डॉ. अनिल कुमार वर्मा
संक्षिप्त परिचय –
- शिक्षा : पीएचडी (वास्तु शास्त्र), बी.टेक., एफआईई, एफआईवी, चार्टर्ड इंजीनियर,
- सम्प्रत्ति : वास्तु/जियोपैथिक स्ट्रेस सलाहकार, प्रॉपर्टी मूल्यांकनकर्ता, पूर्व फैकल्टी, कृषि अभियांत्रिकी कॉलेज, जेएनकेवीवी, जबलपुर, पूर्व चीफ मैनेजर, एसबीआई, भोपाल सर्कल
- विशेषज्ञता: औद्योगिक/कॉरपोरेट वास्तु एवं जियोपैथिक स्ट्रेस
- लिखित पुस्तकें: “विजयी चुनावी वास्तु”, “Vastu For Winning Election”
- टीवी साक्षात्कार: ज़ी बिज़नेस, ज़ी 24 छत्तीसगढ़, आईबीसी 24
- लेख: टाइम्स ऑफ इंडिया, दैनिक भास्कर, जागरण, हरिभूमि, माय प्रॉपर्टी आदि
- विभिन्न पुरस्कार विजेता
ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है।
वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं।
इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।
दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है।
इस श्रृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है…संस्मरण – मैनपाट शाखा का अनुभव.
☆ दस्तावेज़ # ४७ – संस्मरण – मैनपाट शाखा का अनुभव ☆ डॉ अनिल कुमार वर्मा ☆
वर्ष 1997 से 20ओ1 के दौरान, मुझे शहडोल स्थित SBI रीजनल ऑफिस में CM (Credit) रहते हुए, कई बार कमलेश्वरपुर शाखा, यानी छत्तीसगढ़ के हिल स्टेशन मैनपाट जाने का अवसर मिला है। यह स्थान प्रकृति की गोद में बसा, बेहद मनोहारी और शांति से परिपूर्ण है। यहाँ तिब्बतियों का पगोडा (मंदिर) विशेष आकर्षण है और पूरा हिल स्टेशन अपने आप में एक अनुपम सौंदर्य का अनुभव कराता है। छत्तीसगढ़ सरकार भी वहाँ पर्यटन विकास के लिए निरंतर प्रयास कर रही है।
मैनपाट के तिब्बती लोग अत्यंत परिश्रमी और ईमानदार थे। हर वर्ष सर्दियों के पूर्व वे अपने स्वेटर व्यापार के लिए शाखा से ओवरड्राफ्ट लेते, फिर लुधियाना जाकर स्वेटर और शॉल खरीदते। इसके बाद वे दलों में बँटकर अलग-अलग शहरों में अस्थायी दुकानें लगाते और पूरी सर्दियों मन लगाकर व्यापार करते। ठंड खत्म होते ही वे पूरा ऋण चुका देते थे। उनकी रिकवरी हमेशा 100% रहती थी, जो उनकी ईमानदारी और परिश्रम की मिसाल थी।
हालाँकि ऋण देने की प्रक्रिया आसान नहीं थी। चूँकि वे विदेशी शरणार्थी थे, उनके पासपोर्ट मंत्रालय को भेजकर अनुमति मिलने के बाद ही लोन सैंक्शन हो पाता था। इसके बावजूद उनकी निष्ठा और बैंक के प्रति विश्वास देखने योग्य था।
एक बार जब मैं शाखा में पहुँचा तो ज्ञात हुआ कि एक ऑडिट ऑब्जेक्शन लंबे समय से अटका हुआ है। समस्या यह थी कि KYC की एक औपचारिकता—ग्राहक की फोटो—अधिकांश खातों में संलग्न नहीं थी। कारण यह था कि कमलेश्वरपुर जैसे दूरस्थ क्षेत्र में कोई फोटो स्टूडियो था ही नहीं। फोटो खिंचवाने के लिए ग्राहकों को अंबिकापुर जाना पड़ता था। परिणामस्वरूप खाते फोटो के बिना ही खोले गए थे। अब वर्षों बाद ग्राहकों को ढूँढकर भेजना और फोटो मँगवाना सचमुच टेढ़ी खीर साबित हो रहा था।
यही वह क्षण था जब मैंने एक तकनीकी समाधान खोज निकाला। समाधान था—इंस्टेंट फोटो कैमरा (पोलरॉइड कैमरा)। यह वही कैमरा था जो प्रायः पर्यटक स्थलों पर देखने को मिलता था, जहाँ खींची गई तस्वीर तुरंत रंगीन प्रिंट के रूप में हाथ में मिल जाती थी। मैंने ऐसा कैमरा जबलपुर से मँगवाकर शाखा को भिजवाया।
इसके आ जाने से मानो शाखा प्रबंधक की बड़ी समस्या का अंत हो गया। उन्होंने अपने सामने की दीवार पर एक बैकग्राउंड स्क्रीन टाँग दी। अब ग्राहक शाखा प्रबंधक के सामने कुर्सी पर बैठ जाता और प्रबंधक अपनी सीट से ही फोटो खींच लेते। धीरे-धीरे सभी खातों में फोटो संलग्न हो गईं और वह जटिल ऑडिट ऑब्जेक्शन भी दूर हो गया।
यह अनुभव आज भी मेरे लिए यादगार है। यह केवल बैंकिंग समाधान नहीं था, बल्कि इस बात का प्रतीक था कि यदि हम नवोन्मेषी सोच (innovative thinking) अपनाएँ, तो कितनी भी कठिन समस्या को सरल बनाया जा सकता है।
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© डॉ अनिल कुमार वर्मा
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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈







