श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे
( ई- अभिव्यक्ति का यह एक अभिनव प्रयास है। इस श्रंखला के माध्यम से हम हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकारों को सादर नमन करते हैं।
- हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆ – हेमन्त बावनकर
- हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆ – डॉ.भावना शुक्ल
- हिन्दी साहित्य ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
इस यज्ञ में आपका सहयोग अपेक्षित हैं। आपसे अनुरोध है कि कृपया आपके शहर के वरिष्ठतम साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हमारी एवं आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराने में हमारी सहायता करें। हम यह स्तम्भ प्रत्येक रविवार को प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा प्रयास रहेगा कि – प्रत्येक रविवार को एक ऐसे ही ख्यातिलब्ध वरिष्ठ साहित्यकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आपको परिचित करा सकें।
☆ मराठी साहित्य – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व ☆
(आज ससम्मान प्रस्तुत है वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विमर्श उनकी सुपुत्री श्रीमती संगीता भिसे जी की कलम से। मैं श्रीमती संगीता जी का हार्दिक आभारी हूँ ,जो उन्होंने मेरे इस आग्रह को स्वीकार किया। श्रीमती संगीता जी की निम्नलिखित आत्मीय पंक्तियाँ उनका उनकी आदरणीय और प्रिय माँ के प्रति स्नेह को दर्शाती हैं जो उन्होंने उनके जन्मदिवस पर लिखी थी।
एक सफल एवं आदर्श माँ , गृहणी, शिक्षिका एवं साहित्यकार के रूप में हमारी आदर्श हैं । उनका साहित्य हमें हमारा सामजिक एवं पर्यावरण संरक्षण के दायित्व का एहसास दिलाती हैं । उनका अधिकतम साहित्य ईश्वर एवं धार्मिक आस्था से परिपूर्ण है। मैं स्वयं उन्हें उम्र के इस पड़ाव पर भी समय के साथ कुछ नया सीखने की ललक के गुण को अपना आदर्श मानता हूँ। इतना अथाह ज्ञान का भण्डार होते हुए भी इतनी सहज व्यक्तित्व की धनी श्रीमती उर्मिला जी को सादर नमन। उनकी जीवन यात्रा एवं कृतियों/उपलब्धियों की जानकारी आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं >>>> श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे )
Life began with waking up and having my mother’s face… George Eliot
जॉर्ज इलियट की उपरोक्त पंक्तियाँ प्रत्येक प्रातः मुझे मेरी माँ के स्नेहमय चहरे का स्मरण कराती है। मेरी माँ.. मेरे जीवन का विश्वास, मेरे जीवन का सार…। उनके बारे में लिखना मेरे लिए सबसे कठिन कार्य है। मेरे जीवन में उनके महत्व का वर्णन मैं शब्दों में बयान नही कर सकती। यह मुझे असंभव प्रतीत होता है।
आदर्श कवियत्री श्रीमती उर्मिला इंगळे जी की बेटी कहलाते हुये मुझे अत्यंत गर्व का अनुभव होता है।
हम दो बहने है और हमारे दो भाई है…। हम सबको हमारे माँ और पिताजी ने बिना किसी भेद भाव के बराबरी से बड़ा किया है। माँ ने हम सबको जीवन ही नहीं दिया, अपितु, जीवन जीने का तरीका भी सिखाया है। माँ ने हमें हर वो चीज सिखाई है, जो जीवन में जीने के लिए जरूरी है। हमारी माँ, हमारी जननी होने के साथ-साथ हमारी प्रारंभिक शिक्षक और मार्गदर्शक भी है। उन्होनें हम सबको हमारे जीवन में ऐसी छोटी-छोटी बातें बताई हैं जिनका जीवन में काफी महत्व है। उन्होंने हम सबको शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही रूप से मजबूत बनाया है। समाज में किस प्रकार से आचरण और व्यवहार करना चाहिये सिखाया है। उन्होंने हमें व्यवहारिक और सामाजिक ज्ञान भी दिया है। कोई भी माँ नही चाहती कि- उसके बच्चे गलत रास्ते पर चलें। इसी कारण से हमारी गलती होने पर उन्होंने फटकार भी लगायी है, ताकि हम अपने जीवन में सही मार्ग का अवलंबन करें और अपने जीवन में सफलता पाएं।
