महात्मा गाँधी जी के 150 वे जन्म वर्ष पर विशेष
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्या अभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  महात्मा गाँधी जी के 150 वे जन्म वर्ष पर एक ऐतिहासिक एवं ज्ञानवर्धक आलेख  “बिजली और महात्मा गांधी”।  इस ज्ञानवर्धक एवं ऐतिहासिकआलेख  के लिए श्री विवेक रंजन जी का हार्दिक आभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 33 ☆ 

☆ आलेख – बिजली और महात्मा गांधी ☆

भारत में प्रारंभिक व्यवसायिक बिजली उत्पादन कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉरपोरेशन ने 1899 में शुरू किया था, यद्यपि  गांधी जी के जन्म के लगभग दस पंद्रह वर्षो के भीतर ही कोलकाता ही देश का पहला शहर था जहां अंग्रेजो ने शाम के समय बिजली के प्रकाश की व्यवस्थाये कर दिखाईं थी। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में १९०५ में दिल्ली में भी बिजली से प्रकाश व्यवस्था का प्रारंभ हुआ।  शुरुआती दौर में डीजल से बिजली बनाई जाती थी। 1911 के तीसरे दिल्ली दरबार के समय जब अंग्रेज राजा ने बुराड़ी के कोरोनेशन पार्क में आयोजित एक समारोह में ब्रिटिश भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा की, उसी साल यहां पर भाप से  बिजली उत्पादन स्टेशन बनाया गया। अंग्रेजों ने 20वीं सदी के पहले दशक में भारतीय परंपरा की नकल करते हुए दिल्ली में दो दरबार सन 1903 एवं 1911 में  किए, जिनमें बिजली से साज-सजावट की गई। लियो कोल्मैन ने अपनी पुस्तक ‘ए मॉरल टेक्नॉलजी, इलेक्ट्रिफिकेशन एज पॉलिटिकल रिचुअल इन न्यू डेल्ही’ में भारत की राजधानी के बिजलीकरण के बहाने सांस्कृतिक राजनीति, राजनीतिक सोच को आकार देने में प्रौद्योगिकी की भूमिका को रेखांकित किया है। ‘दिल्ली, पास्ट एंड प्रेजेन्ट’ के लेखक एच सी फांशवा ने पूर्व (यानी भारत) में बिजली की रोशनी की शुरुआत पर चर्चा करते हुए इसे एक फिजूल खर्च के रूप में खारिज कर दिया था। उसने तर्क देते हुए कहा कि दिल्ली में कलकत्ता के विपरीत कारोबार शाम के समय खत्म हो जाता है। ऐसे में मिट्टी के तेल से होने वाली रोशनी ही काफी है। ‘मैसर्स जॉन फ्लेमिंग’ नामक एक अंग्रेज कंपनी ने दिल्ली में 1905 में पहला डीजल पावर स्टेशन बनाया था। इस कंपनी के पास बिजली बनाने और डिस्ट्रीब्यूशन दोनों की जिम्मेदारी थी। विद्युत अधिनियम, 1903 के तहत लाइसेंस लेने के बाद ‘जॉन फ्लेमिंग कंपनी’ ने पुरानी दिल्ली में लाहौरी गेट पर दो मेगावाट का एक छोटा डीजल स्टेशन बनाया। बाद में इसका नाम ‘दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई एंड ट्रैक्शन कंपनी’ हो गया। 1911 में, बिजली उत्पादन के लिए स्टीम जनरेशन स्टेशन यानी भाप से बिजली बनाने वाले स्टेशन की शुरुआत हुई। ‘दिल्ली गजट, 1912’ के अनुसार, बिजली से रोशनी के मामले में दिल्ली किसी भी तरह से दुनियां से पिछड़ी नहीं थी। 1939 में दिल्ली सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी पॉवर अथॉरिटी बनाई गई थी।

यह वर्ष महात्मा गांधी के १५० वें जन्म वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से १९१५ में पूरी तरह भारत लौटे थे, इस तरह देश में बिजली की प्रकाश के उपयोग हेतु सुलभता तथा महात्मा गांधी का भारत की राजनीति में सक्रिय योगदान लगभग समकालीन ही हैं।

