श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़  सकते हैं ।

आज प्रस्तुत है  डॉ लालित्य ललित जी  के  व्यंग्य  संग्रह   “पांडेय जी सर्वव्यापी” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 43 ☆ 

व्यंग्य संग्रह – पांडेय जी सर्वव्यापी

व्यंग्यकार – डॉ  लालित्य ललित

प्रकाशक – इंडिया नेट बुक्स

पृष्ठ १२०

☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य  संग्रह  – पांडेय जी सर्वव्यापी – व्यंग्यकार – डॉ  लालित्य ललित ☆ पुस्तक चर्चाकार -श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र☆

मुक्त कापी राइट एक्ट के वे युग पुराने प्रतीत हो रहे हैं जब कुछ दशको के बाद किताबें कापी राइट एक्ट से मुक्त हो जाती थीं.  महाकवि गोस्वामी तुलसीदास की मानस व अन्य साहित्य,  ऐसे ही जाने कितने महान रचनाकारों सहित मुंशी प्रेमचंद जो स्वयं आजीवन अभावों में जीते रहे आज उनकी किताबें छाप छाप कर जाने कितने प्रकाशक धनाढ़्य हो रहे हैं.

इलेक्ट्रानिक संसाधनो और इंटरनेट के इस सुपर फास्ट युग में सामान्यतः प्रकाशक व लेखक दोनो ही किताबों  की पीडीएफ प्रति सहजता से सुलभ करवाने में डरते हैं कि जो थोड़ी बहुत किताब बिकने की संभावना हो वह भी समाप्त न हो जावे.  पर मैं मुक्त कंठ प्रशंसा करता हूं इस ग्रुप के सदस्य और स्वयं कवि व लेखक श्री संजीव कुमार जी की तथा श्री लालित्य जी जैसे हम लेखको का जिनके चलते  हर सप्ताह हमें किसी नई व्यंग्य पुस्तक, किसी नये व्यंग्य लेखक को पढ़ने का सुअवसर मिलता है. यह इस व्हाट्सअप समूह की सफलता का अलिखित सोपान है.

हर सीमा के बंधन को लांघ सर्वव्यापक बनना वायु से,  सर्वव्यापक बनना गन्ध से,  सर्वव्यापक बनना ताप से,  सर्व व्यापक बनना वैचारिक भाव से,  सीखना ही चाहिये हम सब को.  अदृश्य अणु का ब्रम्हांड सा विस्तार है पांडेय जी की सर्वव्यापकता.  इस कृति के लेखक का मैत्रेय स्वभाव भी सर्वव्यापकता लिये हुये है.  उन्होने पांडेय जी के कैरेक्टर की रचना की है.

अनेक जाने माने साहित्यकार हैं जिनके रचे बुने हुये केरेक्टर  बड़े पाप्युलर हुये हैं. लहनासिंह चंद्रधर शर्मा गुलेरी की उसने कहा का था का अमर नायक बन चुका है.  किसी न किसी स्वरूप में  मिकी माउस के कार्टून पढ़े बिना शायद ही कोई बच्चा बड़ा होता है.  प्रायः व्यंग्यकार किसी न किसी कल्पना चरित्र की रचना कर,  उसके अवलंबन से अपनी बात सहजता से कह पाते हैं.  इंस्पैक्टर मातादीन की रचना करते वक्त शायद ही परसाई जी ने सोचा रहा हो कि जाने कितने मंचो पर मातादीन चांद का सफर करेगा.  एक सफल कथा नायक का चरित्र कथा को लेखक को तथा रचना को अमर बना देता है.

मैंने ललित जी के पाडेय जी से मुलाकात की है.  यद्यपि लेख बहुत लम्बे हैं और मोबाईल या टैब पर पढ़ने की मेरी अपनी सीमायें हैं,  पर जो एक तथ्य मैं इस केरेक्टर में ढ़ूंढ़ सका वह है पाडेय जी का साधारणीकरण.  सचमुच पाण्डेय जी हम सब के आस पास बिखरे पड़े हैं.  आस पास क्या हम सब में थोड़े बहुत पांडेय जी विद्यमान हैं.  यही सरलीकरण उन्हें सर्व व्यापक बना रहा है.  इतना अधिक लिख पाना कि १२० पृष्ठ केवल ग्यारह व्यंग्य से भर जायें ललित जी की खासियत है.  किताब का मर्म समझने के लिये राजेशकुमार जी की विशद व्यापक विवेचना करती हुई भुमिका पढ़ लेना ही पर्याप्त है.

इस किताब के जरिये ललित जी ने बहुत नई शैली के साथ व्यंग्य जगत में जोरदार दस्तक दी है.  एक साथ ही ये लेख व्यंग्य भी हैं,  संस्मरण भी हैं,  आत्मकथ्य भी हैं,  कहानी भी हैं,  व्यंग्य तो हैं ही.  कविता भी समेटे हुये हैं.  जो भी हैं पढ़ने लायक हैं,  रोचक हैं चित्रमय वर्णन हैं.  कभी पूरी किताब हार्ड कापी में पढ़ी तो फिर लिखूंगा और विस्तार से.  फिलहाल यदि आप समकालीन व्यंग्य के संग चल रहे हैं तो आप सबको इसे अवश्य पढ़ने का आमंत्रण दे रहा हूं.

समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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