श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता कविता– किसे  सुनाऊँ)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 134 ☆

☆ कविता ☆ “कविता– किसे  सुनाऊँ” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’   

मैं कविता यहाँ सुनाऊँ ।

तो किस-किसको सुनाऊँ ?

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

एक से एक कवि हैं। 

जहां न पहुंचे रवि हैं।

ब्रह्मा बन कर लेटे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

शब्दों के बाजीगर हैं।

हंसने -हंसाने का वर है।

बिन दुल्हन, दूल्हे से ऐंठे  हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

बातों के तीर चलाते हैं। 

हंसते, हंसाते, रुलाते हैं।

जागे हैं पर, मद में लेटे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

सुनाएंगे बढ़-चढ़कर।

नहीं रहेंगे ये डर कर।

अपनी हद से ही ऐंठे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

 

अपनी ही तो सुनाएंगे।

फिर चुपके से ही जाएंगे।

मन में मन के श्रोता लेटे हैं।

यहाँ तो सभी वक्ता बैठे हैं।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

22-03-23 

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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