डॉ राजकुमार तिवारी सुमित्र जी का 42 वर्ष पूर्व लिखा पत्र – मेरी धरोहर

इस ईमेल के युग में आज कोई किसी को पत्र नहीं लिखता। किन्तु, श्रद्धेय डॉ सुमित्र जी का वह हस्तलिखित प्रथम पत्र आज भी मेरे पास सुरक्षित है। यह साहित्यिक एवं प्रेरणादायी पत्र 42 वर्ष पूर्व गुरुतुल्य अग्रज का आशीर्वाद एवं मनोभावनात्मक सन्देश मेरी धरोहर है। इस पत्र के प्रत्येक शब्द मुझे सदैव प्रेरित करते हैं।

प्रिय भाई हेमन्त,

पत्र लिखना मुझे प्रिय है किन्तु बहुधा अपना यह प्रिय कार्य नहीं कर पाता और कितने ही परिजन रूठ जाते हैं। लोगों से मिलना और विविध विषयों पर बातें करना ही मेरी संजीवनी है किन्तु इस कार्य में भी व्यवधान आ जाता है। संत समागम हरि मिलन, तुलसी ने दुर्लभ बताए हैं। फिर भी जीवन को अनवरत यात्रा मानकर चलता जा रहा हूँ।

इस यात्रा में तुम्हारा नाम मिला, तुम मिले। सुख मिला। प्रभु की प्रेरणा ही थी कि तुम्हारे पिताश्री द्वारा मैंने मिलने का सन्देश पहुंचाया। एक कौतूहल था। तुमसे भेंट हुई प्रतीक्षा को पड़ाव मिला। तुम्हारा लेखन देखा पढ़ा लगा कि संभावनाएं अंकुरा रही हैं।

मुझे लगा कि तुम गद्य में लेख, व्यंग्य और कथा लिख सकते हो। छंदमुक्त कविता लिखने की  क्षमता भी तुममें है।  तुम्हारा लेखन पढ़कर ऐसा नहीं लगता कि तुम नौसिखिये हो या कि हिन्दी तुम्हारी मातृभाषा नहीं है। यही लगता है कि तुम्हें भाषा का पर्याप्त ज्ञान है, लेखन का पर्याप्त अभ्यास है। ये तो ऊपरी बातें हैं सबसे बड़ी बात यह है कि संवेदना की शक्ति और जीवन की दृष्टि तुम्हारे पास है।

चुभता हुआ सत्य – एक श्रेष्ठ कथा है। सैनिक जीवन, सैनिक के पारिवारिक जीवन के अनछुए पक्ष को, पीड़ा को, तुमने संयमित ढंग से उद्घाटित किया है। कथा मन को गीला और मस्तिष्क को सचेत करती है।

सैनिक जीवन के विविध पक्षों का शब्दांकन करना देश और साहित्य के हित में होगा। संभव हो तो कथाओं के अतिरिक्त सैनिक जीवन पर उपन्यास भी लिखना चाहिए। एक दो उपन्यास कभी देखे पढे थे किन्तु वे काल्पनिक से थे।

एक सुझाव और देना चाहूँगा – ताकि तुम्हारी क्षमता का पूरा लाभ साहित्य को मिल सके – हिन्दी से अङ्ग्रेज़ी और अङ्ग्रेज़ी से हिन्दी रूपांतर पर भी ध्यान दो। यानि अन्य लेखकों की रचनाओं का रूपांतर। मराठी से भी काफी कुछ लिया दिया जा सकता है।

मेरा पूरा सहयोग तुम्हें प्राप्त होता रहेगा।

एक बात और – आलोचना प्रत्यालोचना के लिए न तो ठहरो, न उसकी परवाह करो। जो करना है करो, मूल्य है, मूल्यांकन होगा।

हमें परमहंस भी नहीं होना चाहिए कि हमें यश से क्या सरोकार।  हाँ उसके पीछे भागना नहीं है, बस।

हार्दिक स्नेह सहित

सुमित्र

13 जुलाई 1982

112, सराफा, जबलपुर

(यह एक संयोग ही है कि आज से 42 वर्ष पूर्व मेरी पहली कहानी चुभता हुआ सत्य” डॉ॰  राजकुमार तिवारी सुमित्र जी द्वारा दैनिक नवीन दुनिया, जबलपुर की साप्ताहिक पत्रिका तरंग के प्रवेशांक में 19 जुलाई 1982 को प्रकाशित हुई थी। यह कहानी मेरी उपन्यासिका का एक अंश मात्र थी जो अस्सी-नब्बे के दशक के परिपेक्ष्य में लिखी थी।)

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

4 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

भाई हेमन्त जी को लिखा आदरास्पद डॉ सुमित्र जी का पत्र पढ़ कर ऐसा लगा जैसे कोई अपना हमें प्रोत्साहित करते हुए उसे शिखर पर देखना चाहता हो।
हमें बेहद खुशी है कि आपको भी सुमित्र जी जैसे श्रेष्ठ साहित्यकार का सानिध्य प्राप्त होता रहता है।
-विजय तिवारी “किसलय”, जबलपुर.

डॉ भावना शुक्ल

प्रेरक शब्द सदैव प्रकाश देते है।दीपक प्रज्ज्वलित करने वाले से उसे सँभालने वाले का महत्व अधिक होता है।
डॉ भावना शुक्ल

सुरेश पटवा

डॉ. सुमित्र साहित्य के एक ऐसे पुरोधा हैं जिन्होंने अनेक लोगों को प्रेरणा दी और उन्हें रचनाकार बनने में सहयोग दिया है।