☆ सूचनाएँ/Information ☆
(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)
साहित्य की दुनिया – श्री कमलेश भारतीय
(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है। देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल / पुस्तक मेले / साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)
☆ अग्ग दी इक बात यानी बात अमृता प्रीतम की — कमलेश भारतीय ☆
अमृता प्रीतम एक ऐसी आग जिसने साहित्य के क्षेत्र में अपना नाम बनाया । जितना अमृता का साहित्य चर्चित था, उतनी ही उसकी ज़िंदगी भी चर्चा में रही । फिर चाहे वह प्रसिद्ध शायर और फिल्मी गीतकार साहिर लुध्यानवी हों या फिर इमरोज़ यानी इंदर ! यह बात तो खुद अमृता प्रीतम ने अपनी पुस्तक ‘रसीदी टिकट’ में स्वीकार की है कि वह साहिर लुध्यानवी से बेहद प्यार करती थीं और उनके जाने के बाद साहिर के सिगरेट के बचे हुए टुकड़े खुद पीती थीं । फिर साहिर फिल्म नगरी मुम्बई चले गये और अमृता प्रीतम की ज़िंदगी में आये इमरोज़, जो एक पेंटर आर्टिस्ट थे और अमृता की पत्रिका ‘नागमणि’ के डिजाइन में सहयोग ही नहीं करते थे बल्कि अपना जीवन ही अमृता को अर्पण कर दिया । साहित्य के क्षेत्र में पंजाबी में अमृता प्रीतम पहली लेखिका थीं, जिसे अकादमी अवार्ड मिला और जिसे विदेशों में महिला लेखन का प्रतिनिधित्व करने भेजा गया ! अमृता प्रीतम पंजाब के नये लेखकों को भी मंच देने के साथ साथ उन्हें तराशने का काम भी कर रही थीं ।
जहां अमृता प्रीतम के साहित्य में इतने चर्चे थे, वहीं उसके निजी जीवन को लेकर समाज में उसकी बुराई-निंदा की जा रही थी लेकिन अमृता प्रीतम अपने मन के अनुसार जीती रही और इमरोज़ ने अमृता को उदास पलों में हौंसला दिया । इमरोज़ जैसा समर्पण आज एक अनुपम उदाहरण बन गया है । क्या कोई ऐसे भी अपनी ज़िंदगी का मकसद किसी दूसरे को अर्पण कर देता है तो ? इमरोज़ ने भी कविता लिखनी शुरू कर दी थी अमृता के संग साथ के रंग में रंग जाने पर ! सचमुच ही अमृता प्रीतम आग की इक बात ही तो थी ! उसी की बात उसके जीवन पर आधारित इस नाटक में बहुत ही शानदार तरीके से की गयी है।
अमृता प्रीतम इमरोज़ से कहती है कि मेरा पता है, जहां आज़ाद रूह मिल जाये ! इस तरह अमृता एक आज़ाद रूह थी और महिला लेखन को और महिला को बहुत ऊंचाई दी ।
अमृता प्रीतम की भूमिका पंजाब 🎓, चंडीगढ़ के इंडियन थियेटर विभाग की अध्यक्षता व थियेटर आर्टिस्ट डाॅ नवदीप कौर ने निभाई जबकि साहिर लुध्यानवी व इमरोज़ के दोनों रूपों में टीकम जोशी ने बखूबी निभाये और नाटक का निर्देशन भी दोनों ने संयुक्त रूप से किया । थियेटर विभाग के कुछ छात्रों ने बैक स्टेज में अपना योगदान दिया !
अंत अमृता प्रीतम की कविता’ मैं तैनूं फेर मिलांगी’ के साथ होता है, जो अमृता ने इमरोज़ के लिए लिखी थी जबकि उसकी बहुचर्चित कविता ‘ इक रोई सी धी पंजाब दी, तू लिख लिख मारे वैन, अज्ज लक्खां धीयां रोंदियां….
सच, यह प्रस्तुति याद रहने लायक है और दसवें रंग आंगन नाट्योत्सव की एक यादगार प्रस्तुति कही जायेगी । बहुत प्रभावशाली !
साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
संपर्क – 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075
(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