वर्तिका (संस्कारधानी जबलपुर की साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था) – डॉ विजय तिवारी “किसलय”
(वर्तिका की जानकारी आपसे साझा कराते हुए मुझे अत्यन्त गर्व का अनुभव हो रहा है। यह एक संयोग है की 1981-82 में मैंने वाहन निर्माणी प्रबंधन के सहयोग तथा स्व. साज जबलपुरी जी एवं मित्रों के साथ साहित्य परिषद, वाहन निर्माणी, जबलपुर की नींव रखी थी। 1983 के अंत में जब साज भाई के मन में वर्तिका की नींव रखने के विचार प्रस्फुटित हो रहे थे, उस दौरान मैंने भारतीय स्टेट बैंक ज्वाइन कर लिया। नौकरी के सिलसिले में जबलपुर के साथ साज भाई का साथ भी छूट गया। 34 वर्षों बाद जब डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’ जी और वर्तिका के माध्यम से  पुनः मिलने का वक्त मिला तब तक काफी देर हो चुकी थी। नम नेत्रों से उनकी निम्न पंक्तियाँ याद आ रही हैं –
मैंने मुँह को कफन में छुपा लिया, तब उन्हें मुझसे मिलने की फुर्सत मिली ….
हाल-ए-दिल पूछने जब वो घर से चले, रास्ते में उन्हें मेरी मैयत मिली ….
साज भाई, श्री एस के वर्मा, श्री सुशील श्रीवास्तव, श्री इन्द्र बहादुर श्रीवास्तव और मित्रों के साथ ‘प्रेरणा’ पत्रिका के प्रकाशन एवं वाहन निर्माणी इस्टेट सामाजिक सभागृह में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों के आयोजन के लिए दिन-रात की भाग-दौड़ के पल आज मुझे स्वप्न से लगते हैं और वर्तिका की वर्तमान जानकारी साझा करना मेरा व्यक्तिगत दायित्व लगता है।) 

जबलपुर की वाहन निर्माणी में वर्ष 1984 में साज जबलपुरी, नरेंद्र शर्मा, सुशील श्रीवास्तव, इंद्र बहादुर श्रीवास्तव और उनके अन्य साथियों ने इस सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था वर्तिका का गठन किया था।  निर्माणी के अंदर सीमित दायरे में ही वर्तिका ने अपनी नींव मजबूत कर ली थी और उसने आज अपना बरगदी स्वरुप धारण कर लिया है।
संस्कारधानी जबलपुर ही नहीं प्रादेशिक सीमा को लाँघकर देश के दूरांचलों में भी इसकी गतिविधियाँ पढ़ी और सुनी जा सकती हैं। वर्तिका के लंबे इतिहास के अनेक प्रसंग और यादगार पल आज भी सबके जेहन में बसे हैं। अनूठे और भव्य आयोजनों से वर्तिका की आज अलग पहचान बन चुकी है ।
साल भर वर्तिका की मासिक गोष्ठियों एवं काव्य पटल अनावरण कार्यक्रमों ने अपना एक नवीन इतिहास रचा है। हम मासिक गोष्ठियों में विभिन्न विषयों में दक्ष विशेषजों को आमंत्रित कर उनसे जीवनोपयोगी और ज्ञानवर्धक व्याख्यान सुनते हैं। कानून, शिक्षा, साहित्य, संगीत, चित्रकला, व्याकरण, चिकित्सा जैसे विषयों का समावेश निश्चित रुप से वर्तिका परिवार के लिए सोने में सुहागा जैसा हैं। साल भर लगातार स्थानीय एवं देश के ख्यातिलब्ध साहित्यकारों का वर्तिका के कार्यक्रमों में शरीक होना हमें गौरवान्वित करता है । वर्तिका के बैनर तले कृतियों का विमोचन तथा मासिक गोष्ठियों के अतिरिक्त अनेक कार्यक्रमों का होते रहना वर्तिका की सफलता नहीं तो और क्या है ? वर्तिका द्वारा अन्य संस्थाओं में सहभागिता करना एवं नगर की संस्थाओं द्वारा वर्तिका को सहभागी बनाना भी एक अहम उपलब्धि है । वर्तमान समय में जब मानव निजी स्वार्थ और औपचारिकताओं तक ही सीमित होता जा रहा हो । उसे समाज, साहित्य और देश के प्रति सोचने की फुरसत कहाँ है। वर्तमान सूचना तकनीक ने सभी पुराने मानदंडों को गौण बना दिया है । ऐसे में हमारी नई सोच और नई चेतना ही कुछ कर सकती है । भावनाओं और नैतिक मूल्यों के ह्रास को रोकने के लिए भी अब संस्थाओं के माध्यम से प्रयास जरूरी हो गए हैं । हमारी वर्तिका भी सदैव ऐसे प्रयासों में सहभागिता प्रदान करती हैं।
विगत 34 वर्षों से वर्तिका ने अपनी सक्रियता एवं कार्यशैली से जो साहित्य सेवा की है और जो साहित्यकार दिए हैं, वे स्वयं ही उदाहरण स्वरूप हमारे सामने हैं। वर्तिका आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है। जबलपुर एवं सीमावर्ती क्षेत्रों में इसकी गहरी पैठ है। आज वर्तिका से जुड़कर लोग स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। संस्थापक स्व. साज जबलपुरी जी से लेकर वर्तमान की पूरी इकाई वर्तिका को नित नवीनता प्रदान करती आ आई है। वर्तिका एक साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था है। साहित्य के अतिरिक्त भी समाज में वर्तिका अपना सहयोग प्रदान करती है। वैसे तो वर्तिका प्राम्भ से ही अपने वार्षिक आयोजनों के दौरान  स्मारिकाएँ एवं काव्य संग्रह प्रकाशित करती आई है। इस बार भी वार्षिक आयोजन में उत्कृष्ट स्मारिका वर्तिकायन- 2018 प्रकाशित की गई है, जिसमें साज जबलपुरी जी पर केन्द्रित विषयों को प्रमुखता से स्थान दिया गया है। वार्षिक कार्यक्रम में वर्तिका राष्ट्रीय अलकरणों हेतु इस बार भी देश के विभिन्न प्रांतों की प्रतिभाएँ सम्मानित हुईं।
विजय तिवारी “किसलय”
अध्यक्ष (वर्तिका)
14 नवंबर 2018
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बहुत ही सार्थक एवं दिशाबोधी आलेख है।
एक इंसान को साहित्यकार कहलाने और बनने के मार्ग में साहित्यिक संस्थाओं का अपना महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। वर्तिका इसका अनुपम उदाहरण है।
वर्तिका की जानकारी यहाँ प्रकाशित करने के लिए आदरणीय हेमंत जी का विनम्र आभार।
– विजय तिवारी ‘किसलय’, जबलपुर