सुश्री सुनीता गद्रे
☆ आलेख ☆ प्री वेडिंग शूट… ☆ सुश्री सुनीता गद्रे ☆
इसकी शुरुआत मुझे लगता है कि दस बारह साल पहले हो गई। जब इव्हेंट मॅनेजमेंट की कल्पनाने हमारे देश में भी जोर पकड़ा। इलेक्शन से लेकर घरेलू या सार्वजनिक छोटे-छोटे समारोहों के लिए इवेंट शब्द आ गया। फिर इवेंट मैनेजर हायर कर लो। आदि से लेकर अंत तक समारोह का ठेका उसको दे दो और बेफिक्र होकर चैन की सांस ले लो। यह तरीका शुरू हो गया। शादी जैसा पवित्र मंगल समारंभ भी इससे अछूता नहीं रहा। इस तरह से पश्चिमी संस्कृति ने इवेंट के रूप में हमारे समाज पर पकड़ मजबूत कर दी।
बड़ी चतुराई से शादी समारोह को मंगनी या रोका, हल्दी, मेहंदी, महिला संगीत, प्रीवेडिंगशूट, बारात, शादी, रिसेप्शन, हनीमून इस तरह के बहुत इवेंट्स में बांटा गया। मालदार पार्टियों ने, सेलिब्रिटीज ने स्टेटस सिंबल, कुछ हटके करने के चक्कर में इसकी शुरुआत की।
उसमें से प्री वेडिंग शूट यह बहुत ही गलत इवेंट
अमीरों की देखा देखी आम समाज में भी प्रचलित हो गया। हम लोग भी पिछडे नहीं है। शादी तो एक बार ही होनी है। कर्जे का क्या? वह तो चुक जाएगा। इन बातों से आगे आगे जाकर मध्यम वर्गीय और गरीब तबके के लोगों पर भी एक फिजूलखर्ची अनिवार्य हो गई। और वह कर्ज के बोझ में दबते चले जा रहे हैं। यह रहा आर्थिक पहलू । सामाजिक पहलू तो बहुत ही भयानक है। शादी से पहले लड़का-लड़की द्वारा इनडोर-आउटडोर भिन्न-भिन्न जगहों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के पोज में, कपड़ों में फोटो शूट करने वाला यह इवेंट, ट्रेंडी नकली लव स्टोरी की थीम पर स्टडी रूम, डाइनिंग रूम, बैडरूम, समुद्र, बाग, पहाड़, पेड़, कीचड़, रेलवे पटरी कहीं पर भी… जैसे लव स्टोरी की मांग हो शूट करने वाला यह इवेंट घातक इसलिए है कि शादी के दिन शादी के जगह पर यह बड़े स्क्रीन पर दिखाया जाता है।
प्राइवेट में रखने के लिए लड़का- लड़की हजारों फोटो शूट कर ले लेते, तो समाज के लिए कोई समस्या ही नहीं बनती, लेकिन उसको शादी के दिन भव्य पर्दे पर सार्वजनिक करना यही बहुत समस्या पैदा कर रहा है।
हमारे संस्कृती में शादी से पहले इतना खुलापन स्वीकार्य नहीं है। हमारी संस्कृती में, संस्कारों में, एक नैतिकता की मर्यादा है। वह सारी यह शूट ध्वस्त कर देता है। शादी के पहले एक दूसरों की ज्यादा नजदीकियां, कम परिधान पहने हुए फोटोज् में शालीनता कहां होगी? वह तो फूहड़ता से आगे जाकर अश्लीलता का रूप ले रहे हैं। यह शादी की मर्यादा का हनन है।
शादी की विधि देखना, पंडित जी से संस्कृत में उच्चारित शादी के पवित्र मंत्रों को सुनना, खुशी-खुशी दूल्हा दुल्हन को आशीर्वाद देना, ये बातें जादा नजर ही नहीं आती। छोटे, बड़े सारे लोग बड़े स्क्रीन पर एक इस तरह की अश्लील फिल्म देखना ही पसंद करने लगे हैं। सामाजिक स्वस्थ्य के लिए यह अच्छी चीज नहीं है। इसलिए ज्यादा फैलने से पहले ही इसको रोकने की जरूरत है।
प्री वेडिंग शूट ना तो अपरिहार्य है ना तो आवश्यक है।
- यह इवेंट उपभोक्तावाद, स्वच्छंदता और वैचारिक उथलापन दिखता है।
- आजकल बहुत लोगों के पास इस तरह के बेकार आयोजन पर खर्च करने के लिए पैसा, समय, इच्छा और वैचारिक उथलापन भी है।
- कुछ लोगों को जानकार लोगों के आदर्श सामने रखने में हीनता महसूस होती है।
इस फोटोशूट से
- अंग प्रदर्शन
- संपत्ति का प्रदर्शन
- आधुनिकता प्रदर्शन
- ड्रेसिंग सेन्स
- रोमांस और अभिनय दर्शन
- इस तरह की बाते जिनको पसंद नही है वो कितने गंवार है ये दिखाना शामिल है।
इसमें से कौन सी बात गृहस्थ जीवन सुखमय होने के लिए आवश्यक है?
Of course इन लोगों को सुखी जीवन चाहिए या नहीं यह भी पता नही।
प्री वेडिंग शूट में एक खतरा यह भी है कि अगर शूट के बाद किसी भी वजह से शादी टूट जाती है तो ज्यादातर लड़की के लिए दूसरी शादी में यह शूट मुसीबत भी बन सकता है।
अपने रहन-सहन में अमीरी दिखाना यही बहुतों का उद्देश्य होता है।
दो घड़ी टिकने वाले आनंद की कोई जरूरत है क्या?
आने वाले जनरेशन को लोग कौन से जीवन मूल्य सिखाएंगे?
जिंदगी में सांस्कृतिक मूल्यों का बहुत महत्व होता है
इसकी लोगों को परवाह है भी या नहीं।
इसलिए जनता को यही संदेश मिलना चाहिए कि जागते रहो।
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सुश्री सुनीता गद्रे
माधवनगर सांगली, मो 960 47 25 805.
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