श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चरण पादुका।)

?अभी अभी # 342 ⇒ चरण पादुका? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जो पांव में पहनी जाए, वो चरण पादुका ! वैसे पादुका का शाब्दिक अर्थ खड़ाऊ है। आज की बोलचाल की भाषा में इसे जूता कहते हैं। कड़क धूप से जलते पांवों को बचाने के लिए और कांटे कंकड़ से सुरक्षित रखने के लिए जूता पहना जाता है। पांव में जूता और सर पर छाता गर्मी हो या बरसात, रहता सदा साथ। भले ही गर्मी बरसात न हो, आप पैदल नहीं कार में हों, आज के युग में जूता आपके पांव में ज़रूर होगा।

भले ही सर पर टोपी ना हो, पांव में जूता होना जरूरी है। कितना मतलबी है आज का इंसान, बाहर जिस जूते से उसकी शान है, उसे घर में कोई सम्मान नहीं है। पड़ा रहता है, घर के बाहर किसी कोने में। न उसे रसोई में प्रवेश है, न ही मंदिर में। जूता है, उसकी औकात पांव तक ही है, उसे सर पर नहीं बिठाया जाता।।

आखिर सुविधा भी कोई चीज है। हमने घर के लिए एक रबर की चप्पल को अनुमति दे दी है कि वह सीमित क्षेत्र में हमारे चरणों की शोभा बढ़ा सकती है। हमने उसे स्लिपर नाम दे दिया है। हमने आजकल जमीन पर बैठना बंद कर दिया है। हम भोजन टेबल पर करते हैं, सोफे पर बैठते हैं, डबल बेड पर सोते हैं और कमोड ही आजकल हमारा दिशा मैदान है। कलयुगी पादुका स्लिपर इन अवसरों पर हमारे चरण कमल को सुशोभित करती है। जो संस्कारी लोग हैं, वे स्लिपर को इतना सम्मान भी नहीं देते।

इंसान की आधी शान तो उसके जूतों में है।

अगर सूट महंगा है, तो शूज़ भी ढंग के ही होने चाहिए। निर्मल बाबा की मानें तो किरपा भी ब्रांडेड प्रोडक्ट्स में ही छुपी होती है। वैसे भी आजकल सभी ब्रांड एक ही इंसान पर मेहरबान हैं।।

दूरदर्शन पर रामायण चल रही है। भरत अपने भाई मर्यादा पुरुषोत्तम को प्रणाम कर रहे हैं और उनकी चरण पादुका को सर पर धारण किए हुए हैं। चरण पादुका का राज्याभिषेक होता है। भगवान राम की चरण पादुका ही अयोध्या पर राज करेगी और भरत कुटिया में रहकर सेवक की भांति राजपाट संभालेंगे।

चरण पादुका को इतना सम्मान शायद पहली बार मिला होगा। बड़ों के चरण छूना आज भी हमारे संस्कार में है। शुभ कार्य के वक्त पूजा पाठ करवाने वाले पंडित जी के भी पांव छूते हैं। गुरु की चरण वंदना भी करते हैं। जिन्होंने महात्मा भरत की भांति सब कुछ अपने सदगुरु को अर्पण कर दिया है, वे गुरुदेव की पादुका पूजन भी करते हैं। जो महत्व गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहब का है, वही महत्व गुरु परम्परा में गुरु पादुका का है।।

यह भाव का खेल है, किसी की गुलामी का नहीं। जिसकी गुलामी में सुबह जल्दी उठे, कभी खाना खाया, कभी नहीं खाया, झटपट तैयार हुए, जूते पहने और निकल पड़े कर्तव्य के पथ पर।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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