श्री हेमंत तारे
हेमन्त तारे जी भारतीय स्टेट बैंक से वर्ष 2014 में सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्ति उपरान्त अपने उर्दू भाषा से प्रेम को जी रहे हैं। विगत 10 वर्षों से उर्दू अदब की ख़िदमत आपका प्रिय शग़ल है। यदा- कदा हिन्दी भाषा की अतुकांत कविता के माध्यम से भी अपनी संवेदनाएँ व्यक्त किया करते हैं। “जो सीखा अब तक, चंद कविताएं चंद अशआर” शीर्षक से आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है।)
(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”
दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री हेमंत तारे जी का एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ “उर्दू से मेरा आत्मिक लगाव“।)
☆ दस्तावेज़ # ४३ – उर्दू से मेरा आत्मिक लगाव ☆ श्री हेमंत तारे ☆
उर्दू भाषा ने बचपन से ही मेरे मन को एक अनकही, रहस्यमयी सी मोहकता से बाँधे रखा है। इसकी मनमोहक लिपि, और इसे दाहिनी ओर से बायीं ओर लिखे जाने कि पध्दति ने मुझे सदैव इस भाषा की और आकर्षित किये रखा. यह कहना भी आवश्यक होगा कि सुन्दर लिपी से परे इसके चाशनी से पगे उच्चारण हमेशा से मेरे हृदय को झंकृत करते रहे हैं। बचपन के दिनों में ही इसकी छाप मेरे मन पर पड़ गई थी। यदि मैं अपनी इस रुचि की जड़ों को तलाशने जाऊँ, तो पाता हूँ कि शायद मेरे कुछ बालसखा, जो मुस्लिम समुदाय से थे, उनके माध्यम से उर्दू लिपि और भाषा के प्रति यह आकर्षण जन्मा।
अक्सर, हमारे साथ ऐसा होता है कि हम जिन चीज़ों से प्रेम करते हैं, उन्हें पाने की राह सहज प्रतीत होती है, लेकिन व्यवहार में हम पहला कदम उठाने से अमूमन चूक जाते हैं। मेरी उर्दू के प्रति प्रेम कहानी भी कुछ ऐसी ही रही— मन में चाह थी, पर कदम ठिठके रहे।
सौभाग्यवश, जब मैं बैंक सेवा से सेवानिवृत्त हुआ, तब यह दबी हुई रुचि पुनः पूरे जोश और उत्साह के साथ उभर आई। उस समय मुझे शाहरुख़ ख़ान की एक फ़िल्म की निम्न प्रसिद्ध पंक्तियां याद आई:
“किसी चीज़ को अगर शिद्दत से चाहो, तो सारी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती है”
ऐसा लगा मानो ये शब्द मेरे लिए ही कहे गए हों। उत्साहवर्धक इन शब्दों ने मेरी सुषुप्त चाह को मानो राह दिखा दी हो.
बस, यहीं से मेरी उर्दू सीखने की यात्रा का आरंभ हुआ। पहला कदम था — एक योग्य “उस्ताद” की तलाश। और यह कार्य मेरे लिए आश्चर्यजनक रूप से सरल सिद्ध हुआ। संयोग ऐसा बना कि मेरे पचास वर्षों से अधिक पुराने मित्र, साहेबान ग़नी, जो स्वयं उर्दू में तालीमयाफ्ता रहे हैं, मेरी सहायता के लिए आगे आए और उन्होंने मेरे उर्दू भाषा पढ़ाने के प्रस्ताव का सहर्ष स्वागत किया । मैं अभिभूत तो तब रह गया जब उनकी पत्नी, जो उर्दू विषय में अलीगढ विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण है, ने भी मुझे उर्दू सिखाने के लिए मनोयोग से तत्परता दिखाई.
इस प्रकार, कृतज्ञता से भरे हृदय और वर्षों से संजोए हुए सपने को साकार करने के संकल्प के साथ, मैंने इस सुंदर यात्रा की शुरुआत लगभग 10 वर्ष पूर्व प्रारंभ की. शुरूआत दुरूह थी. मैं ने उर्दू लिपी का ककहरा जुगाडा, और कुछ इस तरह मैं उस भाषा की और चहलकदमी करने लगा जो वर्षों से चुपचाप मेरा इंतज़ार कर रही थी।
आज मैं उर्दू सहजता से पढ लिख लेता हूँ और मेरे घर नियमित रूप से उर्दू समाचार पत्र “इंकलाब” आता है. उर्दू सीखने का क्रम अब भी जारी है और अपनी उर्दू शब्द संपदा संवर्धित करने का मेरा प्रयास भी. 🙏
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© श्री हेमंत तारे
मो. 8989792935
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈





