श्री कमलेश भारतीय
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ यात्रा संस्मरण ☆ पर्यटन दिवस विशेष – भारत दर्शन : सांस्कृतिक यात्रा ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
यात्राएं न केवल हमें बाहर ले जाती हैं बल्कि अपने अंदर झांकने का अवसर भी प्रदान करती है । यह प्रसिद्ध कथाकार निर्मल वर्मा का मानना है । उन्होंने कितने ही यात्रा वृतांत लिखे । मुझे अवसर मिला भारतीय रेल की ओर से चलाई जा रही भारत
दर्शन यात्रा में चंडीगढ से रामेश्वरम्, कन्याकुमारी, केरल व तिरूपति बालाजी की सांस्कृतिक यात्रा करने का । कहते हैं कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक हैं । मुझे कश्मीर की यात्रा का सुअवसर तो नहीं मिला लेकिन अंतिम छोर कन्याकुमारी तक छूने का अवसर जरूर मिल गया । मोहाली में मेरे छोटे भाई की पत्नी ने हमारे टिकट बुक करवा दिए और हमारी विवशता हो गई कि यह यात्रा करें । यह इसी वर्ष 17 मार्च की बात है । बस ,दिन रात दोनों बहनों में फोन पर यात्रा की तैयारियों को लेकर चर्चा होती रहती । खैर , हम 16 मार्च को मोहाली पहुंच गये । ताकि समय पर दूसरी सुबह भारत दर्शन की रेल में सवार हो सकें ।
अभी सुबह का अंधेरा था जब हमने भाई के पड़ोसी की कार में सामान ठूंसा और चंडीगढ रेलवे स्टेशन की ओर चल पडे । प्रातः सात बजकर दस मिनट पर भारत दर्शन छह सौ अस्सी लोगों को लेकर रामेश्वरम की ओर चल पड़ी । हम बारह लोग एक समूह के थे और ऐसे ही अगले बारह लोग मलोया व चंडीगढ़ से थे । मज़ेदार बात कि अपने पराए हो गये और पराए अपने हो गये । यह यात्रा में ही होता है । सहयात्री बदल जाते हैं ।
लगातार तीन दिन और तीन रात्रि रेल छुक छुक करती रही । कहीं आउटर पर खड़ी रही । इस बीच भारत दर्शन की ओर से रेल के डिब्बों में ही सुबह की फीकी मीठी चाय , गर्मागर्म परांठे, पोहा , पकौड़े और तीनों समय का खाना परोसा जाता रहा । असल में यह भारत दर्शन रेल यात्रा करवाने के साथ ही आपके बाहर ठहरने और गाड़ी के अंदर खाने की व्यवस्था करती है । इसमें एक व्यक्ति का टिकट 11, 340 है । इसी में ये सुविधाएं शामिल हैं । माइक से लगातार चेतावनियां और जानकारियां दी जाती रहीं । सोते समय मोबाइल चार्ज नहीं करना , बाहर कुछ नहीं फेंकना , एक दूसरे की मदद करना आदि । एक प्रकार से गाइड की तरह भी कि रामेश्वरम् उतरने पर सिर्फ पचास रुपए में ऑटो हो जाता है और मंदिर दर्शन के मात्र पच्चीस रुपए का टिकट है । रामेश्वरम् के आने से पहले रेल समंदर के लगभग बीच से गुजरती है । कोई रेलिंग भी नहीं । सिर्फ रेल लाइन और विशाल समंदर । दिल धक् सा रह जाता है । तीन दिन तीन रात की लगभग पैंतीस सौ किलोमीटर की यात्रा के बाद रेल से उतरने का मौका मिला ।
शाम को होटल में सोये । कुछ ने कपड़े धोने में ही फुर्सत पूरी कर ली । हम छोटे से बाज़ार में घूमने निकले । बाहर से मंदिर का भव्य द्वार देखा । माला मोती की दुकानें । फटाफट चाय की रेहड़ियां । लुंगी लगाए लोग । पानी खारा । नहाने पर बाल चिपचिपाते । शैंपू लगाकर भी चिपचिपाहट दूर नहीं हुई । होटल की तीसरी मंजिल से रात को समंदर साफ , रोशनियों में डूबा समंदर देखा । नावें । सुबह के लिए आराम जरूरी था । गाड़ी बर्थ से तीन बाद सही बैड पर नींद खूब आई ।