इसके साथ-साथ वे एक अच्छी एवं आदर्श गृहिणी भी हैं। अच्छा खाना बनाना, घर की साफ सफाई करना ऐसे सभी काम भी वो अच्छी तरह से करती थी। उन्होंने अपने जीवन में परिवार के हर व्यक्ति के लिए हर तरह की जिम्मेदारी संभाली है। अपने सभी दायित्व एवं कर्तव्य निभाये हैं। वे एक अच्छी बेटी, बहू, बहन, भाभी, माँ, सासु माँ, नानी और दादी हैं।
हमने बचपन से माँ को पढाई करते हुऐ देखा है। जब हम सब छोटे थे, उस वक्त जब हम लोग उठते थे तो माँ को कॉलेज से वापस आते देखते थे। वे हमे खिलाकर खुद तैयार होकर ऑफिस जाती थी। शाम को हम घर के बाहर खडे होकर माँ की राह देखते थे। माँ आते वक्त बाजार से सब्जियां और कुछ जरूरी चीज़ें लेकर आती थीं। हम लोग थकी हारी माँ से लिपट जाते थे। घर मे आते ही माँ तैयार हो कर अपना पल्लू संभालते हुये किचन में काम करने लगती थी। हमारे घर में रात का खाना खाते वक़्त सामाजिक विषय पर चर्चा होती थी। जिससे हम सब भाई बहन को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास हो गया। इसके साथ-साथ ही वे रचनाएँ (लेख तथा कवितायें) लिखती थी।
वर्ष 2004 में उनको ज्ञान विकास मंडळ, सातारा ने “सुमाता से सम्मानित किया. समर्थ विद्यापीठ, शिवथरघळ की सभी परीक्षाओं की वो समीक्षक है और 1989 से लेकर आज तक उनकी ये समर्थ सेवा निर्बाध रूप से शुरू है। हमारी माँ सदैव प्रसन्न और हंसमुख रहती हैं। ईश्वर के प्रति भक्ति और निसर्ग के प्रति निष्ठा उनके काव्य में साफ साफ दिखाई देती है।
हमारे पिताजी अपने अंतिम दिनों गंभीर बीमारी के कारण बिस्तर में ही थे। माँने पूरी जिम्मेदारी के साथ दिन रात उनकी सेवा की है। साथ-साथ वे कविताएं भी लिखती रहीं और उस काव्यसंग्रह “काव्यपुष्प” के प्रकाशन के दूसरे दिन ही हमारे पिताजी ने संतोष के साथ अपनी अंतिम सांस ली। पिताजी के अंतिम समय में माँ उनके सिर पर हाथ रख कर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ बोलती रही ताकि पिताजी को कुछ तकलीफ ना होते हुये उनको मोक्ष मिले.
हाल ही में माँ के चिरंजीवी चारोळी, चैतन्य चारोळी, चिंतामणी चारोळी, चामुंडेश्वरी चारोळी संग्रह पूरे हो गये हैं। माँ ने पूरी ज्ञानेश्वरी स्वहस्ताक्षर मे लिखकर श्रीमाऊली के समाधि को अर्पण की है।
ईश्वर की कृपा से माँ को ऐसा ही चैतन्य मिलता रहे और माँ जैसे अभी अपने पोते के साथ उसके स्टडी टेबल पर बैठ कर लिखती रहती हैं, वैसे ही अपने परपोते के साथ भी बैठ कर लिखती हैं।
बहू के लिए उनकी सासु माँ एक सहेली के जैसी हैं।
वे बताती हैं कि जब उन्होंने पहली बार माँ को देखा तो उस प्यारे, आकर्षक सुंदर व्यक्तित्व से उनको प्यार हो गया और शादी के बाद माँ ने अपने समझदार स्वभाव से बहू को अपनी बेटी बना दिया।
संप्रति..
श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे
२३६, यादोगोपाळपेठ, सातारा.
ता. जि.सातारा.
पिन.४१५००२
भ्रमणध्वनी क्र.९०२८८१५५८५