यहाँ जाने के लिए बहुत पहले से ही अपने अपने गाँव शहर जाने के लिए बुकिंग की जाती है.. वरन् बुकिंग मिलना संभव नहीं होता…. हम कैब से चले गए इसलिए… बुकिंग की दिक्कत नहीं थी…यह त्योहार अक्तुबर महीने में आता है… और लगभग पूरे कोरिया में इस दौरान छुट्टी रहती है…मैं और मोशा हमारे छात्र के साथ उनके गाँव पहुँचे… कहने के लिए यह गाँव है… लेकिन हर सुविधा यहाँ मिलती है..यह त्योहार एक ‘थैंक्सगिविंग’ जैसा त्योहार है। परिवार इकट्ठा होकर पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और ‘सोंगप्योन’ नामक अर्धचंद्राकार चावल के केक खाते हैं। हम एक रात वहीं रुके थे… हमने परिवार वालों के साथ बैठकर सौंगप्योन बनाने में मदद की थी…मुझे दिवाली की याद आयी कि किस तरह हम भारतीय भी दिवाली के पहले रात में जागकर ढेर सारी मिठाई आदि बनाते हैं… कोरियाई लोग बहुत आत्मीय और विनम्र होते हैं…हम उस परिवार के साथ घुल मिल गए.. थोडी थोडी कोरियन और अंग्रेजी को मिलाकर हमारा संवाद चल रहा था… बीच बीच में उनको हिंदी के अभिवादन बता रही थी… नमस्ते, धन्यवाद, आप कैसे हैं? ठीक है.. कोई बात नहीं… अच्छा.. उन्हें बड़ा मज़ा आ रहा था।

दूसरे दिन हम सारे तैयार होकर फल, सोंगप्योन, वाईन, मांस आदि साथ लेकर एक छोटी सी पहाडी पर गए… वहाँ उस परिवार के पूर्वजों की कब्रे थी…तुक क पहले ही दिन घर के पुरषों ने वहाँ जाकर साफ सफाई की थी… हम गए थे तबतक वे कब्रे फूलों से शोभायमान थी…. वहाँ लायी हुई चीजें पूर्वजों के कब्र के सामने रख दी गई…शांति से प्रार्थना की गई… भोग चढ़ाया गया… अगरबत्ती औऱ कैंडल्स जलाए गए….श्रद्धा से सबने एक दूसरे को अभिबादन किया वहीं पर खा पीकर वापस लौटे… यह त्योहार मुझे अपने पितृपक्ष की पूजा जैसा लगा था..

*********                          

©  डॉ प्रतिभा मुदलियार

पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, मानसगंगोत्री, मैसूरु-570006

306/40, विमल विला, निसर्ग कॉलोनी, जयनगर, बेलगाम, कर्नाटक

मोबाईल- 09844119370, ईमेल:    mudliar_pratibha@yahoo.co.in

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # ३८४ ☆ व्यंग्य – “सत्य का डॉक्टर्ड वीडियो” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # ३८४ ☆

?  व्यंग्य – सत्य का डॉक्टर्ड वीडियो ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

सत्य संशय में है,गांधी जी के तीनो जापानी बंदर  अब ए आई के जमाने में अपडेट हो चुके हैं। एक ने मुंह पर मोबाइल के पैक डिब्बे से निकला  टेप चिपका लिया है , दूसरा कानों में इयरबड लगाकर कह रहा है मैं एआई फेक नहीं सुनता , यह मेरी समझ से बाहर है, तीसरा कैमरे के सामने हाथ हिलाकर कह रहा है अब मुझे मत शूट करो भाई, मुझे वीडियो साक्ष्य पर अब भरोसा नहीं रहा ।

कभी लोग कहते थे जो आंखों देखा वही सच। पर आज वही वीडियो सत्य , झूठ साबित हो रहा है। आंखों देखी अब भरोसे के काबिल नहीं रही। आंखें तो अब मोबाइल स्क्रीन पर टिकी रहती हैं और स्क्रीन पर जो कुछ दिखता है वो जेमिनी और उसके भाई बंधुओं का बनाया हुआ मायाजाल होता है। अब कोई भी वीडियो सच नहीं होता बस ए आई एडिटिंग की उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन होता है। पल भर में आप शेर की सवारी करते नजर आ सकते हैं, और अगले ही क्षण एक क्लिक से  गोआ के बीच पर रंगरेलिया मनाते दिखाए जा सकते हैं। वीडियो सत्य भी डॉक्टर्ड है जो फॉरेंसिक जांच के प्रमाण पत्र के बिना झूठ समझा जा सकता है।