सुबह चले रामेश्वरम् मंदिर । टिकट ली और दर्शन किए । समंदर के किनारे भी गये और फिर मंदिर में बने बाइस पवित्र कुडों के स्नान के लिए एक ब्राह्मण देवता का सहारा लेना ही पड़ा । कुंड में से बाल्टी से पानी निकाल कर लगातार स्नान होता रहा और आखिर मंदिर में ही अपनी लुंगी का पल्ला उठाकर ब्राह्मण देवता ने दक्षिणा मांगते कहा : आप लोगों के चलते ही परिवार पलता है । मैंने जल्दी से पैसे दिए और सपरिवार बाहर निकल आया । ये बाइस कुंड देश के सभी तीर्थों का पवित्र जल लिए हुए हैं ।
बाहर निकलते ही एक ऑटो वाला चिपक गया तो बस चिपक ही गया । हमने कहा कि भई, अभी नाश्ता करेंगे , होटल में गीले कपड़े बदलेंगे पर वह तो टलने को तैयार ही नहीं था । लगभग डेढ़ घंटे बाद नाश्ता पानी लेकर ऑटो में सवार हुए । लगभग बीस किलोमीटर दूर धनुष कोटी गांव की ओर । जो गांव जरूर हैं पर वहां कोई मकान नहीं बना सकता । सिर्फ पुराने खंडहर हैं । सन् 1964 में समंदर ने इसे लील लिया था । उसके बाद से यहां आबादी नहीं है । सिर्फ रामसेतु देखने जाते हैं । चिलचिलाती धूप और गर्म रेत पर चल कर कुछ फोटो लिए । आइसक्रीम खाई और चल दिए । रास्ते में विभीषण मंदिर देखा । वहां जानकारी लिखी गयी हैं कि यहीं रामचंद्र ने विभीषण का राजतिलक किया था । बाहर निकल नारियल पानी का आनंद लिया और कच्ची गिरी भी खूब खाई । मात्र बीस रुपए का नारियल जो हिसार तक आते आते चालीस का हो जाता हैं ।
अंत में पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के आवास पर ऑटो रोका । बाहर बड़े बड़े बोर्ड लगे हैं । पहली मंजिल पर म्यूजियम है । दूसरी पर मोती माला व गिफ्ट्स का शोरूम । कलाम के बड़े भाई सबसे निचली मंजिल पर रहते हैं । मिलने की इच्छा थी पर वे आराम कर रहे थे । अधूरी इच्छा से लौट आए । फिर होटल और सामान उठा कर रेलवे स्टेशन की ओर भागे ।
रामेश्वरम से चल कर गाड़ी मदुरै की ओर बढ़ी । मीनाक्षी मंदिर के लिए । दूसरे दिन मदुरै में थे । फिर वही कतार । वही टिकट । वही इंतज़ार । मीनाक्षी मंदिर का शिल्प बहुत खूबसूरत है । पचास का टिकट लिया तब भीड़ से बाहर आए । कुछ खरीदारी । कुछ जानकारी । फिर प्लेटफॉर्म की ओर । यहां थोड़ी परेशानी उठानी पड़ी क्योंकि रेल को देरी हो रही थी और बच्चों को मच्छर काट रहे थे । यात्री शिकायत करने गये तब जाकर गाड़ी प्लेटफॉर्म पर लगी । यात्रा में कुछ परेशानी तो उठानी ही पड़ती है । इसके बिना भी यात्रा का क्या मज़ा ? सब मीठा मीठा थोड़े ही मिलेगा ?
तीसरा पड़ाव केरल का त्रिवेन्द्रम रहा । पहले आयुर्वेद का शान्तिगिरी आश्रम दिखाया । सफेद संगमरमर से खिलते हुए कमल की कल्पना साकार की गयी है । नाम के अनुरूप शांति । पर हमारे यात्री काजू देख कर तोड़े बिना नहीं रहे । अशांति कर ही दी ।
वहां से बीच पर ले जाया गया । समंदर की लहरें किनारे पर ठाठें मारती आतीं और लौट जातीं । किनारे कश्ती और सुरक्षा कर्मचारी । लोग फिर भी लहरों से अठखेलियां करने जाते ।
त्रिवेन्द्रम के पद्मनाभ मंदिर के नियमों के अनुसार सिर्फ लुंगी लगाकर ही दर्शन किए जा सकते हैं । बस से उतरते ही सब लुंगियां खरीदने में जुट गये । फिर धर्मशाला में स्नान और वही लंबी कतार । धक्के पे धक्का । जय जयकार । गर्मी । छोटे बच्चों के रोने के स्वर ।
