☆ पुस्तक चर्चा ☆ आत्मकथ्य – ‘गांधी के राम’ ☆ श्री अरुण कुमार डनायक ☆

पुस्तक – गांधी के राम 

लेखक – श्री अरुण कुमार डनायक

प्रकाशक – ज्ञानमुद्रा पब्लिकेशन, भोपाल (मो- 8815686059)  

मूल्य – 350 रु (सजिल्द) 

पृष्ठ संख्या –  180

ISBN – 978-93-82224-21-1

(वर्तमान में आप यह पुस्तक ज्ञानमुद्रा पब्लिकेशन (मोबाइल नं 8815686059) से अथवा श्री अरुण कुमार डनायक जी  (मोबाइल नं 9406905005) से सीधे संपर्क कर प्राप्त कर सकते हैं । शीघ्र ही यह पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध होगी जिसका लिंक हम आपसे शेयर करेंगे।)

श्री अरुण कुमार डनायक

? इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए ई-अभिव्यक्ति परिवार की और से श्री अरुण कुमार डनायक जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ?

लेखक परिचय

जन्म स्थान – हटा, जिला दमोह मध्य प्रदेश जन्म तिथि 15 फरवरी 1959

पिता – स्वर्गीय श्री रेवा शंकर डनायक माता – स्वर्गीय श्रीमती कमला डनायक

शिक्षा – शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दमोह से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि एवं सीएआईआईबी

सम्प्रत्ति –  भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त सहायक महाप्रबंधक, उन्तालीस वर्षों की सेवा के दौरान  दूरदराज के ग्रामीण व आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कार्य करने का अवसर तथा बैंक की कृषि, लघु उद्योग व व्यवसाय, औद्योगिक वित्त आदि  विभिन्न गतिविधियों में ऋण आकलन व वितरण का अनुभव ।

स्टेट बैंक से सेवानिवृति उपरान्त विभिन्न सामाजिक सरोकारों में संलग्न, कुछ  सेवानिवृत्त मित्रों के साथ मिलकर मध्य प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा की पैदल खंड परिक्रमा, स्कूली विद्यार्थियों, ग्रामीणों व युवाओं के बीच  गान्धीजी  के विचारों को पहुंचाने की दिशा में पहल और ग्रामीण अंचलों में स्वच्छता, वृक्षारोपण, बालिका शिक्षा, ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण हेतु प्रयासरत श्री डनायक ने, गांधी जयन्ती के दिन 02 अक्टूबर 2019 से प्रारम्भ,  स्वप्रेरित प्रकल्प के तहत भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त साथियों व अन्य मित्रों  के सहयोग से दो दर्जन से अधिक शासकीय शालाओं  में स्मार्ट क्लास शुरू करने में सफलता पाई है । आजकल अमरकंटक में बैगा आदिवासियों के बीच सक्रिय हैं।

आत्मकथ्य

पुस्तक में मैंने गांधी जी के ईश्वर के अस्तित्व संबंधी विचारों को लिपिबद्ध करने की शुरुआत राम के प्रति उनकी भक्ति को प्रदर्शित करती हुई नवजीवन में प्रकाशित एक लेख से की है। यह लेख उन्होंने 1924 में एक वैष्णव भाई को, इस उलाहने का जवाब देने के लिए लिखा था कि वे राम आदि अवतारों के लिए एकवचनी प्रयोग क्यों करते हैं? लेखन आगे बढ़ता है और हम पाते हैं कि रामनाम पर गांधी जी की अटूट श्रद्धा इतनी जबरदस्त थी कि वे अपने बीमार पुत्र मणिलाल का इलाज प्राकृतिक जल चिकित्सा से करते हुए भी राम के आसरे रहते हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी के प्रेरणास्रोत  तो जन-जन के नायक, निर्बल के बल राम हैं, जिनकी भक्ति में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस जैसे अमर महाकाव्य की रचना कर रामचरित्र को विश्वव्यापी बना दिया,  हमारी विरासत की अनमोल धरोहर बना दिया। चाहे गोखले जी की सलाह पर भारत भ्रमण हो, हरिजन कल्याण के लिए देश व्यापी दौरा हो, नमक कानून के विरोध में दांडी मार्च हो सबकुछ राम के वन गमन से मेल खाता दिखता है।अपने हर कदम की अग्रिम सूचना अंग्रेजों को देने वाले गांधी जी यहां  हनुमान और अंगद जैसे रामदूतों से प्रेरित दिखते हैं, जो रावण को न केवल चेतावनी देते हैं वरन राम से संधि न करने के दुष्परिणाम भी बताते हैं । ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले गांधी जी नास्तिकों की शंकाओं का भी समाधान करते हैं और विभिन्न धर्मों  के प्रति अपने विचारों को भी बिना किसी भय के प्रस्तुत करते हैं। गांधी जी का सर्वधर्म समभाव के प्रति समर्पण उन्हें हिंदू धर्म से विमुख नहीं करता वरन यह भावना उन्हें श्रेष्ठ हिंदू बनाने में मदद करती है। वे सनातनी हिन्दू क्यों हैं? इसे भी वे बड़ी स्पष्टता के साथ स्वीकार करते हैं। एकादश व्रत तो उनके आध्यात्मिक जीवन की कुंजी है।

माँ सरस्वती जी की अनुकम्पा से कल 16 फ़रवरी 2021 वसंतोत्सव पर्व पर ही ‘गांधी के राम’ के प्रकाशक श्री वरुण माहेश्वरी और श्री प्रयास जोशी हमारे निवास पुस्तक की पांच प्रतियां लेकर आए। इस प्रसन्नता को आप सभी मित्रों एवं ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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