पहले कोई रिश्वत लेते पकड़ा जाता था तो कहा जाता था कि वीडियो साक्ष्य पक्का सबूत है। अब वही अफसर मुस्कराकर कहता है साहब ये तो जेमिनी का बनाया हुआ वीडियो है ।  विभाग जांच बैठा देता है कि यह रिश्वत असली है या आर्टिफिशियल। रिश्वतखोर कहता है कि नोटों के बंडल तो मेरी जेब में खुद एआई ने डाले थे मैं तो फाइल में गांधी जी के आदर्श ढूंढ रहा था, यह सब मेरे विरुद्ध एक टेक्निकल साजिश है।

अब न्यायालय भी परेशान है। वकील साहब कहते हैं कि माय लॉर्ड यह वीडियो पूरी तरह से कंप्यूटर जनित भ्रम है। जज साहब सोच में पड़ जाते हैं कि फैसला सुनाएं या अपडेट डाउनलोड करें। अदालत में गवाह कहता है मैंने अपनी आंखों से देखा और सामने वाला वकील पूछता है क्या आपकी आंखें जेमिनी से वेरीफाइड थीं।

प्रेम की दुनिया भी इस तकनीक की शिकार हो गई है। अब लड़की पूछती है क्या तुम सच में मुझसे प्यार करते हो और लड़का कहता है जितना प्यार जेमिनी मुझसे करता है। अब रोमांस नहीं होता रेंडरिंग होती है। लोग कहते हैं वीडियो कॉल पर कितने प्यारे लगते हो और सामने मिलते ही पूछ बैठते हैं , आप कौन हैं। प्यार  बस एचडी क्वालिटी में दिखने वाला झूठ बन गया है।

शर्मा जी का हाल तो और भी खराब हुआ। ऑफिस में एक वीडियो फैला जिसमें वे अपनी टीम मेंबर के साथ पार्किंग में कुछ ज्यादा ही टीमवर्क करते दिखे। बीवी ने मोबाइल दिखाकर कहा ये कौन है। शर्मा जी बोले ये सब डीपफेक है , मैं तो बोर्ड मीटिंग में था। बीवी बोली बोर्ड मीटिंग में तुमने थाईलैंड जाने की बात कब से शुरू कर दी। शर्मा जी ने पसीना पोंछते हुए कहा अब जेमिनी आवाज तक कॉपी कर लेता है। बीवी बोली तो क्या अब मैं जेमिनी से पूछूं कि मेरा असली पति कौन है।

भ्रष्टाचार अब  कला का रूप ले चुका है। पहले चोरी करते लोग डरते थे अब चोरी का वीडियो खुद बनाते हैं और लिखते हैं यह समाजशास्त्र का प्रयोग है। अब चोर भागता नहीं इंटरव्यू देता है। कहता है मैंने चोरी नहीं की,  जेमिनी ने सिखाया था,  मैं तो अनुसंधान कर रहा था। पुलिस भी अब सर्वर से पूछताछ करती है अपराधी नहीं पकड़ा जाता उसका डेटा पकड़ा जाता है।

जनता की हालत और भी दयनीय है। सुबह सोशल मीडिया खोलते ही हर आदमी किसी न किसी स्कैंडल का हिस्सा होता है। कोई नेता रिश्वत लेता है । कोई संत भगवत कथा सुनते हुए लड़कियों के संग गुप्त तपस्या में लीन पकड़ा जाता  है ।  और हर कोई कहता है ये सब फेक वीडियो है। साजिश है ।अब भ्रम है ,  कौन असली है कौन आर्टिफिशियल। अब जो झूठ बोलता है वो मासूम कहलाता है और जो सच बोल देता है वो एआई विरोधी माना जाता है।

