श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
(सन्यास योग)
न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः ।
यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते ।।11।।
देहधारी का कर्म का त्याग नहीं संभाव्य
किंतु जो फल त्यागी, वही त्यागी है आराध्य ।।11।।
भावार्थ : क्योंकि शरीरधारी किसी भी मनुष्य द्वारा सम्पूर्णता से सब कर्मों का त्याग किया जाना शक्य नहीं है, इसलिए जो कर्मफल त्यागी है, वही त्यागी है- यह कहा जाता है।।11।।
Verily, it is not possible for an embodied being to abandon actions entirely; but he who relinquishes the rewards of actions is verily called a man of renunciation.।।11।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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