श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक अविस्मरणीय संस्मरण “जलेबी वाले जीजा”।)  

☆ संस्मरण  # 131 ☆ जलेबी वाले जीजा ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

हम पदोन्नति पाकर जब बिलासपुर आए तो हमारे बचपन के खास मित्र मदन मोहन अग्रवाल  ने बताया कि जीजा बिलासपुर में रहते हैं, गोलबाजार की दुकान में बैठते हैं और लिंक रोड की एक कालोनी में रहते हैं, बिलासपुर नये नये गए थे तो बैंक की नौकरी के बाद कोई बहाना ढूंढकर गोलबाजार की दुकान जीजा से मिलने पहुंच जाते,

जीजा शुरु शुरु में डरे कि कहीं ये आदमी उधार – सुधार न मांगने लगे तो शुरु में लिफ्ट नहीं दी। फिर जब देखा कोई खतरा नहीं है तो एक दिन घर बुला लिया। बिलासपुर के बिनोवा नगर मे हम अकेले रहते तो कभी कभी बोरियत लगती पर जीजा से बार बार मिलने में संकोच होता कि उनके व्यापार में डिस्टर्ब न होवे तो कई बार गोलबाजार के चक्कर लगा के लौट जाते। हांलाकि उन दिनों बिलासपुर छोटा और अपनापन लिए धूल भरा छोटा शहर जैसा था,और जबलपुर के छोटे भाई जैसा लगता था। गोलबाजार की उनकी मिठाई की दुकान बड़ी फेमस थी।  हम मिष्ठान प्रेमी भी थे मिठाईयों से उठती सुगंधित हवा सूंघने का आनंद लेते पर जीजा कभी कोई मिठाई को नहीं पूछते। कई बार लगता कहीं बड़े कंजूस तो नहीं हैं। जब छुट्टी में जबलपुर लौटते तो मित्र मदन गोपाल से टोह लेते तो पता चलता कि जीजा बड़े दिलेर हैं, जब भांवर पड़ रहीं थी तो दिद्दी की सहेली को लेकर भागने वाले थे। हम जब बिलासपुर लौटे तो इस बार मिठाइयों को देख देख जीजा की खूब तारीफ की, पर वे हंसी ठिठोली करने में माहिर, काहे को पिघलें, हमनें भी एक दिन गरमागरम जलेबी का आदेश दिया और बाहर खड़े होकर खाने लगे पर हाय रे जीजा,,  देखकर भी अनजान बन गए। जब पैसा देने गए तो मुस्कराते हुए हालचाल पूछा और बोले मिठाई कम खाना चाहिए …

* आज 24 साल बाद जब रिपोर्ट में बढ़ी हुई शुगर दिखाई दी तो लगा जीजा ठीक ही कहते थे। अब समझ में आया कि जीजा समझदार इंसान हैं तभी तो आत्मकथा की तीन चर्चित किताबें लिख डालीं। उनकी किताब जीवन से साक्षात्कार कराती है चलचित्र की तरह जीवन के अबूझ रहस्यों से सामना करने का हौसला देती है। 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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