थाईलैंड अब एक पर्यटन स्थल नहीं वैवाहिक विवाद का प्रतीक बन गया है। कोई भी पुरुष वहां न भी जाए तो भी उसका डिजिटल वर्जन घूम आता है। बीवी वीडियो दिखाती है , देखो ये तुम बीच पर हो और पति कहता है ये फेस स्वैप है। बीवी कहती है तो पासपोर्ट की फोटो में वही मुस्कान क्यों है।  अब सच्चाई भी सर्वर की मरजी से चलती है।

सच अब वैसा है जैसे सरकारी टेंडर हमेशा अटैचमेंट में छुपा रहता है। या शेयर इनवेस्टमेंट की बारीक अक्षरों वाली शर्तों में। लोग कहते हैं सच देखना हो तो वीडियो भेजो और वीडियो भेजते ही सबूत मिट जाता है। जो सच था वो फाइल बन गया और जो झूठ था वो ट्रेंडिंग वायरल टॉपिक।

भविष्य का बच्चा स्कूल में निबंध लिखेगा मेरा असली पिता कौन है। परीक्षा में पूछा जाएगा सत्य और डीपफेक का तुलनात्मक अध्ययन। और विज्ञान मेले में बच्चे प्रोजेक्ट लगाएंगे सच्चाई को फर्जी बनाने की मशीन।

अब हर सत्य संशय में है। कोई कहता है मैंने देखा तो लोग कहते हैं स्क्रीन रिकॉर्डिंग दिखाओ। कोई कहता है मैं निर्दोष हूं तो जवाब मिलता है प्रमाण दो कि तुम इंसान हो न कि किसी सॉफ्टवेयर का एक्सपेरिमेंट।

सच बोलना अब अपराध है क्योंकि झूठ जेमिनी की मेहरबानी से और खूबसूरत हो गया है।

वीडियो साक्ष्य का सचमुच अंत हो चुका है। अब सच्चाई क्लाउड में अपलोड है और झूठ हर मोबाइल के व्हाट्सअप पर डाउनलोड हो रहा है। जो दिख रहा है वो झूठ है और जो नहीं दिख रहा वह सच हो इसमें सदा संशय है।

कहते हैं सत्य परेशान हो सकता है पर पराजित नहीं। पर जेमिनी के जमाने में सत्य न सिर्फ परेशान है बल्कि एडिट भी हो चुका है।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल apniabhivyakti@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ चुभते तीर # ७१ – व्यंग्य – अपेक्षा, जीवन का लाइसेंस ☆ डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ ☆

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

(‘उरतृप्त’ उपनाम से व्यंग्य जगत में प्रसिद्ध डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा अपनी भावनाओं और विचारों को अत्यंत ईमानदारी और गहराई से अभिव्यक्त करते हैं। उनकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण उनके लेखन के विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान से मिलता है। वे न केवल एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं, बल्कि एक कवि और बाल साहित्य लेखक भी हैं। उनके व्यंग्य लेखन ने उन्हें एक विशेष पहचान दिलाई है। उनका व्यंग्य ‘शिक्षक की मौत’ साहित्य आजतक चैनल पर अत्यधिक वायरल हुआ, जिसे लगभग दस लाख से अधिक बार पढ़ा और देखा गया, जो हिंदी व्यंग्य के इतिहास में एक अभूतपूर्व कीर्तिमान है। उनका व्यंग्य-संग्रह ‘एक तिनका इक्यावन आँखें’ भी काफी प्रसिद्ध है, जिसमें उनकी कालजयी रचना ‘किताबों की अंतिम यात्रा’ शामिल है। इसके अतिरिक्त ‘म्यान एक, तलवार अनेक’, ‘गपोड़ी अड्डा’, ‘सब रंग में मेरे रंग’ भी उनके प्रसिद्ध व्यंग्य संग्रह हैं। ‘इधर-उधर के बीच में’ तीसरी दुनिया को लेकर लिखा गया अपनी तरह का पहला और अनोखा व्यंग्य उपन्यास है। साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को तेलंगाना हिंदी अकादमी, तेलंगाना सरकार द्वारा श्रेष्ठ नवयुवा रचनाकार सम्मान, 2021 (मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के हाथों) से सम्मानित किया गया है। राजस्थान बाल साहित्य अकादमी के द्वारा उनकी बाल साहित्य पुस्तक ‘नन्हों का सृजन आसमान’ के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है। इनके अलावा, उन्हें व्यंग्य यात्रा रवींद्रनाथ त्यागी सोपान सम्मान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों साहित्य सृजन सम्मान भी प्राप्त हो चुका है। डॉ. उरतृप्त ने तेलंगाना सरकार के लिए प्राथमिक स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर कुल 55 पुस्तकों को लिखने, संपादन करने और समन्वय करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बिहार, छत्तीसगढ़, तेलंगाना की विश्वविद्यालयी पाठ्य पुस्तकों में उनके योगदान को रेखांकित किया गया है। कई पाठ्यक्रमों में उनकी व्यंग्य रचनाओं को स्थान दिया गया है। उनका यह सम्मान दर्शाता है कि युवा पाठक गुणवत्तापूर्ण और प्रभावी लेखन की पहचान कर सकते हैं।)

जीवन के कुछ अनमोल क्षण 

  1. तेलंगाना सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री के. चंद्रशेखर राव के करकमलों से  ‘श्रेष्ठ नवयुवा रचनाकार सम्मान’ से सम्मानित। 
  2. मुंबई में संपन्न साहित्य सुमन सम्मान के दौरान ऑस्कर, ग्रैमी, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, दादा साहब फाल्के, पद्म भूषण जैसे अनेकों सम्मानों से विभूषित, साहित्य और सिनेमा की दुनिया के प्रकाशस्तंभ, परम पूज्यनीय गुलज़ार साहब (संपूरण सिंह कालरा) के करकमलों से सम्मानित।
  3. ज्ञानपीठ सम्मान से अलंकृत प्रसिद्ध साहित्यकार श्री विनोद कुमार शुक्ल जी  से भेंट करते हुए। 
  4. बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट, अभिनेता आमिर खान से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
  5. विश्व कथा रंगमंच द्वारा सम्मानित होने के अवसर पर दमदार अभिनेता विक्की कौशल से भेंट करते हुए। 

आप प्रत्येक गुरुवार डॉ सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – चुभते तीर में उनकी अप्रतिम व्यंग्य रचनाओं को आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय व्यंग्य – अपेक्षा, जीवन का लाइसेंस)  

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ चुभते तीर # ७१ – व्यंग्य – अपेक्षा, जीवन का लाइसेंस ☆ डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ 

(तेलंगाना साहित्य अकादमी से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

अरे भैया, आप भी क्या खूब बात कर दिए! अपेक्षाएँ यानी आशाएँ! हा हा हा। यह तो ऐसा हो गया जैसे कहो कि पेट्रोल यानी गंगाजल। भई, गंगाजल से प्यास बुझती है, आस्था जगती है, पर पेट्रोल तो आग लगाता है! हमारी आपकी इस फालतू-सी जिंदगी में ये जो ‘अपेक्षा’ नाम का लाइलाज कोढ़ है न, यह केवल आशा का नाम नहीं है, यह तो जीवन का लाइसेंस है, और मृत्यु का वारंट भी! लाइसेंस इस बात का कि हाँ, तुम अभी जिंदा हो, क्योंकि तुम्हें किसी पड़ोसी की नई कार से, किसी रिश्तेदार की झूठी तारीफ से, या खुद अपनी निकम्मी औलाद से कोई गंभीर-सी अपेक्षा बाकी है। जिस दिन ‘जीने की वजह’ खत्म हो जाएगी, उसी दिन यह निरुद्देश्य जीवन जो तुम कोस रहे हो, वह अपने चरम पर पहुँच जाएगा। लेकिन ‘निरुद्देश्य जीवन’ भी कोई जीवन है? बिलकुल नहीं, वह तो सरकारी अस्पताल की फाइल है, जिसका कोई अता-पता नहीं, बस मोटी होती जाती है।

