श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “मन पर दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 146 ☆

☆ मन पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

तन का राजा मन सदा, जिसके हैं नवरंग

उसके ही आदेश से, करें काम सब अंग

 

मन टूटा तो टूटता, अंदर का विश्वास

रखें सुद्रण मन को सदा, मन से बंधती आस

 

मन चंचल मन वाबरा, मन की गति अंनत

पल में ही वह तय करे, जमी-गगन का अंत

 

जो अंकुश मन पर रखे, मन पर हो असवार

उसका जीवन है सफल, रखे शुद्ध आचार

 

रखें साथ तन के सदा, मन को भी हम साफ

तभी बढेगा जगत में, स्वयं साख का ग्राफ

 

ध्यान योग अभ्यास से,मन पर रखें लगाम

तभी मिलेगी सफलता,बनते बिगड़े काम

 

मन रमता संसार में,मन माया का दास

मन के घोड़े भागते,लेकर लालच,आस

 

दूर करें मन का तिमिर,मन में भरें उजास

रोशन हों सुख-दुख सभी,अंतस प्रभु का वास

 

मन को निर्मल राखिए,कभी जमे नहिं धूल

मन मैला तो कर्म भी,बनें राह के शूल

 

जीवन के सुख-दुख सभी,मन के हैं आधार

छिपे न मन से कुछ कभी,मन के नैन हजार

 

मन के पीछे भागकर,खोएं मत “संतोष”

तभी मिलेगी सफलता, रखें ज्ञान का कोष

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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