श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए दैनिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हिंसा के प्रकार…“।)
अभी अभी # ८०६ ⇒ आलेख – हिंसा के प्रकार
श्री प्रदीप शर्मा
अगर विद्वान अहिंसा के पुजारी पर शोध कर सकते हैं, हिंसक दरिन्दों पर फिल्में बन सकती हैं ,तो क्या हम हिंसा के स्वरूप पर चर्चा भी नहीं कर सकते। पहले हम चाहते थे कि अहिंसा पर ही अपना ध्यान केंद्रित करें,लेकिन जब अहिंसा का पुजारी ही हिंसा का शिकार हो गया,तो हमने भी सोचा, अहिंसा को मारो गोली,क्यों न हिंसा पर ही मेहरबान हुआ जाए।
यह शब्दों का संसार भी बड़ा विचित्र है ! एक शब्द है,शांति,जिसके आगे अगर अ लगा दो,तो अशांति फैल जाती है। और इधर,अगर अहिंसा का अ हटा दो,तो हिंसा फैल जाती है। ऐसा क्या है इन शब्दों में कि जब तक जीवित रहे,अशांत ही रहे ,और मरने के बाद, ॐ शांति ? इधर कुछ लोग हिंसा के बाद अहिंसा का पाठ पढ़ाते नजर आते हैं, तो उधर,कुछ लोग,अहिंसा का नाम सुनते ही,हिंसक हो उठते हैं।।
पहले महाभारत,फिर शांति पर्व !पहले कलिंग का युद्ध,और उसके बाद बुद्धं शरणं गच्छामि। अशोक चक्र ,चक्रवर्ती सम्राट का प्रतीक है,अथवा बुद्ध की शरण में गए,शोकग्रस्त अशोक का। हमें दोनों हाथों में लड्डू चाहिए। एक हाथ में शांति और अहिंसा और दूसरे हाथ में अन्याय,अत्याचार के खिलाफ क्रांति,हिंसा और उसके बाद की शांति। राम और कृष्ण के साथ बुद्ध और महावीर भी हों तो ये भारत देश है मेरा।
आइए,हिंसा पर ,शांति से चर्चा करें ! हिंसा तीन प्रकार की होती है। सबसे पहले आती है शारीरिक हिंसा,जिसमें युद्ध भी शामिल है। अस्त्र, शस्त्र,ब्रह्मास्त्र , हथियारों और जैविक हथियारों की हिंसा। एक दूसरे पर हाथ उठाना,मार पीट करना, तथा हत्या जैसे सभी अपराध शारीरिक श्रेणी में आते हैं। यहां यह भी सनद रहे, वैदिक हिंसा,हिंसा नहीं होती।।
हिंसा के दो प्रकार और होते हैं,मानसिक और शाब्दिक हिंसा जिसका आजकल बाजार बड़ा गर्म है। मन तो ऐसा कर रहा था, कि उसको कच्चा चबा जाऊं ! कितना पौष्टिक अंकुरित आहार है न किसी को कच्चा चबाना। कितना फाइबर होगा इस हिंसा में ! यह पूरी तरह ऑर्गेनिक है,स्वदेशी है, शाकाहारी है।
मानसिक हिंसा कोई अपराध नहीं। आप किसी से गले मिलते हुए भी यह सत्कार्य आसानी से कर सकते हैं। कोई आपका दुश्मन अज्ञात हो,अनजान हो,जीवित हो,मृत हो,काल्पनिक हो,सब पर इस मानसिक हिंसा के अस्त्र का आसानी से प्रयोग किया जा सकता है। राजनीति में काल्पनिक शत्रु पर मानसिक हिंसा भी बड़ी कारगर होती है। मन की शक्ति से कोई बड़ी शक्ति नहीं।।
अब आते हैं हम शाब्दिक हिंसा पर। शब्द आप पढ़ ही रहे हैं,आप हिंसा के लिए अपने शब्द घढ़ भी सकते हैं। किसी को नानी याद दिलाना कहां की हिंसा है। सात पुश्तों तक आप आसानी से शाब्दिक हिंसा में। पहुंच सकते हो। कंस से लगाकर केजरी,कांग्रेस,कन्हैया और रागा हमारे मानसिक शब्दकोश में स्थान पा गए हैं। पूरा ककहरा मौजूद है शाब्दिक हिंसा के लिए। व्हाट्सएप,फेसबुक,इंस्टाग्राम और क्या कहते हैं, हां, ट्विटर। शाब्दिक हिंसा से माहौल बनता भी है, और बिगड़ता भी है।
मनसा, वाचा, कर्मणा ! आपके पास तलवार भी है, मन की संकल्प शक्ति भी है और शब्द सामर्थ्य भी ! तलवार सुरक्षा के लिए,अपनी ही नहीं,सबकी। अन्याय,अत्याचार और आतंक के खिलाफ मानसिक आक्रोश सात्विक हिंसा है और अभिव्यक्ति की आजादी की कोई सीमा नहीं। आज मानसिक और शाब्दिक हिंसा जिस मानस को जन्म दे रही है,वह शारीरिक हिंसा से कई गुना अधिक खतरनाक और हिंसक है।।
लोकतंत्र के हथियार हैं ये। इन तीनों का संभलकर उपयोग करें। अहिंसा परमो धर्म..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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