१८८८ में जब गांधी जी लंदन पढ़ने गये थे तब लंदन में बिजली से प्रकाश व्यवस्था की जा चुकी थी। इसलिये गांधी जी बिजली से बहुत वाकिफ रहे। १८९३ से १९१४ तक वे दक्षिण अफ्रीका में रहे, तब तक दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन आदि शहरो में भी बिजली का उपयोग होने लगा था। टेलीग्राफ, इलेक्ट्रिक मोटर उपकरणो का उपयोग भी धीरे धीरे बढ़ रहा था। टेलीग्राम के उपयोग के दृष्टांत महात्मा गांधी की जीवनी में भी जगह जगह पढ़ने  मिलते हैं। यद्यपि सीधे तौर पर बिजली को लेकर महात्मा गांधी के विचार किसी पुस्तक में मुझे पढ़ने नही मिले पर महात्मा गांधी मशीनीकरण के अंधानुगमन के विरोध में थे। वे स्वायत्त ग्रामीण व्यवस्था के पक्षधर थे, बिजली के संदर्भ में इन विचारो को अधिरोपित करें तो आज बिजली वितरण, उत्पादन की जो क्षेत्रीय कंपनियां बनाई जा रही हैं, किंबहुना यह ढ़ांचा महात्मा गांधी के विकास के स्वशासित अनुपूरक ढ़ांचे का ही विस्तार कहा जा सकता है।

18 मार्च 1922 को गांधी जी को छह साल की सजा सुनाई गई थी। उन्हें गुजरात की साबरमती जेल से विशेष ट्रेन से पुणे की येरवडा जेल स्थानांतरित कर दिया गया था। गांधी जी को अपेंडिसाइटिस की गंभीर समस्या के कारण 12 जनवरी 1924 में पुणे के ससून अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। अंग्रेज सरकार उनके आपरेशन के लिये मुंबई से आने वाले भारतीय चिकित्सकों का इंतजार करना चाहती थी लेकिन आधी रात से पहले ब्रितानी सर्जन कर्नल मैडॉक ने गांधी जी को बताया कि उनका तत्काल ऑपरेशन करना पड़ेगा जिस पर सहमति भी बन गई।

जब ऑपरेशन की तैयारी की जा रही थी, गांधीजी के अनुरोध पर ‘सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी’ के प्रमुख वी एस श्रीनिवास शास्त्री और मित्र डॉ फटक को भी वहां  बुलाया गया जिससे देश की जनता के सामने अंग्रेज डाक्टर की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह न लगे। एक सावर्जनिक बयान जारी किया जिसमें गांधी जी ने कहा कि उन्होंने ऑपरेशन के लिए सहमति दी है, चिकित्सकों ने उनका भली-प्रकार उपचार किया है और कुछ भी अप्रिय होने पर सरकार विरोधी प्रदर्शन नहीं होने चाहिए।

दरअसल, अस्पताल के अधिकारी और गांधी जी यह भली भांति जानते थे कि यदि ऑपरेशन में कुछ गड़बड़ी हुई तो देश के जन मानस पर इसके अपरोक्ष राजनैतिक  प्रभाव होंगे।  गांधी जी ने जब इस बयान पर हस्ताक्षर के लिए  कलम उठाई, तो उन्होंने कर्नल मैडॉक से मजाकिया अंदाज में कहा, ‘देखो, मेरे हाथ कैसे कांप रहे हैं।।। आपको यह सही से करना होगा।’  जवाब में डा मैडॉक ने कहा कि वह पूरी ताकत लगा लेंगे। इसके बाद गांधी जी को क्लोरोफॉम सुंघा दी गई। जब ऑपरेशन शुरू किया गया, उस समय आंधी और वर्षा हो रही थी। ऑपरेशन के बीच में ही बिजली गुल हो गई ऑपरेशन के लिए टार्च लाइट की मदद ली गई। ऑपरेशन के बीच में इसने भी जवाब दे दिया। आखिरकार, ब्रितानी चिकित्सक ने लालटेन की रोशनी में गांधी जी का सफल ऑपरेशन किया। इस घटना के 95 साल बीत चुके हैं। सरकारी अस्पताल के 400 वर्ग फुट के इस ऑपरेशन थियेटर को एक स्मारक में बदल दिया गया है।महात्मा गांधी के जीवन की इस अहम घटना का साक्षी बने इस कमरे में महात्मा गांधी के ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल की गई एक मेज, एक ट्राली और कुछ उपकरण रखे हैं। इस कमरे में एक दुर्लभ पेंटिंग भी है जिसमें बापू के ऑपरेशन का चित्रण है। किंतु आपरेशन के समय अस्पताल की बिजली गुल हो जाने की घटना रोमांचक तो है ही।

आज जाने कितनी बिजली परियोजनाओ का नामकरण महात्मा गांधी के नाम पर किया गया है, जाने कितनी विद्युतीकरण योजनायें उनके नाम पर चलाई जा रही हैं किंतु यदि महात्मा गांधी के सिद्धांतो से बिजली को जोड़ कर देखें तो हम कह सकते हैं कि सबके लिये सदैव बिजली की सौभाग्य योजना के लक्ष्य पा लेने के बाद जब देश के अंतिम व्यक्ति को भी बिजली का लाभ पहुंच सक रहा है तभी महात्मा गांधी और बिजली का वास्तविक सामंजस्य बनता समझ आता है।

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments