श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “त्याग पत्र उर्फ इस्तीफा।)

?अभी अभी # 293 ⇒ त्याग पत्र उर्फ इस्तीफा… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

भोग से विरक्ति को त्याग कहते हैं, और पद से त्याग को त्याग पत्र कहते हैं। जिस तरह निवृत्ति से पहले प्रवृत्ति आवश्यक है, उसी प्रकार त्याग पत्र से पहले किसी पद पर नियुक्ति आवश्यक है। सेवा मुक्त भी वही हो सकता है जो कहीं सेवारत हो। सेवा से रिटायरमेंट और टर्मिनेशन से बीच की स्थिति है यह त्याग पत्र।

सेवा चाहे देश की हो अथवा समाज की, शासकीय हो अथवा गैर सरकारी, जिसे आजकल सुविधा के लिए प्राइवेट जॉब कहते हैं।

जॉब शब्द से काम, धंधा और मजदूरी की गंध आती है, जब कि सेवा शब्द में ही त्याग, सुकून और चारों ओर सुख शांति नजर आती है। शासकीय सेवा, भले ही सरकारी नौकरी कहलाती हो, लेकिन कभी शादी के रिश्ते की शर्तिया गारंटी कहलाती थी। लड़का शासकीय सेवा में है, यह एक तरह का चरित्र प्रमाण पत्र होता था।।

वैसे तो सेवा अपने आप में एक बहुत बड़ा त्याग है, लेकिन कभी कभी परिस्थितिवश इंसान को इस सेवा से भी त्याग पत्र देना पड़ता है। जहां अच्छे भविष्य की संभावना हो, वहां वर्तमान सेवा से निवृत्त होना ही बेहतर होता है। ऐसी परिस्थिति में औपचारिक रूप से त्याग पत्र दिया जाता है और साधारण परिस्थितियों में वह मंजूर भी हो जाता है। आधी छोड़ पूरी का लालच भी आप चाहें तो कह सकते हैं।

एक त्याग पत्र मजबूरी का भी होता है, जहां आप व्यक्तिगत कारणों के चलते, स्वेच्छा से त्याग पत्र दे देते हैं। लेकिन कुछ देश के जनसेवकों पर लोकसेवा का इतना दायित्व और भार होता है, कि वे कभी पद त्यागना ही नहीं चाहते। अतः उनके पद भार की समय सीमा बांध दी जाती है। उस समय के पश्चात् उन्हें इस्तीफा देना ही पड़ता है।।

जो सच्चे देशसेवक होते हैं, वे कभी देश सेवा से मुक्त होना ही नहीं चाहते। जनता भी उन्हें बार बार चुनकर भेजती है। ऐसे नेता ही देश के कर्णधार होते हैं। इन्हें सेवा में ही त्याग और भोग के सुख की अनुभूति होती है।

लेकिन सबै दिन ना होत एक समाना। पुरुष के भाग्य का क्या भरोसा। कभी बिल्ली के भाग से अगर छींका टूटता है, तो कभी सिर पर पहाड़ भी टूट पड़ता है। अच्छा भला राजयोग चल रहा था, अचानक हायकमान से आदश होता है, अपना इस्तीफा भेज दें। आप हवाले में फंस चुके हैं।।

एक आम इंसान जब नौकरी से रिटायर होता है तो बहुत खुश होता है, अब बुढ़ापा चैन से कटेगा। लेकिन एक सच्चा राजनेता कभी रिटायर नहीं होता। राजनीति में सिर्फ त्याग पत्र लिए और दिए जाते हैं, राजनीति से कभी सन्यास नहीं लिया जाता।

आज की राजनीति सेवा की और त्याग की राजनीति नहीं है, बस त्याग पत्र और इस्तीफे की राजनीति ही है। जहां सिर्फ सिद्धांतों को त्यागा जाता है और अच्छा मौका देखकर चलती गाड़ी में जगह बनाई जाती है।

अपनों को छोड़ा जाता है, और अच्छा मौका तलाशा जाता है। जहां त्याग पत्र एक हथियार की तरह इस्तेमाल होता है, और इस्तीफा, इस्तीफा नहीं होता, धमाका होता है।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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