सुश्री मालती मिश्रा ‘मयंती’
(प्रस्तुत है सुश्री मालती मिश्रा जी की एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता।)
☆ सवाल ☆
ये दिल मेरा कितना खाली है
पर इसमें सवाल बेहिसाब हैं
मैं जवाब की तलाश में
दर-दर भटक रही हूँ
पर मेरे दिल की तरह
मेरे जवाबों की झोली भी
खाली है।
ये दिल मेरा….
भरा है माता-पिता के प्रति
कृतज्ञता से
भाई-बहनों के प्रति
प्यार और दुलार से
माँ की दी हुई सीख से
पिता के दिए हुए ज्ञान से
दादा-दादी के दुलार से
सबने सिखाया तरह-तरह से
अलग-अलग ढंग से
बस एक ही सीख
औरों के लिए जीना
औरों की खुशी में खुश रहना
बहुत सा ज्ञान भरा है मेरे उर में
पर फिर भी
ये दिल मेरा..कितना खाली है
वो दिल…
जिसमे परिवार के लिए
प्यार भरा है
पत्नी का त्याग भरा है
माँ की ममता का सागर
हिलोरें लेता है
बहू के कर्तव्यों से भरा है
अहर्निश की अनवरत
खुशियाँ बाँटने का
प्रयास भरा है
फिर भी….
ये मेरा दिल.. कितना खाली है…
इस खाली दिल में
बच्चों के टिफिन की
खुशबू
उनकी पुस्तकों के हरफ
भरे हैं
पति की फाइलों को करीने से
रखने की फिक्र
ससुर जी की दवाइयों की
उड़ती गंध और
सासू माँ के घुटनों की मालिश
के तेल की चिकनाहट
भरी है
देवर ननद के
इस्त्री के लिए
दिए गए कपड़ों की
सिलवटें भरी हैं
जिम्मेदारियों को सिससिलेवार
पूरा करने की ख्वाहिशों में
कितनी सफल और
कितनी असफल हुई
ऐसे भी अनगिनत
सवालों का अंबार भरा है
फिर भी….
ये दिल.. कितना खाली है…
एक खाली टीन के डब्बे सा
जो रिश्तों की थाप से
भरे होने का भ्रम पैदा करता है
किन्तु भीतर शून्यता का
बोध कराता है
इस संसार में मैं क्या हूँ
कौन हूँ मैं
ये आज तक जाना ही नहीं
मेरी पहचान जो औरों से
परिचय कराती है मेरा
उसमें भी मेरा अपना क्या है?
पहले पिता
फिर पति का नाम
जुड़ा हुआ यूँ लगता है
मानों मैं परछाई हूँ
बिना किसी अस्तित्व के,
मेरा अस्तित्व तो मेरे पिता या पति हैं
वह परछाई जो
उजाले में प्रत्यक्ष होती है
अँधेरे में विलुप्त हो जाती है
रैन-दिवा मैं कर्मरत
पर मेरा कोई कर्म
स्वतंत्र रूप से मेरा नही
मेरा ये दिल….
कितना खाली है..
पर इसमें सवालों की
कभी न खत्म होने वाली
वो पूँजी है
जो कभी समाप्त ही नहीं होती।
ये दिल मेरा….कितना खाली है?????
सुंदर…
पूरा परिवेश खोलकर रख दिया है आपने। कहावत है जो ‘व्यक्ति दस काम कर सकता है उससे ग्यारहवें कार्य की अपेक्षा की जा सकती है। आप इतनी व्यस्तता के बावजूद “नूतन साहित्य कुञ्ज” में आपकी उपस्थिति आपके साहित्य प्रेम को, आपकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। आपकी मेहनतकश ज़िन्दगी को नमन। कविता में उदित भावों से जिधर धार प्रवाहित हुए, भावनाएँ उधर का रुख कर लीं।
आभार आपका
प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’ आसनसोल
बहुत ही खूबसूरत कविता