श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कल, आज और कल“।)
अभी अभी # 181 ⇒ कल, आज और कल… श्री प्रदीप शर्मा
पहले कल आया या आज ! कल ही आया होगा, अगर आज आया होता तो कहीं नजर जरूर आता। कल आता है, और गुजर जाता है। कल फिर एक नया कल आएगा। इसलिए हमने कल और आज को मिलाकर आजकल बना लिया है।
कहते हैं, कल कभी नहीं आता, हमेशा आज ही रहता है। जो बीत गया, वह भी कल था, और जो आएगा, वह भी कल ही है।
आज ही कल में ढल जाता है, जब दिन तमाम हो जाता है। वैसे तो हर बीता हुआ पल ही कल है, कल कल, पानी की तरह बहता समय है। जल और पल में यही फर्क है, जल को बांधा जा सकता है, लेकिन पल को नहीं रोका जा सकता ;
सुनो गजर क्या गाए
समय गुजरता जाए। ।
हमने समय को घड़ी में बांध दिया। जो पल है, वही तो घड़ी है। आप घड़ी को चाहे हाथ में बांध लो, अथवा दीवार पर टांग दो। समय की बड़ी संक्षिप्त और सटीक व्याख्या है 24 x 7, जो समय बताए वह घड़ी। वैसे काल गणना के लिए हमारे पास कैलेंडर ही नहीं, काल निर्णय भी है और पंचांग भी। घड़ी, चौघड़िया, और तिथि, वार सब की खबर है हमें।
पहले की दीवार घड़ियों में घंटा भी होता था। वे कलपुर्जों वाली टिक टिक करने वाली घड़ियां होती थी। हर घंटे आधे घंटे में बजकर समय बताती थी। जितनी बजी, उतने घंटे, आवाज वही टन टन। नगर में जगह जगह घंटाघर होते थे, जिनमें चारों दिशाओं के लिए चार घड़ियां होती थी, जो एक ही समय बताती थी। घड़ी भले ही कोई साज ना हो, लेकिन घड़ी सुधारक को घड़ीसाज ही कहते थे। खराब घड़ी शुभ नहीं मानी जाती। जो हमारा समय सुधार दे, वही सच्चा घड़ीसाज, श्री सदगुरूनाथ महाराज। ।
समय बहुत कीमती है, जो समय का मूल्य जानते हैं, वे बहुमूल्य, कीमती घड़ी पहनते हैं। जिनके हाथ में कीमती घड़ी नहीं, वे क्या समय की कीमत जानेंगे।
बस, आपका समय अच्छा चलना चाहिए। अगर एक बार खराब वक्त आ गया, तो सब घड़ी बेकार।
कल कभी नहीं आता, फिर भी हमें कल का इंतजार रहता है। कल की बीती रात से बेहतर हमारी आज सुबह की शुरुआत हो। अब तो हमारा हर पल भी डिजिटल हो गया है। शुभ घड़ी आई।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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