सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

(श्री अजीत सिंह, पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन)

☆ प्यार और कुर्बानी के इलावा माँ के मसलों को भी याद करें  – वानप्रस्थ (वरिष्ठ नागरिकों की संस्था) का आयोजन

हिसार। मई 9.

मैं सीता नहीं बनूंगी, किसी को अपनी पवित्रता का प्रमाण पत्र नहीं दूंगी , आग पर चल कर…..

मैं राधा नहीं बनूंगी, किसी की आंख की किरकिरी बन कर…

मैं यशोधरा भी नहीं बनूंगी, इंतज़ार करती हुई, ज्ञान की खोज में  निकल गए किसी बुद्ध का..

मैं गांधारी भी नहीं बनूंगी, नेत्रहीन पति की साथी बनूंगी पर आंखों पर पट्टी बांध कर नहीं..

प्रो राज गर्ग ने यह कविता सुनाते हुए कहा कि आज की नारी बदल रही है, वह देवी रूप नहीं चाहती, केवल समानता और सम्मान चाहती है।

विश्व मातृत्व दिवस पर रविवार की शाम वानप्रस्थ संस्था द्वारा आयोजित वेबिनार में एक तरफ जहां माँ के असीम प्यार और कुर्बानी को याद किया गया, वहीं मां के उन मसलों को भी उल्लेखित किया गया जिन्हें लेकर सन 1908 में एक अमेरिकी महिला ने इसकी शुरुआत की थी।

प्रो सुनीता श्योकंद का कहना था कि मां अनथक रोबोट या मशीन नहीं है जो हर वक्त सेवा में लगी रहे, वह भी इंसान है, उसे भी आराम की जरूरत है और उसके भी सपने हैं।

इसी तरह माँ से जुड़े मुद्दे अन्य ने भी उठाए। कुरुक्षेत्र से जुड़े प्रो दिनेश दधीचि ने कहा,

घर घर चूल्हा चौका करती,  करती सूट सिलाई माँ,

बच्चों खातिर जोड़ रही है, देखो पाई पाई माँ,

घटते घटते आज बची है, केवल एक तिहाई माँ

सिरसा से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार बी के दिवाकर ने कहा,

माँ मरी ते रिश्ते मुक गए,

पेके हुंदे मावां नाल

माँ पर शायरी करने वाले मुन्नवर राणा की शायरी का भी खूब जिक्र हुआ।

अजीत सिंह ने तरन्नुम में उनकी ग़ज़ल के कुछ शेर पढ़े।

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,  माँ बहुत गुस्से में होती है,  तो रो देती है

प्रो स्वराज कुमारी ने पार्टीशन की पृष्ठभूमि पर लिखा राणा का यह शेर पढ़ा,

बीवी को तो ले आए,

मां को छोड़ आए हैं..

प्रो सुरेश चोपड़ा ने भी राणा के कई  शेर पढ़े..

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,

मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है

डी पी ढुल ने भी मां पर एक मार्मिक कविता पढ़ी।

युगों युगों से मां ने तो भगवानों को भी पाला है,

उसकी गोद जन्नत है,

गिरजाघर और शिवाला है

कुरुक्षेत्र से जुड़ी प्रो शुचि स्मिता का गीत था,

मां सुना दो मुझे वो कहानी,

जिसमें राजा न हो न हो रानी

प्रो शमीम शर्मा की कविता थी,

मां बुहारे हुए आंगन का सबूत,

मां अंधेरे में मुंडेर पर टंगा सूरज है

वेबीनार में शामिल बहुत से सदस्यों ने मां पर आधारित फिल्मी गीत भी सुनाए।

रोहतक से जुड़े प्रो हुकम चंद ने मान की लोरी पेश की। चंदा ओ चंदा, किसने चुराई तेरी मेरी निंदिया, जागे सारी रैन, तेरे मेरे नैन…

प्रो एस एस धवन का गीत था, मां तेरी सूरत से अलग, भगवान की सूरत क्या होगी

डॉ सत्या सावंत ने गाया, चलो चलें मां, सपनों की छांव में..

पुणे से जुड़ी दीपशिखा पाठक की प्रस्तुति थी, तू कितनी अच्छी है, तू कितनी भोली है, ओ मां, ओ मां

वीणा अग्रवाल पंजाबी गीत,  मांवां ते धीयां रल बैठियां नी माए.. गाते हुए भावुक हो गईं, उनका गला रुंध गया और वे गीत पूरा न कर सकीं।

(मदर डे पर आयोजित वानप्रस्थ की गोष्ठी का दृश्य)

लगभग तीन घंटे चली वैब गोष्ठी में करीबन 30 सदस्यों ने भाग लिया तथा एक से बढ़कर एक माँ केंद्रित रचनाएं प्रस्तुत की। दूरदर्शन हिसार के पहले डायरेक्टर रहे एस एस रहमान अजमेर से गोष्ठी में जुड़े और हिसार निवास की यादों को ताज़ा किया।

गोष्ठी का संचालन प्रो जे के डांग ने किया।

 

©  श्री अजीत सिंह

पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन

संपर्क: 9466647037

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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