पद्मनाभ मंदिर के बाहर पांचों पांडवों की प्रतिमाएं लगी हैं । काफी बड़ी बड़ी । इनका क्या संबंध है । किसी ने नहीं बताया । त्रिवेन्द्रम् से रेल चली कन्याकुमारी की ओर । देश के अंतिम छोर । उसके बाद सिर्फ समुद्र ही समुद्र । रात के समय थके हारे पहुंचे । सुबह-सुबह सूर्योदय देखना है । पर चार बजे से उठाना शुरू किया । परिवार नहीं जागा और सूर्योदय को होना था , सो हो गया । हम वंचित रह गये । होटल के गेट पर एक बूढ़ी महिला दही बेच रही थी । जिस दिन से घर से निकले दूध दही देखा ही नहीं । चटपट दो गिलास दही खरीदकर पीया । सभी दही पर टूट पडे । शायद एक घंटे के भीतर सारा दही बिक गया । नाश्ता किया और फिर निकले कन्याकुमारी के दर्शन करने । बाजार खूब सजा भरा । प्रोफेशनल फोटोग्राफर पिंड नहीं छोड़ते । पीछे लगा लेते हैं । हार कर कुछ फोटो उनसे भी करवाए । समंदर लहराता , लहरें चट्टानों से टकरातीं । विवेकानन्द स्मारक । गांधी स्मारक । पर कोई गांधी साहित्य बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं । भारत माता की प्रतिमा भी लगी है बाहर लाॅन में । बच्चे हिम्मत करके वोट में चले गये विवेकानन्द स्मारक देखने । हम पति पत्नी हिम्मत नहीं जुटा पाए । शाम को बच्चों के साथ निकले सूर्यास्त देखने । खूब भीड़ । अलग अलग राज्यों के लोग । चाय की चुस्कियां और साथ में केले के पकौड़े । आखिर सूर्यास्त हुआ । धीरे-धीरे सूर्यदेव समुद्र में चले गये । डुबकी लगा कर । आराम कर दूसरी सुबह फिर तरोताज़ा होकर आएंगे । यही मनुष्य का कर्म है । चरैवेति चरैवेति ।
अब सिर्फ अंतिम पड़ाव तिरूपति बालाजी । देश का सबसे धनी मंदिर । दिव्य दर्शन के तीन सौ रुपये की टिकट । सर्वदर्शन के लिए लम्बी कतार । हाॅल में टीवी पर रामायण । लेकिन भाषा अलग । कहानी पता है तो समझ आ रही है । बीच में खिचड़ी का प्रसाद मिल जाता है । शाम छह बजे से हाॅल में और ग्यारह बजे बाद खुलते हैं द्वार । रेलिंग की भूल भूलैया में आखिरकार दर्शन । बाहर निकलते ही लड्डू का प्रसाद और हर 70 रुपए की टिकट पर चार चार बडे बडे लड्डू । हमारे पास एक दर्जन हो गये । चलो । अब बांट सकेंगे ।
अब वापसी । वही तीन रात दो दिन लम्बी यात्रा ।
चंडीगढ़ से चले थे तो पहले हरियाणा के स्टेशन आए । फिर दिल्ली । फिर हरियाणा , फिर राजस्थान, मध्यप्रदेश, फिर दक्षिण भारत । कितने राज्य और कितने दृश्य । कहीं सूखा । कहीं हरियाली । कहीं गेहूं कट चुकी , कहीं धान । नारियल के पेड़ , आम के फल , काजू , कटहल । कितना कुछ । कितनी बोलियां ? कितनी तरह के पहनावे । दक्षिण में फूलों की वेणी ही श्रृंगार है । उतर भारत में सोने का हार है । फूलों से मन भर जाए तो गहने किस काम के ?
हम बहुत सी भाषाएं नहीं जानते थे । सामने वाले भी नहीं समझते थे पर संकेत से सब समझ जाते । सच , दिल है हिंदुस्तानी । रामेश्वरम् हो या कन्याकुमारी या केरल सब कामचलाऊ हिंदी समझते हैं। पर्यटन ही कन्याकुमारी और रामेश्वरम् का मुख्य आय का साधन हैं । फिर हिंदी क्यों न समझें ? इसके बावजूद दक्षिण के किसी रेलवे स्टेशन पर हिन्दी समाचार पत्र नहीं मिला । कोई हिंदी पत्रिका भी नहीं मिली ।
यह भारत दर्शन एक प्रकार से सांस्कृतिक जीवन की झलक हैं । झांकी हैं हमारे हिंदुस्तान की । हमारी बोली न भी जाने , दिल की भाषा एक हैं हमारी । जब तक हमारे सांस्कृतिक रूप से जुड़े रहेंगे , तब तक भारत कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक ही रहेगा । वापसी पर रेवाड़ी ही उतर लिए और वहां से सुबह की गाड़ी से 29 मार्च को हिसार पहुंच गये । फिर किसी यात्रा की उम्मीद में ।
© श्री कमलेश भारतीय
पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
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