हमारे ‘मामाजी’ की अपेक्षाएँ तो इतनी ऊँची थीं कि छत से लगकर वापस आती थीं। उन्हें अपेक्षा थी कि उनकी मृत्यु पर कम से कम बीस हज़ार लोग रोएँ, जिसमें दस हज़ार तो ‘शो ऑफ’ करने वाले ही हों। और जब मरे, तो कुल पंद्रह आदमी पहुँचे, जिनमें से ग्यारह केवल खाना खाने के लिए आए थे। और आप कहते हैं कि अपेक्षाएँ रखनी चाहिए? ज़रूर रखिए! लेकिन यह ध्यान रखिए कि अपेक्षा जिससे रख रहे हैं, वह इंसान है—यानी फिसड्डी, कामचोर और मतलबी। आप अपेक्षा रखिए कि आपकी पत्नी चाय बनाएगी, और वह आपको ज़हर भी दे सकती है! और हाँ, यह बात तो बिलकुल ही सही है कि ‘पूरी न हो पाने पर निराश नहीं होना चाहिए’। यह उपदेश नहीं है, यह तो राष्ट्रीय चरित्र बन चुका है! हर भारतीय यही उपदेश देता है, क्योंकि हममें से किसी की कोई अपेक्षा पूरी नहीं होती, इसलिए हम निराश नहीं होते, हम बस सन्न रह जाते हैं। यह निराशा नहीं, यह जन्मजात उदासीनता है। अपेक्षा रखो, और जब पूरी न हो, तो बस हँसो, एक ऐसी हँसी जो भीतर ही भीतर आपकी आँतों को निचोड़कर रख दे। यही जीवन का सबसे बड़ा व्यंग्य है, मेरे भाई।

वाह! क्या बात कही है! “जिंदगी चलने का नाम है”! बिलकुल, जिंदगी ऐसे ही चलती है, जैसे सरकारी बाबू की फाइल। धीरे-धीरे, रेंगते हुए, बिना किसी उद्देश्य के, और अंततः एक रद्दी के ढेर में सिमटकर। और ये जो इच्छाएँ अनन्त हैं न, यह तो ऐसा जुमला है, जिसे सुनकर तो आँखों में आँसू आ जाने चाहिए! एक इच्छा पूरी हुई नहीं कि दूसरी ने बेलन लेकर सिर पर दस्तक दे दी। अरे भाई, ये इच्छाएँ नहीं हैं, ये तो ब्याज हैं, जो हम अपनी आत्मा से ले रहे हैं! पहली इच्छा (एक साइकिल) पूरी होती है तो दूसरी (एक स्कूटर) तुरंत माँग पत्र भेज देती है। स्कूटर मिलता है तो तीसरी (एक सरकारी नौकरी) एफिडेविट लेकर खड़ी हो जाती है! यह अनन्तता नहीं है, यह तो नरक का इन्फिनिटी लूप है। एक इच्छा-पूर्ति का सुख सिर्फ दो मिनट का होता है, और अगली इच्छा का दुख दो जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ता।

जिस दिन सब पूरी हो जाएँ, यानी मन निर्मोही हो जाए! हा हा हा! यह तो भारतीय आध्यात्म का सबसे क्रूरतम व्यंग्य है। मन निर्मोही हो जाए? यानी मन काम करना बंद कर दे, यानी मन की मशीन में जंग लग जाए। तब मोक्ष मिलेगा? मोक्ष नहीं मिलेगा मेरे दोस्त, अधूरे सपनों का भूत मिलेगा, जो रात भर कान में फुसफुसाएगा, “क्यों नहीं किया? क्यों छोड़ दिया?” और आप कहते हैं कि तब व्यक्ति मरे हुए के समान हो गया? बिलकुल! मरे हुए के समान नहीं, बल्कि सच्चा भारतीय नागरिक हो गया! क्योंकि यहाँ आदमी जिंदा कम, मरा हुआ ज़्यादा नज़र आता है। सुबह-शाम काम करता है, बच्चों को पालता है, समाज को गालियाँ देता है, लेकिन भीतर से वह कोरा कागज़ है, जिस पर कोई इच्छा, कोई अपेक्षा अब कोई रंग नहीं भर पाती। यह जीती-जागती लाश बनना ही तो ‘मोक्ष’ है—उस मोक्ष का, जो इस समाज ने हमें उपहार में दिया है! अपेक्षा ही तो वह काला धागा है, जो हमें खुद से और दूसरों से बाँधे रखता है। यह धागा टूट जाए तो आदमी निर्गुण ब्रह्म हो जाए, यानी बेकार!

अपेक्षा ही वह जीवन-पथ है, जो निरंतर जीवन्तता की ओर अग्रसर होती है! आह! क्या सहानुभूतिपूर्ण झूठ है! अपेक्षा जीवन्तता की ओर नहीं ले जाती, वह तो हमें अस्पताल के बेड की ओर खींचती है, जहाँ हम अपेक्षा करते हैं कि डॉक्टर अब भी ईमानदार होगा और इंजेक्शन सही नस में लगाएगा! यह अपेक्षा ही तो है जो जीवन में रस घोलती है? बिलकुल घोलती है! यह माधुर्य नहीं घोलती, यह तो ज़हर का कड़वा घोल घोलती है! यह रस तो ऐसा है, जो हमारी नसों से खून निचोड़कर बाहर कर देता है, और हम कहते हैं, वाह! क्या माधुर्य है! एक कर्मचारी अपने बॉस से अपेक्षा करता है कि उसकी मेहनत का फल उसे मिलेगा। फल मिलता है? नहीं, उसे ज्यादा काम मिलता है! एक पत्नी अपेक्षा करती है कि पति उसे समझेगा। पति समझता है? नहीं, वह उसे रसोई का सामान समझता है! यही तो हमारे ‘जीवन का रस’ है—अधूरापन और उपेक्षा।

और ये लोगों के विचारों में जो उनकी अपेक्षाओं का दम होता है न, यह तो पेटेंट कराने लायक है! मरने के बाद के लिए भी अपेक्षाएँ पाल लेना—इससे बड़ा मानवीय विदूषक और कोई हो ही नहीं सकता। हमारे ‘चाचाजी’ (फिर से नाम बदल दिया, पर आत्मा वही है) ने अपनी वसीयत में लिखा था कि उनके मरने के बाद उनके सारे झूठ और कमजोरियाँ जला दी जाएँ। उन्हें अपेक्षा थी कि दुनिया उन्हें एक देवता की तरह याद करेगी। और हुआ क्या? उनके मरने के अगले ही दिन उनकी अवैध ज़मीन पर कब्ज़ा हो गया, और उनके बेटा-बेटी आपस में चप्पलें चला रहे थे कि पिता का काला चश्मा किसे मिलेगा!

और यह जो आपने कहा, ‘मरने के बाद कोई लौट कर यह देखने नहीं आता’! यह बात तो रोने पर मजबूर कर देती है! कोई आता ही नहीं, क्योंकि जिसे आना था (यानी आत्मा), वह तो मोक्ष के चक्कर में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही होगी! लेकिन फिर भी, अपेक्षाएँ तो रहेंगी! हाँ! जीवन के बाद के लिए भी अपेक्षाएँ रहेंगी—कि अगली बार इंसान न बनें, कम से कम कीड़ा ही बन जाएँ, जिसकी कोई अपेक्षा न हो! कम से कम कीड़े को मोक्ष की चिंता तो नहीं करनी पड़ती!

अंतिम बात, जो आपने कही, वह तो आत्म-उत्पीड़न का चरम है! जैसे अपेक्षाओं का अंत नहीं होता, वैसे ही ज़रूरी नहीं हर अपेक्षा पूर्णता को प्राप्त हो। यह सच्चाई नहीं है, यह तो ज़िंदगी का क्रूर मज़ाक है! अपेक्षा पूरी न हो, तब भी हम सीधी पीठ करके खड़े रहें। क्यों? क्योंकि हमें अपने आप को ऐसा बनाना चाहिए कि किसी बात से कभी निराश नहीं होना चाहिए! यह असंभव है! यह तो ऐसा है जैसे किसी भूखे आदमी से कहो कि तुमको खाना नहीं मिलेगा, पर तुम खुश रहो, क्योंकि खुशी में ही सुखी जीवन की कुंजी है!

