डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – ओ शीशे की राजकुमारी…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 94 – गीत – ओ शीशे की राजकुमारी✍

बिखर बिखर कर गिरो नहीं तो

तुमको हाथ लगा देखूँ

पावन नदी कंठ तक आई

अपनी प्यास जगा देखूँ।

 

ऐसी देह दमकती जैसे

कोई निर्मल दरपन  हो

ऐसी ठंडी आग कि जिसमें

 जलता मन भी चंदन हो ।

 

ओ शीशे की राजकुमारी ,छूकर देखूँ देह तुम्हारी

 

देह धर्म का दरवाजा है

ऐसा लोग कहा करते

संयम की साँकल में बँधकर

कितने लोग रहा करते?

 

एक सुद्र माटी का पुतला

कब तक नेम निभाएगा

बाँहो के राहों में बोलो

रथ रूपम कब आएगा।

 

ओ फूलों की राजकुमारी, छूकर देखूँ देह तुम्हारी

ओ यादों  की राजकुमारी, छूकर देखूँ देह तुम्हारी।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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