☆ पुस्तक समीक्षा ☆ बँटा हुआ आदमी – डॉ मुक्ता ☆ समीक्षा – सुश्री सुरेखा शर्मा ☆

पुस्तक – बँटा हुआ आदमी

लेखिका –  डाॅ• मुक्ता

प्रकाशक —पेवेलियन बुक्स इन्टरनेशनल अन्सारी रोड़ दरियागंज दिल्ली

प्रथम संस्करण –2018

पृष्ठ संख्या —128

मूल्य —220 ₹

☆ संवेदनशील मन की सार्थक अभिव्यक्ति ☆

सुश्री सुरेखा शर्मा

-मैं अब   तुम्हारे साथ नहीं रह सकता, तुम विश्वास के काबिल नहीं हो?

जब तुम मेरे लिए अपने घरवालों को छोड़ सकती हो तो किसी दूसरे की अंकशायिनी क्यों नहीं ?”  ये पंक्तियाँ हैं भावकथा संग्रह “बँटा हुआ आदमी ” की भावकथा ‘भंवरा’ से।  विवाह के चार साल बाद जब राहुल का मन अपनी पत्नी से भर गया तो उसने राहुल से पूछा, ‘मेरा कसूर क्या है?  हमने प्रेम विवाह किया है ,एक दूसरे के प्रति आस्था व अगाध विश्वास रखते हुए ••••और आज तुम मुझ पर यह घिनौना इल्जाम लगा रहे हो••!” तो पुरुष प्रवृत्ति सामने आती है,ये आप कथा में पढ़ेंगे ।यह किसी   प्रकार का सार संक्षेप न होकर कथा की ही पृष्ठभूमि पर उसके स्वरूपात्मक संदर्भों से जुड़ी वह रचना  है, जिसमें केवल शब्द ही सीमित होते हैं चिंतन नहीं।कथानक प्रतिबंधित नहीं अपितु मर्यादित होकर कथ्य का निर्वहन करते हुए  सीधे और सपाट ढंग से विषय में मर्म का प्रतिपादन होता है । यह एक ऐसी विधा है,जो कम शब्दों में सशक्त अभिव्यक्ति कर सकने की क्षमता रखती है।

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित)

साहित्य जगत की सशक्त हस्ताक्षर, शिक्षाविद्, हरियाणा प्रदेश की पहली महिला जो  माननीय राष्ट्रपति द्वारा  पुरस्कृत हो चुकी हैं वे किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। कविता, कहानी, निबन्ध, समालोचना, लघुकथा आदि साहित्य की अन्य विधाओं में अपनी लेखनी से मिसाल कायम की है । कलम की धनी डाॅ मुक्ता जी का संग्रह  “बँटा हुआ आदमी ” भावकथा संग्रह जिसमें 118 भावकथाओं ने संग्रह में अपना स्थान लिया है जो अपने परिवेश के सभी विषय समेटे हुए है । वर्तमान परिप्रेक्ष्य की झांकी हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं संग्रह की सभी भावकथाएँ।

संग्रहित भावकथाएँ जीवन की उन सच्चाइयों से परिचित कराती हैं जिनसे हम परिचित होते हुए भी अपरिचित अर्थात अनजान बने रहना चाहते हैं। ‘दीवार पर टंगे हुए ‘ ,’क्या है मेरा अस्तित्व’, उचित निर्णय,  ऐसी ही भावकथाएँ हैं जो संवेदनाओं पर प्रहार करती  हैं। एक उदाहरण देखिए –  ‘शालिनी  से सगाई होने पर  सौम्य के माता-पिता ने कहा कि •••हम तो आज ही  आपकी बेटी को घर ले जाना चाहते हैं। लेकिन   शालिनी ने सौम्य से  कहा, “जब तक तुम्हारे माता-पिता जिंदा हैं मैं तुम्हारे साथ उस घर में नहीं रह सकती क्योंकि उसे सास-ससुर अच्छे तो लगते है, लेकिन दीवार पर टंगे हुए ।”

नारी मनोविज्ञान के विभिन्न बिंदुओं पर प्रकाश  डालती भावकथाएँ नारी के अंतर्द्वन्द्व और उसकी पीड़ा को कैसे दर्शाती हैं ये इन कथाओं में देखा जा सकता है । सबकुछ जानते हुए भी एक पत्नी अपने पति से बिछुड़ने की कभी नही सोच सकती।    ‘सुरक्षा कवच’ कथा कुछ यही  बयान करती है —  –‘शोभा !तुम मेरी बिटिया को बड़ी अफसर बनाना।उसे कभी निराश न करना।वादा करो,तुम हमेशा उसे खुश रखोगी।’

—तुम ऐसी बात मत करो -आप ठीक हो जाओगे ।

–शोभा! तुम्हे पता है न!  कैंसर मेरे पूरे शरीर में फैल चुका है। मैं चंद दिनों का मेहमान हूँ । तुम्हें अकेले ही  जीवन की कंटीली पथरीली राहों पर चलना है। वादा  करो! तुम हमेशा  सुहागिन की तरह रहोगी। मंगल सूत्र  तुम्हारे गले की शोभा ही नही बढाएगा, पग -पग पर   तुम्हारी रक्षा भी करेगा ।यह तुम्हारा सुरक्षा कवच होगा।बोलो करोगी न ऐसा। बोलो•••!’ देखते-देखते उसके प्राण पखेरू उड़ गए । चंद दिनों बाद शोभा को सिंदूर और  बिंदिया का महत्व समझ आया कि बिंदिया और मंगलसूत्र विधवा के लिए कैसे सुरक्षा कवच बनते हैं।

संग्रह की लेखिका महिला हैं तो संवेदनशील तो होंगी ही। संवेदनशीलता की पराकाष्ठा तो देखिए। जो बेटा अपने पिता के क्रियाकर्म पर भी नहीं आया उसी बेटे के आने की खबर से सुगंधा के पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे ।कैसी होंगी मेरी पोतियाँ , कैसी होगी उसकी अंग्रेज पत्नी ? मेरी बातें वह समझ पाएगी या नहीं •••।’ सुगंधा इसी उधेड़बुन में  खोई थी कि उसकी सहेली ने कहा, ‘कौन से ख्वाबों के महल बना रही हो?

-‘अरे कुछ नही, मैं तो माधव के बारे में सोच रही थी ।वह आ रहा है न ,अगले हफ्ते । पूरे बीस वर्ष बाद आ रहा है ।’

-तो यह बात है,वह तो अपने पिता की मृत्यु पर भी नहीं आया । फिर भी उसकी बाट जोह रही हो ।कैसे माफ कर सकती हो उसे?

‘-मेरा हिस्सा है वह ••••मैं माँ हूं उसकी•••। ‘

लेखिका ने कथानकों को सुघड़ता से प्रस्तुत कर एक आशावादी स्वर मुखरित किया है ।अधिकांश भावकथाओं में नारी को ललकारा गया है कि नारी,नारी का संबल क्यों नहीं बनती?

‘नहीं बनेगी वह द्रोपदी ‘ भावकथा कुछ ऐसा ही सोचने पर विवश करती है। गरीबी के कारण पिता ने अपनी बेटी का सौदा तो कर दिया । लेकिन उसकी बेटी के साथ क्या हुआ यह उसे नहीं पता••••।

वैश्वीकरण ने हमें  इस कदर प्रभावित कर दिया  कि हम पाश्चात्य सभ्यता व एकल परिवार को ही सब कुछ मान बैठे ।

जिन माता-पिता ने  हमें चलना सिखाया, उन्हीं माता-पिता की सहारे की लाठी बनने की बजाय उन्हें  बोझ समझ कर वृद्धाश्रम में छोड़कर अपना कर्तव्य पूरा कर लेते हैं—‘बेटा ! तुम हमें यहां क्यों छोड़कर चले गए ?  तुम तो हमें तीर्थयात्रा पर ले जाने वाले थे।शायद यही तीर्थ है हम वृद्धों के लिए, तुम अब कभी नहीं लौटोगे•••मैं जानता हूँ •••लक्ष्मण भी इसी तरह छोड़ कर चला गया था सीता को । सीता को पनाह मिली थी बाल्मीकि आश्रम में हमें मिली वृद्धाश्रम में ।”  संग्रह की ‘वृद्धाश्रम ‘ कथा आज के समाज का घिनौना रूप है और पाश्चात्य रंग में रंगी महिलाएँ दहेज व घरेलू हिंसा को हथियार के रूप में प्रयोग करने से नही चूकती -‘घर एक सुखद एहसास ‘ ऐसी ही भावकथा है – ‘- -किस अंजाम की बात कर रहे हो •••कौन -सी सदी में जी रहे हो•••पल भर में तुम सबको जेल भिजवाने का सामर्थ्य रखती हूँ मैं••••।”

‘कैसा न्याय ‘  और ‘ काश! उसने जन्म न  लिया होता ‘   कथा भी कुछ  ऐसा ही सोचने पर बाध्य करती है।आज के समय में सबसे बडा जूर्म है बेटे का विवाह करना।

—-संगीता  बडी खुश होकर अपनी सहेलियों को बता रही थी कि, उसने अपने ससुराल वालों को सलाखों के पीछे पहुंचा ही दिया , अब कोई उसपर रोक-टोक नहीं लगाएगा ।वह पूर्णत स्वतंत्र है।

सहेली ने कारण जानना चाहा और पूछा कि, ‘ आखिर उनका अपराध क्या था,जिसकी तुमने इतनी भयंकर सजा दी है।’

‘अरे वे बडे दकियानूसी विचार वाले थे। हर बात पर रोक-टोक चलती थी।’

संवेदनाओं पर प्रहार करती भावकथा   ‘शंकाओं के बादल’ अत्यंत मार्मिक कथा है जिसमें एक पिता की विवशता देखिए—- जिसने अपने हृदय को पत्थर बनाकर किस तरह  अपने कलेजे के टुकड़े को  मौत की नींद सुलाया होगा ? क्या पिता की सोच सकारात्मक थी •••?सार्थक थी••? उसका निर्णय उचित था ••? इस पर पाठक चिन्तन करें ?

इसमें कोई संदेह नहीं कि आज पारिवारिक रिश्तों की उष्मा कम होती जा रही है ।संवादहीनता पसर रही है। परिवार और समाज में बुजुर्गों के स्थान और   सम्मान को लेकर जिस प्रभावशाली ढंग से दोहरी मानसिकता को संग्रह  की कुछ कथाओं में उजागर किया है इससे लेखिका के गम्भीर चिन्तन का परिचय मिलता है। वे भावकथा हैं -स्वयंसिद्धा, ,उपेक्षित  पात्र, बिखरने से पहले, राफ़्ता आदि । संग्रहित भावकथाओं में टूटते–बिखरते सम्बन्धों और विश्वासों को गहराई से देखने की कोशिश की गई  है। ये संबंध कहीं बन रहे हैं तो कहीं टूट रहे हैं। इसी तरह जीवन के प्रति कहीं  गहरा लगाव है तो कहीं टूटता नजर आता है ।लेकिन लेखिका की सोच जीवन एवं सम्बन्धों के प्रति गहरी आस्था लिए हुए है ।इसलिए उनकी भावकथाओं  में सकारात्मक दृष्टिकोण दिखाई देता  है । जीवन के तराशे हुए क्षणों और अनुभवों को लेखिका ने अपनी सृजन धर्मिता का आधार  बनाया है ।

कई बार हम कितने संवेदनहीन हो जाते हैं कि हमें दूसरों का कष्ट व दुख महसूस ही नही होता।  ‘अनुत्तरित प्रश्न ‘ कथा हम सब की इन्सानियत पर कड़ा प्रहार करती है हमारी संवेदनाओं को झिंझोड़ती है।एक गरीब बच्चा जो दयनीय दशा में स्टेशन पर भीख मांगता था । आने- जाने वाले उसके कटोरे में कुछेक सिक्के डालकर स्वयं को दानवीर समझने लगे थे। भीख  मांगने पर भी उसे रात को भूखे पेट सोना पड़ता था । क्यों••••••क्योंकि भीख में मिली रकम तो ••••उसका सरदार बेवड़ा ले जाता था । अगले दिन स्टेशन पर भीड़ को देखते हुए वह भी रुककर देखता है तो वह बच्चा मृत पड़ा था।उसके नेत्र खुले थे। मानो वह हर आने जाने वालों से प्रश्न कर रहा हो. ••••कब तक मासूमों के साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार होता रहेगा   ? उन्हें अकारण दहशत के साए में जीना पड़ेगा ••••?’

संपूर्ण भावकथा संग्रह में समाज के हर वर्ग के मन को छूने वाली कोई न कोई कथा निश्चित रूप से पढ़ने को मिलेगी। भाषा सरल व सुगम्य है।  जो पाठकों को बिना किसी व्यवधान के पूरी कथा पढ़ने व चिन्तन करने को प्रेरित करती हैं। इन भावकथाओं को पढ़ने से पाठक की मानवीय संवेदनाएं जागृत होंगी, ऐसा मेरा  विश्वास है।  जनसाधारण को केंद्र में रखकर लिखी गई भावकथाओं का संग्रह लेखिका के मौलिक चिन्तक एवं कथाकार के रूप में उभर कर सामने आता है। लेखिका का भाषा पर ऐसा अधिकार है कि जो कुछ वे कहना चाहती हैं वह ठीक उसी रूप में संपूर्णता से व्यक्त होता है । लेखिका के मन की छटपटाहट, वेदना  व समाज के व्यवहार की विभिन्न भंगिमाओं का आकर्षक ताना-बाना कृति की विशेषता है।कभी पाठक पढ़ते-पढ़ते जी उठता है तो कभी विसंगतियो की सड़ांध के प्रति  वितृष्णा से भर उठता है।संग्रह की कुछ कथाएं मन -मस्तिष्क पर बेचैनी का प्रभाव छोड़ती हैं।

लेखिका बधाई की पात्र हैं जिसने व्यथा भाव के साथ -साथ पाठकों के समक्ष  अनेक प्रश्न रखे  हैं ।  “बँटा हुआ आदमी ” संवेदनशील अभिव्यक्ति बन पड़ी है । यही रचनाकार का उद्देश्य है, प्रयोजन है।सभी कथाएं गहरे सामाजिक  सरोकारों की छवियां हैं।

स्वस्थ एवं दीर्घायु होने की कामना करते हुए लेखिका को पुनः बधाई देती हूं,कि वे अपनी लेखनी से  साहित्य जगत को समृद्ध करती रहें।

 

सुश्री सुरेखा शर्मा(साहित्यकार)

सलाहकार सदस्या, हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी।

पूर्व हिन्दी सलाहकार सदस्या, नीति आयोग (भारत सरकार )

# 498/9-ए, सेक्टर द्वितीय तल, नजदीक ई•एस•आई• अस्पताल, गुरुग्राम…122001.

मो•नं• 9810715876

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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