अरे भैया, निराशा का दामन न थामना वीरता नहीं है, यह तो आत्म-वंचना है! जो आदमी निराशा का दामन नहीं थामता, वह असल में कुछ भी नहीं थामता! वह बस बहता जाता है, जैसे सेप्टिक टैंक का पानी। उसे लगता है कि वह सुखी जीवन जीने की कुंजी हासिल कर लेगा? हा हा हा! उसे मिलती है अमरता का फंदा! वह हमेशा खुश रहने की एक्टिंग करता है, और इसी एक्टिंग में वह इतना थक जाता है कि अंततः वह मनुष्य नहीं रह जाता, वह एक खाली, खोखला ढोल बन जाता है।

सुखी जीवन की कुंजी यह नहीं है कि आपकी अपेक्षाएँ पूरी हों। सुखी जीवन की कुंजी यह भी नहीं है कि आप निराशा से दूर रहें। सुखी जीवन की कुंजी तो यह है कि जब आपकी अपेक्षाएँ धूल में मिल जाएँ, जब आपके अपने आप को धोखा दें, जब दुनिया आपको ठुकरा दे, तब आप ज़ोर-ज़ोर से रोएँ! आप चिल्लाएँ! आप अपनी अंदर की पीड़ा को बाहर आने दें! लेकिन नहीं, हमारा समाज हमें यही सिखाता है—मुस्कुराओ, क्योंकि रोने वाला आदमी कमज़ोर होता है। इस झूठी मुस्कान के पीछे जो अश्रु-सागर छिपा है न, वही इस व्यंग्य की सबसे मार्मिक और पीड़ादायक सच्चाई है।

© डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

संपर्क : चरवाणीः +91 73 8657 8657, ई-मेल : drskm786@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # ८३० ⇒ तत्व प्रेम ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए दैनिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “तत्व प्रेम।)

?अभी अभी # ८३० ⇒ आलेख – तत्व प्रेम ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

मरहूम किशोर कुमार गांगुली अपनी फिल्म हम सब उस्ताद हैं, में, कह गए हैं, प्यार बांटते चलो ! अब प्यार कोई सुबह का अखबार तो है नहीं, कि घर घर बांटते चलो। ना ही प्रेम कोई रेवड़ी है, जो आंख मूंदकर अपने अपनों में निपटा दी जाए।

एक गीत में रफी साहब शर्तिया प्यार सिखाने की बात करते हैं !

आओ तुम्हें मैं प्यार सिखा दूँ !

गोया प्यार नहीं, कार चलाना सिखा रहे हों। और सीखने वाली भी झट से हां कर देती है, सिखला दो ना। काश, वाकई ऐसा हो जाता, तो जगह जगह इश्तहार पढ़ने को मिलते, 30 दिनों में प्यार करना सीखिए। प्यार का भी लाइसेंस होता, पहले लर्निंग, बाद में परमानेंट। शायद सगाई लर्निंग और शादी पक्का लाइसेंस ही हो।।

कितना अच्छा हो, लोग प्यार में पी एच डी करें। संत महात्मा प्यार में डॉक्टरेट बांटें। प्यार का भी परीक्षा में एक प्रश्न-पत्र हो। प्यार कितने प्रकार के होते हैं ? प्यार के बुखार का कैसे इलाज किया जाता है। और एक अनिवार्य प्रश्न 20 अंक का प्रेम-पत्र। फिर कहाँ नफ़रत, द्वेष, ईर्ष्या के लिए जगह। लोग दुश्मनी ही भूल जाएँ।

प्रेम कहीं सिखाया नहीं जाता, प्रेम की कोई पाठशाला नहीं, कोई विश्वविद्यलय नहीं, फिर भी पशु-पक्षी तक प्रेम करना जानते हैं।

इंसानों में कितना प्रेम व्याप्त है, आप नहीं समझ सकते। कोई किताबों से प्रेम कर रहा है, तो कोई लिखने से। किसी को कविता से प्रेम है तो किसी को शायरी से। लोगों में प्रकृति प्रेमी भी हैं, और पशु-प्रेमी भी। अब गुटका और चाय से प्रेम की बात पर सुबह-सुबह मेरा मुँह मत खुलवाएं।।

