श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “साँझ आई”।)
जय प्रकाश के नवगीत # १२१ ☆ साँझ आई ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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साँझ आई
बाल दो बाती
नई यादों के सँग फिर
साँझ आई ।
धूप से जलकर
हुआ है ख़ाक मन
उम्र से कट कह रहा
फिर एक दिन
ज़मीं काई
पीट लो छाती
सुधि के आँगन में
ज़मीं काई।
चुरा लाई कहीं से
सन्नाटा हवा
चुप्पियों के स्वर सजे
ये क्या हुआ
एक परछाईं
विश्वासघाती
हँस रही पर्दों में
एक परछाई ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈





