डॉ कुन्दन सिंह परिहार

☆ पार्टियों में कोहराम ☆

(लोकतन्त्र के महापर्व पर डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी का एक  सामयिक एवं सटीक व्यंग्य।)  

 

पार्टियों में इस वक्त भगदड़ का आलम है।सब तरफ बदहवासी है।बात यह हुई कि एक पार्टी ने जन-जन की प्यारी, दर्शकों की आँखों की उजियारी, परम लोकप्रिय ठुमका-क्वीन और जन-जन के प्यारे, दर्शकों के दुलारे झटका -किंग को फटाफट पार्टी में शामिल करके लगे-हाथ चुनाव का टिकट भी पकड़ा दिया है।चुनाव का टिकट एकदम ठुमका-क्वीन और झटका-किंग की पसंद का दिया गया है ताकि उन्हें जीतने में कोई दिक्कत न हो।तबसे उनके क्षेत्र के उनके भक्त टकटकी लगाए बैठे हैं कि कब भोटिंग हो और वे अपने दुलारे कलाकारों की सेवा में अपने भोट समर्पित करें।

विरोधी पार्टियों वाले बदहवास दौड़ रहे हैं। लगता है जैसे कोई बम फूट गया है। बुदबुदा रहे हैं—–‘दिस इज़ अनफ़ेयर। हिटिंग बिलो द बेल्ट।हाउ कैन दे डू इट?’

विरोधी पार्टियों के वे उम्मीदवार परेशान हैं जो ठुमका-क्वीन और झटका-किंग के चुनाव-क्षेत्र से खड़े होने वाले हैं।आँखों में आँसू भरकर कहते हैं, ‘भैया, हम जीत गये तो मूँछ ऊँची होना नहीं है और अगर हार गये तो नाक कट कर यहीं सड़क पर पड़ी दिखायी देगी।नाक पर रूमाल रखकर चलना पड़ेगा।अगली बार पता नहीं पार्टी टिकट दे या नहीं।कहाँ फँस गये!’

सभी दूसरी पार्टियों ने अपने सीनियर कार्यकर्ताओं को आदेश जारी कर दिया है कि तत्काल जितनी ठुमका-क्वीन और जितने झटका-किंग राज्य में मिल सकें उन्हें भरपूर प्रलोभन देकर झटपट पार्टी में ससम्मान शामिल करायें। उन्हें तुरंत उनकी पसंद का चुनाव टिकट नज़र किया जाएगा। इस काम के लिए हर पार्टी ने दो दो हेलिकॉप्टर मुकर्रर कर दिये हैं ताकि काम तत्काल हो और दूसरी पार्टी वाले क्वीनों और किंगों को झटक न लें।

ज़्यादा बदहवास उस पार्टी के उम्मीदवार हैं जिसने सबसे पहले क्वीन और किंग को अपने पाले में खींचा है। क्वीन और किंग के चुनाव -क्षेत्र से जिनको टिकट मिलने की उम्मीद थी उनकी नींद हराम है। वे बड़े नेताओं के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं——-‘सर, यह क्या किया? हमारे चुनाव-क्षेत्र का टिकट क्वीनों और किंगों को दे दिया तो हम कहाँ जाएंगे? सर, हम तीस साल से पार्टी की सेवा कर रहे हैं। तीन बार लगातार चुनाव जीते हैं।’

जवाब मिलता है, ‘जीते हो तो लगातार मलाई भी तो खा रहे हो। कौन सूखे सूखे सेवा कर रहे हो। पंद्रह साल में आपकी संपत्ति में जो बरक्कत हुई है उसकी जाँच करायें क्या?’

बेचारा उम्मीदवार बगलें झाँकने लगता है।

बड़े नेताजी समझाते हैं, ‘सवाल ‘विन्नेबिलिटी’ का है।हमें किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना है।क्वीन और किंग की पापुलैरिटी जानते हो?एक ठुमका मारते हैं तो सौ आदमी गिर जाता है। दो तीन लाख भोट तो आँख मूँद के आ जाएगा। आपकी सभा में तो सौ आदमी भी इकट्ठा करने के लिए पाँच सौ रुपया और भोजन का प्रलोभन देना पड़ता है। पार्टी की भलाई का सोचो। सत्ता हथियाना है या नहीं?’

उम्मीदवार आर्त स्वर में कहता है, ‘सर, यही हाल रहा तो एक दिन सदनों में कोई पालीटीशियन नहीं बैठेगा। सब तरफ किंग और क्वीन ही दिखायी पड़ेंगे। तब कैसा होगा, सर?’

नेताजी कहते हैं, ‘तो आपकी छाती क्यों फटती है? सदन में सुन्दर और स्मार्ट चेहरे दिखेंगे तो आपको बुरा लगेगा क्या? एक अंग्रेज लेखक हुए हैं—-आस्कर वाइल्ड। उन्होंने एक जगह लिखा कि सुन्दर चेहरे वालों को ही दुनिया पर राज करना चाहिए। सदनों में सुन्दर चेहरे रहेंगे तो दर्शक सदन की कार्यवाही देखने में ज़्यादा दिलचस्पी लेंगे। सदन में सदस्यों की उपस्थिति भी सुधरेगी। हम जो कर रहे हैं समझ बूझ के कर रहे हैं। ज़्यादा टाँग अड़ाने की कोशिश न करें। हमको इनडिसिप्लिन की बातें पसंद नहीं हैं।’

उम्मीदवार अश्रुपूरित नयनों के साथ विदा हुए।

 

© कुन्दन सिंह परिहार
जबलपुर (म. प्र.)
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