आइए, आज हम भी प्रेम की बातें करें ! एक होता है व्यावहारिक प्रेम, जिससे हम whatsapp और फेसबुक वालों से रोज वास्ता पड़ता है। नमस्ते, सुप्रभात, वाला अभिवादन। दफ्तर में, स्कूल कॉलेज में, गुड मॉर्निंग का रिवाज़ है। आप चाहें तो इसे औपचारिक प्रेम भी कह सकते हैं।

परिवारों में भी प्रेम होता है ! मां बेटे का, भाई बहन का, दोस्तों का, प्रेमी-प्रेमिकाओं का, रिश्तेदारों का, और above all पति पत्नी का। यह सब भावनात्मक प्रेम है। आप इसे दिल का मामला भी कह सकते हैं। इसमें दिक्कत यह है कि

” अब जी के क्या करेंगे,

जब दिल ही टूट गया। “

प्रेम गाय से भी हो सकता है और अपने पालतू कुत्ते से भी। वसुधैव कुटुंबकम् कहने वाले अपने विरोधियों और दुश्मनों को इस प्रेम के दायरे में नहीं आने देते।।

एक प्रेम स्थूल नहीं, सूक्ष्म होता है, यह दिल का मामला नहीं, मन के अधिकार क्षेत्र का मामला है। मीरा और कृष्ण का प्रेम सांसारिक नहीं, स्थूल नहीं, तात्विक प्रेम था। जिस रास का जिक्र होता है, वहां स्थूल सूक्ष्म में समा जाता है। कृष्ण भक्त राधे राधे का जाप करते हैं, और राम भक्त सीताराम सीताराम का।

ईश्वर तत्व, गुरु तत्व और प्रेम तत्व एक ही हैं, इन्हें आप अलग नहीं कर सकते। जिस प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती, वही तत्व प्रेम है। ज़र्रे ज़र्रे में बस रहा है वो, जैसे मुरली में तान होती है। चैतन्य महाप्रभु को वह तत्व प्रेम सारे जगत में व्याप्त दिखता था। नारद भक्ति सूत्र इसी तत्व प्रेम की बात करता है।।

प्रेम गली अति सांकरी ! विराट प्रेम के लिए गोकुल और वृंदावन की गलियों में भटकना क्या ज़रूरी है। जो लोग नर्मदा की परिक्रमा करते हैं, वे शायद भक्ति और तत्व प्रेम के अधिक करीब हों, क्योंकि वे प्रकृति के साथ हैं, बहती नदी की तरह उनका प्रेम कहीं ठहरता नहीं, बहता रहता है। जो जहां है, चाहे तो वहीं, उसी स्थान पर इस तत्व प्रेम के सरोवर में स्नान कर सकता है। धारा सतगुरु, लेत नहाय क्यों न।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ शशि साहित्य # १ – कविता – पूजनीय वृक्ष… ☆ श्रीमती शशि सराफ ☆

श्रीमती शशि सराफ

(श्रीमती शशि सुरेश सराफ जी सागर विश्वविद्यालय से हिंदी एवं दर्शन शास्त्र से स्नातक हैं. आपने लायंस क्लब और स्वर्णकार समाज की अध्यक्षा पद का भी निर्वहन किया. आपका “लेबल शशि” नाम से बुटीक है और कई फैशन शोज में पुरस्कार प्राप्त किये हैं. आपका साहित्य और दर्शन से अत्यधिक लगाव है. आप प्रत्येक शुक्रवार श्रीमती शशि सराफ जी की रचनाएँ आत्मसात कर सेंगे. आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता पूजनीय वृक्ष।)

? कविता – पूजनीय वृक्ष…  ☆ श्रीमती शशि सुरेश सराफ  ? ?

ईश् पर ही खिला था पुष्प,

मंदिर जा, शीश पर चढ़ा दिया,

नगण्य  हुआ सौंदर्य भी,

जीवन भी कमतर हुआ,

एक बूंद अश्रु की,

पाषाण से, नीचे को ढलक गई,

भावना तो दिखी नहीं,

सुंदर रचना भी मिट गई,

… स्वत: ही बीज बनकर,

नव अंकुर को पोषता,,

उफ़!! यह सारी संभावना,,

सिरे से खत्म हो गई…

© श्रीमती शशि सराफ

जबलपुर, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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